न कोई बांधे, ना साधे, बस राधे-राधे
मुफीद इंतजाम थे और सटीक रूट प्लान भी, लेकिन स्व:स्फूर्त आंदोलन के सामने ये कहां ठहरने वाले थे। गरुड़ गोविंद मंदिर प्रांगण में जोश, हुंकार के साथ कतारबद्ध होकर निकले पदयात्री हाईवे पर साथ चली रास मंडली और भजन मंडलियों के साथ राग में ऐसे डूबे कि रूट प्लान इनकी भावनाओं के वेग के साथ कदमताल न कर सका।
मथुरा। मुफीद इंतजाम थे और सटीक रूट प्लान भी, लेकिन स्व:स्फूर्त आंदोलन के सामने ये कहां ठहरने वाले थे। गरुड़ गोविंद मंदिर प्रांगण में जोश, हुंकार के साथ कतारबद्ध होकर निकले पदयात्री हाईवे पर साथ चली रास मंडली और भजन मंडलियों के साथ राग में ऐसे डूबे कि रूट प्लान इनकी भावनाओं के वेग के साथ कदमताल न कर सका।
फिर तो न कोई इन्हें बांधे था और ना ही साधे था, सिर्फ गूंज रहा था राधे-राधे और जय यमुना मैया।
यमुना बचाओ आंदोलन पदयात्रा के लिए लंबे समय से तैयारियां चल रही थीं। जन-जन को जोड़ने की मुहिम कारगर होती गई। सड़क पर उतरे यमुना भक्तों के हुजूम को लेकर पुलिस-प्रशासन का दम फूला हुआ था, तो यात्रा के झंडाबरदारों के माथे पर भी शिकन थी। वह इसलिए कि जब दिल्ली-आगरा हाईवे पर हजारों पदयात्री उतरेंगे, तो अव्यवस्था न फैल जाए। दिल्ली तक लगभग 140 किमी की शांतिप्रिय पदयात्रा के लिए नेतृत्वकर्ता सिर जोड़ कर बैठे। मंथन किया और तैयार किया गया एक रूट मैप। जत्थों की कमान संभालने वालों के मार्फत वह पदयात्रियों तक पहुंचा दिया गया।
शुक्त्रवार को पदयात्रा शुरू होने से पहले मंच से रूट प्लान सुनाया गया और पर्चे भी बांटे गए।
गरुड़ गोविंद मंदिर के प्रांगण से एक-एक कर समूह उसी तरह रवाना हुए। जैसे ही हाईवे पर पहुंचकर कदम मंजिल (दिल्ली) की ओर बढ़े, भजन-कीर्तन करती मंडली, राधा-कृष्ण, यमुना मैया की झांकियां निकलीं, तो ब्रजवासी योजना की बंदिश तोड़ भक्ति में रम गए। झूमते-नाचते राधे-राधे में सुर मिलाते चल पड़े। हालांकि इस दीवानगी में अव्यवस्था या अप्रिय स्थिति की कोई गुंजाइश नजर नहीं आई।
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