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श्रीराम को देख विभोर भई सखियां

जनकपुर भ्रमण पर निकले श्रीराम-लक्ष्मण को देख अष्ट सखियां एकत्र हो जाती हैं। कहती हैं, हे सखी इनकी मनोहारी शोभा देख आंखे टिक नहीं पा रही हैं और किसी से कुछ कहते नहीं बन रहा।

By Edited By: Published: Tue, 02 Oct 2012 02:30 PM (IST)Updated: Tue, 02 Oct 2012 02:30 PM (IST)
श्रीराम को देख विभोर भई सखियां

वाराणसी। जनकपुर भ्रमण पर निकले श्रीराम-लक्ष्मण को देख अष्ट सखियां एकत्र हो जाती हैं। कहती हैं, हे सखी इनकी मनोहारी शोभा देख आंखे टिक नहीं पा रही हैं और किसी से कुछ कहते नहीं बन रहा। हम तीनों श्रेष्ठ देवताओं (ब्रहृमा, विष्णु, महेश) से इनकी तुलना करें तो विष्णु के चार बांह, ब्रहृमाजी के चार मुख और पंचमुख शिव जी के हैं किंतु इनके जैसी छवि किसी देवता में नहीं। तीसरी सखी ने कहा, जानकी के योग्य इससे सुंदर वर और कोई नहीं हो सकता। हे सखी, यदि राजा जनक ने इनको देख लिया तो निश्चय ही वे अपने प्रण का त्यागकर सीता का विवाह इनसे कर देंगे।

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चौथी सखी कहती है, हे सखी, राजा जनक ने इन्हें पहले ही पहचान लिया है। तभी तो मुनि समेत इनका आदर सम्मान किया है। पांचवी सखी कहती है कि हे सखी, यदि विधाता ने चाहा तो जनक जी को सीता के वर के रूप में यही मिलेंगे। छठी सखी ने कहा, इस विवाह से सबका भला होगा। सातवीं सखी ने कहा, महादेव जी का धनुष बड़ा कठोर है और ये श्यामल किशोर अवस्था के बहुत कोमल हैं।

आठवीं सखी कहती है, ये देखने में छोटे हैं किंतु इनका प्रभाव बहुत बड़ा है। जिनके चरण कमल की धूल लगते ही पाप से भरी अहिल्या तर गई उसके आगे शिवजी का धनुष क्या है। सभी सखियां पुष्प वर्षा करती हैं। यह विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला के चौथे दिन सोमवार को पीएसी परिसर के पास जनकपुर में श्रीजनकपुर दर्शन, अष्ट सखी संवाद, फुलवारी आदि प्रसंग पर आधारित लीला के मंचन का दृश्य था।

लीला की शुरूआत जनकपुर देखने की लक्ष्मण की लालसा से हुई, पर वह संकोच वश बड़े भाई राम से कह नहीं पा रहे थे। लक्ष्मण के इस मनोभाव को श्रीराम जान जाते हैं और मुनि से सविनय आज्ञा लेकर जनकपुर भ्रमण के लिए निकल जाते हैं। मार्ग में उनका मनोहारी रूप देख सखियां भावविभोर हो जाती हैं।

इसी बीच आकाशवाणी होती है-हे जानकी हमारी सत्य आशीष सुनो, तुम्हारी मन की कामना पूरी होगी। दूसरी तरफ फूल लेने निकले श्रीराम का फुलवारी में गौरी पूजन के लिए आई महाराज जनक तनया से आमना-सामना होता है। श्रीराम को फूल लेकर विश्वामित्र के पास पहुंचने में देरी हो जाती है।

विश्वामित्र सब समझ जाते हैं और श्रीराम से कहते हैं संध्या का समय हो गया है। दोनों भाई संध्या करने चले जाते हैं। इसी दौरान पूर्व दिशा में चंद्रमा देख श्रीराम को सीता की याद आ जाती है। तत्पश्चात दोनों भाई मुनि के चरणों में प्रणाम कर विश्राम करने चले जाते हैं। दूसरे दिन प्रात: स्नान-ध्यान करने के बाद दोनों भाई गुरु के समीप बैठते हैं। यहीं पर आरती के साथ लीला का समापन होता है।

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