दादा गुरु के साथ झोपड़ी में रहे थे बाबा
बाबा जय गुरुदेव के ब्रह्मलीन होने के बाद अलीगढ़ का गांव चिरौली भी सुर्खियों में आ गया है। ये वही गांव है, जहां गुरुदीक्षा लेकर तुलसीदास बाबा जयगुरुदेव बने और दुनियाभर में चर्चित हुए। ये गांव बाबा जय गुरुदेव के गुरु और संत घूरेलाल महाराज का है। यहीं बाबा ने गुरुदीक्षा ली थी। बरसों तक गांव की एक झोपड़ी में रहते हुए गुरुसेवा की। गुरु का यहां आश्रम भी है, जहां बाबा के तमाम अनुयायी आते रहते हैं।
अलीगढ़, जागरण संवाददाता। बाबा जय गुरुदेव के ब्रह्मलीन होने के बाद अलीगढ़ का गांव चिरौली भी सुर्खियों में आ गया है। ये वही गांव है, जहां गुरुदीक्षा लेकर तुलसीदास बाबा जयगुरुदेव बने और दुनियाभर में चर्चित हुए। ये गांव बाबा जय गुरुदेव के गुरु और संत घूरेलाल महाराज का है। यहीं बाबा ने गुरुदीक्षा ली थी। बरसों तक गांव की एक झोपड़ी में रहते हुए गुरुसेवा की। गुरु का यहां आश्रम भी है, जहां बाबा के तमाम अनुयायी आते रहते हैं।
अलीगढ़ मुख्यालय से 25 किमी. दूर गांव चिरौली के बुजुर्ग अपने गांव के आध्यात्मिक चेतना केंद्र बनने की यादों में सहज ही खो गए हैं। वे बताते हैं, दशकों पहले यहां संत घूरेलाल महाराज (दादा गुरु) रहा करते थे। वे गृहस्थ थे। मान्यता ईश्वरीय शक्तियों के हासिल करने की थी। उनके दो शिष्य हुए चंद्रमादास व तुलसीदास। ये दोनों पहले मथुरा में रहा करते थे। घूरेलाल महाराज की महिमा की जानकारी होने पर दोनों उनकी शरण में आ गए। उन्होंने चिरौली में दीक्षा ली और एक छोटी-सी झोपड़ी में रहने लगे। बरसों तक दोनों ने घूरेलाल महाराज की सेवा की। आध्यात्मिक ज्ञान हासिल किया। संवत् 2005 (सन् 1948) की अगहन शुक्ल दशमी को संत घूरेलाल महाराज ने शरीर त्याग दिया। गांव में ही उनका अंतिम संस्कार हुआ। बताते हैं कि उनके दोनों शिष्यों ने मथुरा के कृष्णा नगर में गुरु की समाधि बनाने का निर्णय लिया, लेकिन तुलसीदास गुरु के फूल (अस्थि) का कलश लेकर चले गए और मथुरा में गुरु की समाधि बनवाई। यहां एक विशाल आश्रम भी है। तुलसीदास अपने गुरु को जय गुरुदेव कहा करते थे। सो, उनके अनुयाइयों ने तुलसीदास को ही जय गुरुदेव कहना शुरू कर दिया। फिर, बाबा जयगुरुदेव को इतनी प्रसिद्धि मिली कि दुनियाभर में उनके लाखों अनुयायी हो गए।
उधर, बाबा जयगुरुदेव से खफा चंद्रमादास राधास्वामी मतावलंबी हो गए और चिरौली में ही रह कर अपने गुरु की झोपड़ी के स्थान पर पक्का आश्रम बनवा लिया। कालांतर में चंद्रमादास भी नहीं रहे। गांव में बाबा जय गुरुदेव के गुरु के आश्रम को राधास्वामी सत्संग भवन के नाम से जाना जाता है। वहां घूरेलाल महाराज के सत्संग भवन के साथ चंद्रमादास का समाधि स्थल भी है। आश्रम में रह रहे चंद्रमादास के शिष्य शिवनारायण व राधाचरन सिंह बताते हैं कि उनके गुरु (चंद्रमादास) से मिलने के लिए बाबा जय गुरुदेव दशकों पहले गांव आए थे। ये मुलाकात भी नहीं हो सकी। बाबा के अनुयायी दादा गुरु के गांव को देखने आते रहते हैं।
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर