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त्रिवेणी में डुबकी शिविर में परमार्थ

पौष पूर्णिमा स्नान के साथ कल्पवासियों के शिविर अध्यात्म की सरिता से पवित्र हो गए। भोर से शाम के बीच स्नान, ध्यान, दान, मनीषियों के प्रवचन व प्रभु की लीला के रसपान के साथ कल्पवासियों की रात की चर्या भी बदल गई है। कल्पवास करने आए श्रद्धालुओं के शिविर रात में भी अपने व सगे संबंधियों के आने से गुलजार हैं।

By Edited By: Published: Tue, 29 Jan 2013 04:49 PM (IST)Updated: Tue, 29 Jan 2013 04:49 PM (IST)
त्रिवेणी में डुबकी शिविर में परमार्थ

कुंभनगर। पौष पूर्णिमा स्नान के साथ कल्पवासियों के शिविर अध्यात्म की सरिता से पवित्र हो गए। भोर से शाम के बीच स्नान, ध्यान, दान, मनीषियों के प्रवचन व प्रभु की लीला के रसपान के साथ कल्पवासियों की रात की चर्या भी बदल गई है। कल्पवास करने आए श्रद्धालुओं के शिविर रात में भी अपने व सगे संबंधियों के आने से गुलजार हैं।

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रात में करीब सवा ग्यारह बजे त्रिवेणी बांध से काली सड़क पर गंगा जी की ओर बढ़े जा रहे थे। पौष पूर्णिमा स्नान के लिए आए सभी श्रद्धालु अभी घर नहीं लौटे हैं। यह जानकारी तब हुई, जब कुछ लोग संगम मार्ग पर खुली एक दुकान पर चाय पीते हुए आपस में बातचीत करते मिले। हम भी रात में खबर की तलाश में निकले थे तो वहां रुक गए। उनमें चर्चा घर लौटने को लेकर चल रही है। उनके एक साथी की इच्छा थी कि पूर्णिमा स्नान तो कर लिया है लेकिन जब घर से आए हैं तो एक दिन और संगम में डुबकी लगा ली जाए, क्योंकि फिर न जाने कब आने का मौका मिले। उनमें सहमति बनने के बाद हम भी उनकी वार्ता में शामिल हो गए।

इसी बातचीत में पता चला कि उनके गांव के दो लोग कल्पवास करने आए हैं, वहीं रुके हैं। अब मैं कल्पवासियों के बारे में सोच ही रहा था कि एक परिचित पैदल टहलते हुए मिल गए। कुशल क्षेम के बाद बताया कि वे पौष पूर्णिमा स्नान करने आए हैं। एक दिन और स्नान करके लौटेंगे। सुल्तानपुर के रहने वाले साथी को सेक्टर बारह में दुर्गा पूजा शिविर जाना था, सो उन्हें छोड़ने उनके साथ वहां पहुंचे तो शिविर में बैठे छह श्रद्धालु श्रीकृष्ण की महिमा का बखान कर रहे थे। गीता भी सामने रखी हुई थी। पहुंचने पर कल्पवासियों के बारे में मन में घूम रहे सवाल का जवाब भी मिल गया। रात के बारह से अधिक हो रहे थे फिर भी वे स्वागत की औपचारिकता नहीं भूले। बताया भी कि यहां धर्म कर्म करने ही आए हैं।

निद्रा के अलावा मन सिर्फ प्रभु की भक्ति में लगा है। आधा घंटा रुकने पर अहसास हुआ कि यह गंगा के पानी का असर है कि कल्पवासियों के शिविरों में परमार्थ की अदृश्य सरिता प्रवाहित हो रही है। इस अलौलिक सरिता का प्रवाह देखने के बाद मन में शांति के भाव के साथ विदा होना ही श्रेष्ठ लगा।

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