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पितृ पक्ष में फिर याद आए कौवे

घर की मुंडेर पर बैठकर आगंतुक के आने की सूचना देने वाला काला कागा अब मुंडेर पर बैठकर किसी मेहमान के आने की सूचना देने के लिए कांव-कांव नहीं करता। बल्कि आसमान में विचरण करता भी बमुश्किल दिखाई देता है।

By Edited By: Published: Fri, 12 Oct 2012 04:30 PM (IST)Updated: Fri, 12 Oct 2012 04:30 PM (IST)
पितृ पक्ष में फिर याद आए कौवे

गाजियाबाद। घर की मुंडेर पर बैठकर आगंतुक के आने की सूचना देने वाला काला कागा अब मुंडेर पर बैठकर किसी मेहमान के आने की सूचना देने के लिए कांव-कांव नहीं करता। बल्कि आसमान में विचरण करता भी बमुश्किल दिखाई देता है। पर्यावरण का अहम हिस्सा माने जाने वाला कौवा इस कदर लुप्त हो गया है कि श्राद्ध पक्ष में पितरों को तारने के लिए ये ढूंढे से भी नहीं मिल रहे हैं। सामाजिकी वन प्रभाग द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार पिछले 31 वर्षो में करीब साढ़े 26 लाख कौवे विलुप्त हो चुके हैं।

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नहीं आते ग्रास ग्रहण करने-

असंतुलित पर्यावरण और मानव के स्वार्थ का शिकार हो रहा कौवे के दर्शन भी दुर्लभ हो गए हैं। आज स्थिति ये हो गई है कि पितृ पक्ष में भोजन का प्रथम ग्रास खिलाने को कौवे ही नहीं हैं। हिंदू संस्कार में कौए को पूर्वजों का प्रतीक माना जाता है। ये भी माना जाता है कि पितृ कौवे के रूप में आकर ग्रास ग्रहण करते हैं। पंडित दुलीदत्त कौशिक बताते हैं कि पितृ पक्ष में पुरखों की आत्मा की शांति के लिए कौए को भोजन का पहला ग्रास दिया जाता है। इसके अलावा क्वार पक्ष में पक्षियों को भोजन की परेशानी होती थी इस उद्देश्य से भी उन्हें ग्रास दिया जाता है। श्राद्ध में कौए न मिलने से भोजन का पहला ग्रास छत पर ज्यों का त्यों ही रखा रह जाता है।

आने वाले समय में दिखाई देंगे कागजी कौवे-

पर्यावरण विद विजयपाल बघेल बताते हैं कि जिस हिसाब से कौवों का अस्तित्व खत्म होता जा रहा है, उस लिहाज से कौवे सिर्फ किताबों में ही दिखाई देंगें। सर्वे रिपोर्ट की अनुसार इस समय कौवों की संख्या जिले में महज साढ़े तीन लाख के करीब है। जबकि सन् 1980 की गणना के मुताबिक महानगर में तीस लाख से अधिक कौए थे। यानि 31साल में लगभग साढे़ 26 लाख कौवे लुप्त हो गए हैं। पक्षी विशेषज्ञ सोमप्रकाश बताते हैं कि कौए का मांस भी नहीं खाया जाता है, इसके बावजूद कौवे की संख्या घटना चिंताजनक है।

प्राकृतिक आवास की कमी है कारण

ऊंची इमारतों ओर टावरों ने कौवों के बसेरों को उजाड़ दिया है। बघेल बताते हैं कि मानव द्वारा प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का नतीजा पक्षियों को भुगतना पड़ रहा है। आज जो पेड़ लगाए भी जा रहे हैं उनमें पक्षियों के लिए घोंसले बनाने की भी जगह नहीं रहती है।

प्रदूषण ने प्रभावित की प्रजनन क्षमता-

डा. सोम प्रकाश के मुताबिक घटते पेड़ और बढ़ रहे प्रदूषण के कारण पक्षियों की प्रजनन क्षमता प्रभावित होने से पक्षियों की संख्या लगातार घट रही है। इस संख्या में कौवे भी शामिल हैं।

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