गंगा नहीं तो काशी कहां
गंगा तट के करीब पैदा हुआ। गंगा तट का स्पर्श कर बहती हवाओं से मेरे जीवन में स्पंदन हुआ। जीवन गंगा से संस्कारित हुआ। चांदनी रात में गंगा तट पर बैठकर न जाने कितनी कविताएं लिखी।
बनारस। गंगा तट के करीब पैदा हुआ। गंगा तट का स्पर्श कर बहती हवाओं से मेरे जीवन में स्पंदन हुआ। जीवन गंगा से संस्कारित हुआ। चांदनी रात में गंगा तट पर बैठकर न जाने कितनी कविताएं लिखी। गंगा को एकटक निहारता रहा और गंगा की लहरें अपने आप कल्पना की लहरों को मेरे भीतर तरंगित करती रहीं। गंगा ने आज तक दुलारा। गंगा ने ही मेरी जिन्दगी को संवारा। उदास लम्हों में गंगा तट पर बैठकर जब अपलक निहारता था, गंगा ने जाने कितनी बार मेरे आंसू पोछे। न जाने कितनी बार मुझे सांत्वना दी। वैसे भी चिता में जलकर मुझे जन्म देने वाली मां तो अज्ञात लोक में चली गई। लेकिन अब तक एक मां बची हुई है मेरी गंगा मां। जर्जर उदास और बिलखती हुई गंगा मां जिसे देखकर अंतरात्मा चीत्कार उठती है। गंगा को तड़पा-तड़पा कर मारा जा रहा है। शनै: शनै: गंगा मौत की ओर बढ रही हैं। जो औरों को मुक्ति देती हैं, औरों को तारती हैं, वह गंगा आज स्वयं छटपटा रही हैं। यंत्रणा से मुक्ति के लिए। सोच रही हैं कि उन्हें अब कौन तारेगा। गंगा के निर्मलीकरण के नाम पर क्या क्या हुआ सब जानते हैं। गंगा तो निर्मल नहीं हुई बहती गंगा में हाथ धोकर न जाने कितने स्वनाम धन्य महानुभाव स्वयं निर्मल हो गए। संप्रभुता संपन्न धृतराष्ट्र गंगा की दुर्गति को देखने में असमर्थ हैं। गंगा की रक्षा के लिए शुरू किए गये अभियान के बारे में वे आज भी यही सोच रहे हैं कि कुछ लोग ये तूफान उठाए हुए हैं और कुछ दिन बाद सब कुछ शांत हो जाएगा। लेकिन इस बार गंगा के लिए शुरु जन अभियान की अनदेखी करने वाले निश्चित तौर पर इस सच को नहीं देख पा रहे हैं कि यह जन अभियान दिनोदिन फैलता ही जा रहा है। इस बार के जन अभियान से से साफ साफ संकेत मिलता है कि अभी तो ये अंगड़ाई है,आगे और लड़ाई है। स्वामी सानंद, साध्वी शारदांबा, पूर्णाबा, बाबा नागनाथ निजी स्वार्थ के लिए नहीं गंगा के लिए लड़ रहे हैं। इस देश की जीवनधारा गंगा को बचाने को जूझ रहे हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम सभी तनमनधन से इस अभियान से जुड़े। अभियान को तब तक जारी रखना है जब तक गंगा निर्मल न हो जाय। गंगा का प्रवाह रोकने वाले सगर पुत्रों की तरह अभिशप्त रहेंगे। इतिहास इन्हें क्षमा नहीं करेगा। गंगा की एकएक लहर उनके लिए सुनामी साबित होगी। बेहतर यही होगाकि वे अपने महापाप का समय रहते प्रायश्चित कर लें और गंगा को उसका अजस्त्र प्रवाह लौटा दें। मुक्तिदायिनी गंगा के चलते ही काशी मुक्तिदायिनी है। महाकाल गंगा तट पर ही तारक मंत्र सुनाते हैं। जब गंगा ही नहीं रहेंगी तो काशी भी काशी नहीं रहेगी और तब बाबा विश्वनाथ भी काशी छोड़कर कैलाश के लिए निकल पड़ेंगे। तब हम कैसे कह पाएंगे-हर हर महादेव शंभो, काशी विश्वनाथ गंगे।
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