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यज्ञ से सुकर्म करने की शिक्षा मिलती है

यज्ञ का अर्थ श्रेष्ठ काम होता है। यजुर्वेद कर्म का वेद है तथा वेद भगवान का आदेश है। यज्ञ से सुकर्म करने की शिक्षा मिलती है ताकि विश्व को श्रेष्ठ बनाते हुए सभी का कल्याण किया जा सके।

By Edited By: Published: Mon, 04 Jun 2012 11:20 AM (IST)Updated: Mon, 04 Jun 2012 11:20 AM (IST)
यज्ञ से सुकर्म करने की शिक्षा मिलती है

जींद। यज्ञ का अर्थ श्रेष्ठ काम होता है। यजुर्वेद कर्म का वेद है तथा वेद भगवान का आदेश है। यज्ञ से सुकर्म करने की शिक्षा मिलती है ताकि विश्व को श्रेष्ठ बनाते हुए सभी का कल्याण किया जा सके। यह बात कैरखेड़ी गांव के कपिलेश्वर महादेव मंदिर में आयोजित सत्संग समारोह को संबोधित करते हुए डॉ. विक्रमगिरी ने कही।

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उन्होंने कहा कि प्रभु अपनी पूजा से नहीं, बल्कि जीवों की सेवा करने से प्रसन्न होते हैं। हम सभी उसके बच्चे हैं। मनुष्य कर्मशील तथा भोग शील है। मनुष्य सुकर्मो द्वारा इस संसार को स्वर्ग मय बना सकता है। समस्त जीव आहार, निद्रा, भय , बुद्धि, बल से संसार का श्रेष्ठ प्राणी माना जाता है। अपने श्रेष्ठ गुणों से ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त करता है और प्रभु का प्रिय बन सकता है। उन्होंने कहा कि भगवान के 24 अवतार हुए हैं, जिसमें मानव जीवन के लिए दो श्रेष्ठ हैं। यह अवतार राम व कृष्ण हैं। मानव जीवन को भगवान राम के आचरणों का पालन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सागर के पुत्रों का उद्धार, भागीरथ जी द्वारा गंगा को धरती पर ले आना, जिससे आज गंगा जी सबको पापों से मुक्त और सबका कल्याण कर रही है। चंद्र वंश में श्रीकृष्ण का अवतार हुआ। उन्होंने कहा कि भगवान भक्तों की रक्षा और दुष्ट पुरुषों का विनाश करने के लिए पृथ्वी माता, गौ माता, ब्राह्मण आदि के रक्षा के लिए अवतार लेते हैं। उन्होंने कंस द्वारा किए गए अत्याचार का वर्णन, देवकी-वासुदेव का विवाह, कारागार में डालना तथा भगवान के जन्म का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि अहंकार मनुष्य को पतन की तरफ ले जाता है। अगर हमें सचमुच कष्टों से बचना है तो किसी दूसरे को कष्ट नहीं देना चाहिए। प्रत्येक मनुष्य को अपनी जिम्मेदारी इमानदारी से निभाने की जरूरत है। जब प्रत्येक व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी इमानदारी से निभाएगा तो समाज स्वयं ही सुधारता चला जाएगा। उन्होंने कहा कि अज्ञानी व्यक्ति ही अभिमान व अहंकार का शिकार होते हैं। अभिमान व अहंकार व्यक्ति पतन की तरफ बढ़ते चले जाते हैं और वे ठीक और गलत को भी नहीं पहचान पाते हैं। उन्होंने कहा कि जब कोई व्यक्ति अपने स्वार्थ या द्वेष में दूसरों को कष्ट देता है, एक दिन उसे भी कष्ट भोगने पड़ेंगे।

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