जागरूक संत व ईमानदार सैनिक धरती की सबसे बड़ी ताकत
सीआरपीएफ कैम्प में रविवार को संस्कार प्रणेता मुनि श्री सौरभ सागर जी महाराज ने कहा कि जागरूक संत और ईमानदार सैनिक ही इस धरती की सबसे बड़ी ताकत है। संत समाज को भीतर से सुधारते है, तो सैनिक व सिपाही समाज को बाहर से सुधारते है।
गया। सीआरपीएफ कैम्प में रविवार को संस्कार प्रणेता मुनि श्री सौरभ सागर जी महाराज ने कहा कि जागरूक संत और ईमानदार सैनिक ही इस धरती की सबसे बड़ी ताकत है। संत समाज को भीतर से सुधारते है, तो सैनिक व सिपाही समाज को बाहर से सुधारते है। जब इंसान संत के संकेतों को समझना बंद कर देता है। तभी सिपाही को ब्रेन की आवश्यकता पड़ती है। संत का वेश को देखकर त्याग की अनुभूति होती है, और सैनिक की ड्रेस को देखकर खौफ की अनुशासन की अनुभूति होती है। सैनिक का जीवन सन्यासी की भांति होता है। वह अपने घर परिवार के मोह को त्याग कर देश, समाज, नगर की सुरक्षा में अपने सुख को समाप्त कर आपको सुख की नींद सुलाते है।
उन्होंने कहा कि सैनिकों का कोई त्योहार नहीं होता। देश समाज की सुरक्षा को वह अपना त्योहार मान लेते है, तो हमें भी इनके साथ श्रेष्ठ व्यवहार करना चाहिए। क्योंकि राष्ट्रपति से लेकर खाकपति तक की सुरक्षा की जिम्मेवारी निभाते है। उन्होंने कहा कि सब जीव परमात्मा की संतान है। हम दूसरे प्राणी की हत्या कर अपने पेट को न भरे। शाकाहारी को स्वीकार करें। जैन मुनि सौरभ सागर ने कहा कि जहां पर हम मुर्दे को जलाते है, उसे श्मशान कहते है। जहां दफनाते हैं, उसे कब्रिस्तान कहते है। अगर हम बकरे, मुर्गे, मछली या किसी जानवर के मांस को अपने रसोई घर में पकाते है। तो हमारा रसोई घर श्मशान हुआ। और उस मांस को अपने पेट में डाल देते है, तो हमारा पेट तो कब्रिस्तान हो जाता है। इसलिए मांस खाकर अपने पेट को कब्रिस्तान व अपने रसोई घर को श्मशान मत बनाए।
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