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जीर्णोद्धार से संवरा शिव मंदिर

हरियाणा वासी अपने इष्ट का सुमिरन होते ही उसकी भक्ति में लीन हो जाते हैं। हरियाणा के विभिन्न भागों में बने शिवाले इस तथ्य के परिचायक हैं कि हरियाणा में असंख्य शिवभक्त हैं।

By Edited By: Published: Tue, 15 May 2012 12:30 PM (IST)Updated: Tue, 15 May 2012 12:30 PM (IST)
जीर्णोद्धार से संवरा शिव मंदिर

हरियाणा वासी अपने इष्ट का सुमिरन होते ही उसकी भक्ति में लीन हो जाते हैं। हरियाणा के विभिन्न भागों में बने शिवाले इस तथ्य के परिचायक हैं कि हरियाणा में असंख्य शिवभक्त हैं। हरियाणा में स्थित कई शिव मंदिर तो इतने प्राचीन हैं कि उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे हरियाणा में इनसे पुराना शायद ही कोई अन्य आराधना स्थल हो। हरियाणा प्रदेश के सभी शिव मंदिरों में हर रोज शिवभक्तों की भीड़ लगी रहती है।

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हर सोमवार व सावन के महीने में शिवालों में भीड़ और भी बढ़ जाती है। शिवरात्रि के दिन तो शिवालों में मेले सा माहौल रहता है। इस दिन कांवडि़ए शिवालों की चोटी पर कांवड़ चढ़ाते हैं तो शिव अर्चना के लिए आए शिवभक्त उनको निहारते हैं। हरियाणावासियों की शिवशंकर भोलेनाथ के प्रति ऐसी आस्था शुरू से ही है। ऐतिहासिक शहर फतेहाबाद में भी दशकों पूर्व बने कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं जो आज भी प्राचीन तथ्यों का स्मरण कराते हैं।

फतेहाबाद के पुराने मुख्य बाजार में बड़े गुरुद्वारे के सामने स्थित शिव मंदिर में शिवभक्तों का हमेशा आना-जाना लगा रहता है। इस शिव मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं की अगाध आस्था है। श्रद्धालु इस शिव मंदिर में प्रतिदिन शिवशंकर भोलेनाथ के जयकारों का उद्घोष करते हुए आते हैं और जयकारों से आसमान को गुंजायमान करते हुए पूजा-अर्चना करके वापस लौटते हैं। यह दशकों पुराना शिव मंदिर आसपास के क्षेत्र में जोरावरका वाला शिवालय के नाम से प्रसिद्ध है।

दरअसल जोरावरका महाजन परिवार लगभग 250 वर्ष पूर्व बेहतर व्यवसास के लिए जींद रियासत से फतेहाबाद में आकर बसा और अपने परिश्रम व सत्यनिष्ठा के बल पर कुछ ही अवधि में यह कस्बे का अग्रणी व प्रतिष्ठित परिवार बन गया। अपनी धर्मपरायण परंपरा का निर्वाह करने के लिए उस परिवार के सदस्यों ने जहां फतेहाबाद की शिवपुरी में छतरियों, पुलिस मोहल्ले के प्रवेश द्वार पर प्याऊ व मुख्य बाजार में कुएं का निर्माण करवाया, वहीं शिशुओं के मुंडन संस्कार के लिए फतेहाबाद-भूना सड़कमार्ग पर देवी स्थान के नाम से पर्याप्त भूमि की व्यवस्था की।

जोरावरका परिवार शुरू से शैव पंथ का अनुयायी रहा है, इसलिए शिव को अपना आराध्य मानने के कारण ही लाला जोरावरमल के पौत्रों सेठ लक्खीमल व टोडरमल (चचेरे भाई) ने वर्ष 1898 में शिव मंदिर का निर्माण करवाया। यह मंदिर कस्बे में मनोवांछित सिद्धियां देने के लिए लोकप्रिय हुआ। यहां हर रोज आने वाले शिवभक्तों का मानना है कि निरंतर 40 दिन तक यहां आकर आराधना व गर्भगृह की परिक्रमा करने वाले व्यक्ति की सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। मनोवांछित वर पाने की इच्छा रखने वाली कन्याएं भी यहां 21 सोमवार तक निरंतर आराधना करती हैं। मंदिर की स्थापना से लेकर अब तक मंदिर की प्रबंध व्यवस्था सुचारु रूप से जोरावरका परिवार के सदस्य ही संभालते आ रहे हैं। जोरवरका परिवार के सदस्य ईश्वर दयाल गुप्ता हर अवसर पर विशेष योगदान देते हैं। वे यहां पिछले लगभग 65 वर्षो से निष्काम भाव से लगे हुए हैं।

जोरावरका परिवार के सदस्यों द्वारा बनवाए गए इस शिव मंदिर का स्वरूप इसके जीर्णोद्धार के बाद संवरा है। अब इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। जीर्णोद्धार के बाद मंदिर का भवन अंदर व बाहर से आकर्षक बन गया है। समय व्यतीत होने के साथ एकबारगी तो ऐसा लगने लगा था कि अब यह मंदिर जीर्ण-शीर्ण होकर अपने अस्तित्व को खो देगा लेकिन मंदिर ट्रस्ट ने वर्ष 2010 में जीर्णाेद्धार करवाया तो मंदिर का भवन दोबारा चमक बिखेरने लगा। वर्तमान में पुजारी प्रदीप शर्मा इस शिव मंदिर में सेवा-संभाल करते हैं।

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