Move to Jagran APP

अक्षय क्षेत्र में अमृत योग

यागमक्षय क्षेत्रमक्ष या तत्र भूमिका अक्षयो हि घटो यत्र, किं न तत्राक्षयं भवेत् प्रयाग अक्षय क्षेत्र है, वहां की भूमि अक्षय है, वहां अक्षयवट है फिर वहां की कौन सी वस्तु अक्षय

By Edited By: Published: Thu, 17 Jan 2013 02:21 PM (IST)Updated: Thu, 17 Jan 2013 02:21 PM (IST)
अक्षय क्षेत्र में अमृत योग

यागमक्षय क्षेत्रमक्ष या तत्र भूमिका

loksabha election banner

अक्षयो हि घटो यत्र, किं न तत्राक्षयं भवेत्

प्रयाग अक्षय क्षेत्र है, वहां की भूमि अक्षय है, वहां अक्षयवट है फिर वहां की कौन सी वस्तु अक्षय न हो

यात्रार्थमागता ये वे नरा नार्योमलाशया:।

संपूज्य प्रार्थयन्त्येते लभन्तं फलमक्षयम।।

विशुद्ध चित्त स्त्री या पुरुष यात्रा के लिए जो यहां आयेंगे, पूजन एवं प्रार्थना करेंगे, उनको भी अक्षयफल प्राप्त होगा।

धर्म का सारतत्व ही अमृत है। ज्ञानियों ने कहा है कि ज्ञानामृत का पान करके ही मानव विमुक्ति प्राप्त करता है। ज्ञान है ब्रंा के साक्षात्कार का साधन। इसीलिए साधकों ने ज्ञान, भक्ति और वैराग्य की सरणियों से ब्रंा जिज्ञासा की परितृप्ति का सदैव प्रयास किया है।

कुंभ की कथा जहां देवताओं के अमरत्व के महत् प्रयास का मिथक है, वहां वह संगठित सामर्थय से उत्सृजित ऊर्जा द्वारा बाधाओं के सागर को मथकर अमृतघट के प्रादुर्भूत करने का संदेश देता है।

स्कन्दपुराण में कहा गया है-

माघ मास गतै जीव मकरे चन्द्र भास्करौ।

अमावस्या तदा योग कुम्भाख्यस्तीर्थ नायके।।

जब माघ महीने में सूर्य मकर राशि में होता है और गुरु जब मेष राशि में आ जाते हैं तो प्रयाग तीर्थराज में कुंभ योग उपस्थित होता है।

कुंभ मेले का मानस समूह एक प्रकार से पुरुषसूक्त और गीता के विराट पुरुष का प्रतिरूप है। जिस प्रकार विराट पुरुष के साक्षात्कार से अर्जुन का व्यामोह दूर हुआ था उसी प्रकार क्षुद्र स्वार्थो से आक्त्रान्त मानव कुंभ के विराट स्वरूप के दर्शन हेतु दान, तप और त्याग की भूमिका निर्वाह करने के लिये तैयार हो जाता है।

प्रयाग का सैकत तट भक्ति रसामृत से सदैव पूर्ण और पूरित रहा है। सृष्टि और प्रलय का साक्षी है यह क्षेत्र। यहां माधव निरंतर वास करते हैं। प्रयाग की भूमि पर ही क्षयग्रस्त सोम (चन्द्रमा) रोगमुक्त हुआ था। क्योंकि यह अमृत संधान का पावन क्षेत्र है।

करारविन्देन पदारविन्दं, मुखारविन्देन विनिवेशयन्तम्।

वटस्यपत्रस्य पुटे शयानम्, बालं मुकुन्दं शिरसा नमामि।।

पुराणों में वर्णित है कि जहां समस्त संसार के जलमय होने पर, स्थावर-संगम के नष्ट हो जाने पर, स्थल के जल के रूप में परिणत हो जाने पर बाल शरीरधारी हरि स्वयं सोते हैं।

स्वयमैवाखिल श्रेष्ठरततो अक्षयवटान्वित:।

कालिन्द्या: गंगाया वाण्या यथो तरसमन्वित:।।

प्रयाग स्वयं ही सर्वश्रेष्ठ है, जहां अक्षयवट है, गंगा यमुना और सरस्वती का संगम है। कुंभ से छलके अमृत कणों के स्मरण पर्व के साथ अक्षयता का बोध जुड़ गया है। परार्थ और परमार्थ की साधना, आमुष्मिक चिंतन, अनुष्ठान और आत्मत्याग के संदेश ही अमृत-कण हैं, परोपकार, स्वार्थत्याग और परमार्थ साधन ही वास्तविक मंत्र हैं जिनके सहारे मानवता अमरता प्राप्त कर सकती है। मठाम्नायों में संन्यासियों को अपने-अपने क्षेत्र में सदैव परिभ्रमण करने का आदेश दिया है। तत्-तत् क्षेत्र की आध्यात्मिक उन्नति और देशकालानुसार धर्म व्यवस्था का अनुचिंतन करने की दृष्टि से भी कुंभ पर्व का विशेष महत्व है।

शास्त्रीय मर्यादाओं की व्यवस्था का गहन चिंतन यहां पधारे धर्माचार्य करते रहे हैं। देश दशा के सुधार परिष्कार और उन्नयन के नि:स्वार्थ चिन्तन का यह पर्व है। यह धर्म चिन्तन ही मानव को निरंतर उदात्त मूल्यों के प्रति सचेत करता रहता है। यदि कोई समाज अपने धर्माष्ठिान और उसके शाश्वत तत्वज्ञान पर पड़े कुहासे और पंकिल संस्कारों के विनाश का प्रयास नहीं करता तो वह समाज जड़ीभूत या म्रियमाण हो जाता है। भारतीय ऋषि परंपरा ने इसीलिए सभी संप्रदायों के एकत्रीकरण के लिए कुंभ पर्व के माहात्म्य को प्रतिपादित किया था।

जहां तत्वज्ञानी मानवता के निकष पर पर तत्वों का आलोड़न-विलोड़न करते हैं, वहीं समाज भी धर्म की शाश्वतता से अपने को अनुप्राणित करके मानवता की अमरता का उद्घोष करता है। कुंभ पर्व का स्मरण करते ही अमृत कथा का स्मरण होता है। इस अमृत कथा की आवृत्ति हम प्रयाग जैसे अक्षय क्षेत्र में करके अपने हृदय को धर्मार्पित करके धन्यता की अनुभूति करते हैं।

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.