गुरु गोरखनाथ में रखा अटूट विश्वास
फतेहाबाद जिले के गांव गोरखपुर के निवासियों का अपने इष्टदेव गुरु गोरखनाथ में अटूट विश्वास है। ग्रामीण किसी भी नए कार्य की शुरूआत से पहले उनका सुमिरन करते हैं और कष्ट की घड़ी में वे उनके नाम का उच्चारण करते हैं।
हरि के प्रदेश हरियाणा की पावन धरती पर अनेक धार्मिक स्थल बने हुए हैं। हरियाणा में अलग-अलग क्षेत्र के निवासियों का अलग-अलग धार्मिक स्थलों के प्रति अटूट विश्वास एवं अगाध आस्था है। श्रद्धालु मान्यता के अनुसार अपने इष्ट की आराधना करते हैं और मन्नत मांगते हैं। हरियाणा में स्थित धार्मिक स्थल आपसी भाईचारे एवं सौहार्द के प्रतीक हैं। फतेहाबाद के गांव गोरखपुर में बना गुरु गोरखनाथ का प्राचीन मंदिर गोरखनाथ का धूणा पूरे उत्तरी भारत में प्रसिद्ध है।
यहां विशिष्ट अवसरों पर दूर-दराज से असंख्य श्रद्धालु धोक लगाने पहुंचते हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां आकर मांगी गई हर मुराद अवश्य पूरी होती है। यही कारण है कि श्रद्धालु साल में एक बार तो गुरु गोरखनाथ मंदिर में स्थित गोरखनाथ की कच्ची मढ़ी पर माथा अवश्य टेकते हैं। गांव गोरखपुर के बुजुर्ग निवासियों का कहना है कि इस गांव का नाम गुरु गोरखनाथ के कारण ही गोरखपुर पड़ा है।
गुरु गोरखनाथ के भक्तों का मानना है कि गुरु गोरखनाथ ने भ्रतृहरि को अपना शिष्य बनाया था जो अपना राज्य अपने भाई विक्रमादित्य को सौंपकर योगी बन गए थे। उन्हीं के समकालीन गोरखपुर का ये डेरा माना जाता है। गुरु गोरखनाथ ने सबसे पहले गांव में जाल के पेड़ के नीचे तपस्या शुरू की थी। वहीं पर अब गुरु गोरखनाथ की कच्ची मढ़ी बनी है। यहां हर रविवार को मेले का आयोजन होता है। इस दिन असंख्य श्रद्धालु गुरु गोरखनाथ की कच्ची मढ़ी पर जोत लगाकर धोक लगाते हैं और मन्नत मांगते हैं। जब यह मढ़ी बनी थी तब सिवाच गोत्र के लोगों ने गुरु गोरखनाथ की मढ़ी पर आकर सेवा शुरू की।
अब गोरखपुर के गुरु गोरखनाथ मंदिर में साल में दो बार महारूद्र यज्ञ होता है। मंदिर के महंत दशरथनाथ योगी का कहना है कि सावन व फाल्गुन शिवरात्रि के दिन महारूद्र पूर्णाहुति होती है। अपने-अपने समय में यहां रहे संतों ने महारूद्र यज्ञ करवाया। बाबा मंगलनाथ ने 14 बार, बाबा हनुमाननाथ ने तीन बार, बाबा मोहननाथ ने एक बार, बाबा संजयनाथ ने 16 बार, बाबा गणेशनाथ ने तीन बार, बाबा भोरनाथ ने एक बार और वर्तमान में गद्दीनशीन महंत बाबा दशरथनाथ ने 38 बार महारूद्र यज्ञ करके पूरे वातावरण को शुद्ध बनाने में विशेष योगदान दिया। इन सभी अवसरों पर श्रद्धालुओं ने भी बढ़-चढ़कर शिरकत की और अपनी तरफ से हर संभव सहयोग किया। गोरखनाथ मंदिर के परिसर में पंचमुखी हनुमान, दुर्गा मां, विष्णु लक्ष्मी, श्रीकृष्ण, गायत्री, काली, भैरव, रामदेव, शनिदेव, शिवशंकर भोलेनाथ एवं गोरखपुरिया बैल प्रतिष्ठित हैं। श्रद्धालु इन्हें देखकर भक्ति भावों में डूबकर इनकी पूजा-अर्चना करने लगते हैं।
श्रद्धालुओं का मानना है कि गांव गोरखपुर के पूर्व में स्थित गोरखनाथ कुई में स्नान करने से सभी चर्म रोग दूर हो जाते हैं। इस कुई पर हर अमावस के दिन आसपास व दूर-दराज के क्षेत्रों से श्रद्धालु स्नान करने पहुंचते हैं। गांव की कुंआरी कन्याएं कात्तक स्नान के लिए अल सुबह गीत गाते हुए इसी कुई पर पहुंचती हैं। श्रद्धालुओं का कहना है कि जब गुरु गोरखनाथ यहां तप करते थे तो यहां पानी की बहुत किल्लत रहती थी। इस समस्या के समाधान के लिए ही गुरु गोरखनाथ ने अपने चिमटे से जमीन खोदकर यहां कुई का निर्माण किया था। यह कुई शुरू से ही श्रद्धालुओं की अगाध आस्था की केंद्र है। एक बार इस कुई में मोर, बिल्ली व एक बछिया गिर गए थे। ये तीनों ही सकुशल बाहर निकाल लिए गए थे। श्रद्धालुओं की यह आस्था है कि ये तीनों गुरु गोरखनाथ की असीम कृपा से जीवित बाहर आ गए थे। पूरे हरियाणा में एक कहावत है कि ब्याह शादी व अन्य कार्यक्रम में यदि कोई कार्य होने में देरी करें तो कहा जाता है कि आज्या नैं क्यूं गोरखपुरिया बलद होग्या। दरअसल गांव गोरखपुर में पंडित देवतराम के घर गाय ने एक बछड़े को जन्म दिया। वह बछड़ा घर से बाहर नहीं निकलता था और दुधिया पानी पीकर अपनी प्यास बुझाता था। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय यह बछड़ा अपने आगे के दो पैर बाहर निकालता और फिर वापस पीछे कर लेता। जब यह बछड़ा बड़ा होकर यानी बैल (बलद) बनकर परलोक सिधारा था तो सूर्यास्त होने वाला था। श्रद्धालु अब इस बैल की पूजा-अर्चना भी करते हैं। पिछले 12 साल से मंदिर परिसर में बनी गोशाला में गायों की सेवा-संभाल की जा रही है।
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