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गीता दिखाती सही मार्ग

इंसान की पहचान उसके कर्म से होती है। सही कार्य करने पर उसका यश बढ़ता है जबकि गलती करने पर वह अशब्द का भागीदार बनता है। यही मार्ग व कार्य क्या है इसकी सीख कहीं और से नहीं बल्कि गीता से मिलती है। गीता प्रभु की वाणी है, जिसका अध्ययन करने से मनुष्य के हर कष्ट दूर हो जाते हैं।

By Edited By: Published: Thu, 14 Feb 2013 10:56 AM (IST)Updated: Thu, 14 Feb 2013 10:56 AM (IST)
गीता दिखाती सही मार्ग

कुंभनगर। इंसान की पहचान उसके कर्म से होती है। सही कार्य करने पर उसका यश बढ़ता है जबकि गलती करने पर वह अशब्द का भागीदार बनता है। यही मार्ग व कार्य क्या है इसकी सीख कहीं और से नहीं बल्कि गीता से मिलती है। गीता प्रभु की वाणी है, जिसका अध्ययन करने से मनुष्य के हर कष्ट दूर हो जाते हैं। यथार्थ गीता के रचयिता स्वामी अड़गड़ानंद ने अपने शिविर में प्रवचन के दौरान यह बातें कही। उन्होंने कहा कि गीता से सही और गलत के फर्क का पता चलता है। इससे इंसान को मोह, माया, भय से मुक्ति मिलती है। वह धर्म के मार्ग का अनुसरण करके निरंतर आगे बढ़ता है। साथ ही उसे प्रभु का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।

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सत्संग संगम तीर्थराज है- स्वामी व्यासानंद

सेक्टर 14 स्थित अंतरराष्ट्रीय संतमत सत्संग एवं ध्यान शिविर में स्वामी व्यासानंद जी महराज ने प्रवचन में बताया कि सत्संग ही संगम तीर्थराज है। प्रयागराज में तीन नदियां बहती हैं- गंगा, यमुना और सरस्वती। गंगा, यमुना को तो लोग देखते हैं, लेकिन सरस्वती के बारे में कहते हैं कि यह अंत: सलिला है, वह भीतर ही भीतर बहती है। इसी तरह सरस्वती धारा रूपी मानव की सुषुम्ना नाड़ी को पकड़कर जो चलते हैं, वे भीतर ही भीतर चलते चले जाते हैं। अंदर की सरस्वती की धारा को पकड़ना संभव नहीं है, लेकिन बारंबार ध्यान रूपी अभ्यास से इसको पकड़ा जा सकता है। यह सच्चे संत सद्गुरु के शरण में रहते हुए ही कठिन ध्यानाभ्यास एवं सत्संग से ही संभव है। संगम स्नान से तन धुलता है, सत्संग से मन तथा ध्यान से आत्मा पवित्र होती है।

सत्कर्म मात्र से मोक्ष प्राप्ति संभव- संत ज्ञानेश्वर

सदानंद तत्वज्ञान परिषद के पंडाल में महात्मा सेवानंद जी ने श्रद्धालुओं तत्वज्ञान कराया कि परमसत्य रूप परमात्मा को जान-देष, परख कर उन्हीं को समर्पित-शरणागत रहते हुए उन्हीं के लिए किया गया कर्म ही सत्कर्म है। पापकर्म से मानव जीवन का मंजिल (मोक्ष) कभी प्राप्त नहीं हो सकता है। यह ज्ञान और सत्कर्म से ही मिलेगा। पापकर्म और सुकर्म का सिद्धांत पारिवारिक-सांसारिक जीवन जीने वालों पर ही लागू हो सकता है, सत्कर्मी पर नहीं। उन्होंने समझाया कि कोई भी यह सोच सकता है कि जो व्यक्ति पारिवारिक संकुचित स्वार्थ रूप बंधनों से अपने को ऊपर उठाकर परमसत्य के सिद्धांत पर अपने जीवन को धर्म-धर्मात्मा-धरती रक्षार्थ निष्काम सेवाभाव से समर्पित या शरणागत कर चुका हो, उससे पापाचार की कल्पना नहीं की जा सकती, जिसकी सारी जिम्मेदारी भगवान रूप परमसत्य ले चुका हो, वह पाप-पापाचार नहीं हो सकता।

छुआछूत का भाव समरसता में बाधक- वेदांती जी

भक्ति वेदांत नगर काशी सेक्टर 11 में महामंडलेश्वर डा. स्वामी रामकमलदास वेदांती जी ने रामकथा में केवट प्रसंग की कथा सुनाई। कहा कि भगवान श्रीराम ने अवतरित होकर जाति-पाति व गरीब-अमीर के भेद को मिटाकर सच्ची मानवता की स्थापना की। प्रभु श्रीराम भक्ति के वशीभूत हैं, इसलिए वे वन जाते समय नाव से सुरसरि पार होने पर केवट के प्रेम भरे टेढ़े वचनों को सुनकर मुस्कुराते रहे और अपना चरणामृत प्रदान कर जाति-पाति, ऊंच-नीच के भेद को मिटाकर यह बताया कि प्रेम ही सच्ची आराधना है। यह भी समझाया कि जाति-पाति के आधार पर मानवता में ऊंच-नीच का भेद हमारी धर्म और सभ्यता के साथ-साथ राष्ट्र के प्रगतिशीलता में भी बाधक है। कहा कि कुंभमेला अनादिकाल से भेदभाव रहित मानव समाज की स्थापना का आदर्श उदाहरण रहा है। यहां संगम में स्नान करते समय भेदभाव की भावना कहां दिखती है। सब एक हैं। इसी तरह एकजुट होकर भेदभाव रहित मानव समाज की स्थापना का प्रयास करना चाहिए।

धर्म मर्यादा का पालन करना चाहिए- श्रीजी

सेक्टर छह में भागवत कथा सार एवं दिव्य सत्संग में भाटनी श्रीजी ने भक्तों को ज्ञान, कर्म तथा भक्ति तीनों के समन्वय का मर्म समझाया। बताया कि केवल कलियुग में ही नहीं बल्कि द्वापर, त्रेता, सतयुग में भी मनुष्य शांति, समाधान व आनंद का उपासक था। शांति, प्रेम मनुष्य को केवल इसी जन्म में और कुछ समय के लिए नहीं बल्कि चिरकाल टिकने वाला सुख चाहिए। जन्मना है, मरना है। यानी जन्म-मृत्यु का चक्र चलता ही रहना है परंतु मनुष्य की मांग कभी खत्म नहीं होगी। समुद्र, सूर्य, नदियां आदि सभी अपनी-अपनी मर्यादा में रहते हैं, इसलिए वे जीनवदाता बन जाते हैं। इसलिए हर जीव हो या कोई भी प्रकृति की चीज हो, सभी को मर्यादा में रहना चाहिए। ताकि धर्म की मर्यादा को पालन कर सबके हितकारी बन सकें।

प्रयाग में दूर होता है कष्ट- शुकदेव

निर्वाणी अखाड़ा बगही बाबा खालसा के महंत शुकदेव जी महाराज ने कहा कि प्रयागराज सृष्टि के प्रारम्भ से ऋषियों एवं यज्ञों के लिए प्रसिद्ध है। गंगा, यमुना एवं अदृश्य सरस्वती का संगम यहीं हुआ। इस पावन नगरी के दर्शन मात्र से मनुष्य के सारे कष्ट कट जाते हैं। कुंभ में संत-महात्माओं को वाहय आडम्बर से दूर रहकर देश के कल्याण के लिए आगे आना चाहिए, गंगा, बेटी, गौ की रक्षा के लिए सभी संत-महात्माओं को आगे आना चाहिए।

विचार करके करें कार्य- विजयकौशल

मनुष्य को जीवन में संतुलन और संयम रखना चाहिए। इसके लिए हर कार्य करने से पहले विचार कर लेना चाहिए। ऐसा न करने पर कोई भी मनुष्य संकट में फंस सकता है। बुधवार को विजय कौशल महाराज ने प्रवचन में यह बातें कही। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार लक्ष्मण के खिंची रेखा को पार कर के माता सीता मुश्किल में आ गयी थी। प्रसिद्ध रामकथा वाचक विजय कौशल महाराज ने बुधवार को प्रवचन में अरण्य कांड के प्रसंग को समझाते हुए कहा कि सृष्टि का विधान भी कभी- कभी प्रतिकूल नजर आता है। संत द्वारा बनाये गये नियम विधान पर चलना सीखो नहीं तो संकट में फंस जाओगे।

विश्व को विवेकानंद ने समझाया हिंदू धर्म- डॉ. गोपाल

हिंदू धर्म क्या है, विचार क्या है, जीवन क्या है, इन विषयों को सबसे पहले स्वामी विवेकानंद ने विश्‌र्र्व के सामने रखा। इसके बाद विश्‌र्र्व के लोग सनातन धर्म व संस्कृति की शक्ति से रूबरू हुए। छत्तीसगढ़ आश्रम में स्वामी विवेकानंद सार्धशती समारोह के तहत बुधवार को आयोजित संत सम्मेलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल ने यह बातें कही। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद के भाषण से वैज्ञानिक, राजनीतिक, उद्योगपति एवं आम जनमानस सभी प्रभावित हुए। इसके बाद भारत को नई पहचान मिली, उन्होंने छुआछूत, बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ चेतना जगाई। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद कहते थे कि कोई किसी भी जाति का हो, उसमें भेद नहीं होना चाहिए। क्योंकि हमारा देश एक हिंदू राष्ट्र है सबको हिंदू भाव से रहना चाहिए।

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