विश्वास की यात्रा
जीवन एक यात्रा की तरह है। कभी यह सहज लगती है, तो कभी दुर्गम। जब मन में उत्साह और विश्वास की ऊर्जा जागती है, तो जीवन की यात्रा कितनी भी दुर्गम हो, उसे हम खुशी-खुशी पूरा कर लेते हैं।
जीवन एक यात्रा की तरह है। कभी यह सहज लगती है, तो कभी दुर्गम। जब मन में उत्साह और विश्वास की ऊर्जा जागती है, तो जीवन की यात्रा कितनी भी दुर्गम हो, उसे हम खुशी-खुशी पूरा कर लेते हैं। चारधाम यात्रा को भी लोग विश्वास की ऊर्जा के साथ उत्साह से पूरा करते हैं। फिर यह ऊर्जा जीवन भर हमारे साथ चलती है। जीवन का हर कठिन और दुसाध्य लगने वाला काम हमारे लिए आसान हो जाता है। यह यात्रा पूरी करने के बाद जीवन की हर मुश्किल आसान लगने लगती है, क्योंकि हर वक्त विश्वास की शक्ति हमारे साथ रहती है। एक समय था, जब आने-जाने के संसाधन भी नहीं थे और चारधाम यात्रा बेहद कठिन मानी जाती थी, तब भी गृहस्थी की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाने के बाद दंपत्ति पैदल चारधाम यात्रा करते थे। उस समय, जो दंपत्ति सकुशल वापस लौट आते, उनके आने की खुशी में पूरा गांव उत्सव मनाता था। वर्ष 1962 के पहले यात्रा के रास्ते इतने आसान नहीं थे। परंतु चीन के साथ हुए युद्ध के उपरांत भारतीय सैनिकों की आवाजाही से तीर्थयात्रियों के लिए रास्ते आसान होते गए। आवागमन के साधनों में सुधार हुआ और आज चारधाम यात्रा तीर्थयात्रियों के बीच लोकप्रिय बन चुकी है। प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु विश्वास के सहारे इस यात्रा को पूरा करते हैं। 24 अप्रैल को यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने के साथ ही चारधाम यात्रा शुरू हो जाएगी। उत्तरकाशी में यमुनोत्री से शुरू होने वाली यह यात्रा गंगोत्री से केदारनाथ होते हुए बद्रीनाथ तक पहुंचती है। आम तौर पर लोग इस यात्रा की शुरुआत हरिद्वार से करते हैं, क्योंकि हरिद्वार को श्रीविष्णु [हरि] और शिव [हर] दोनों का द्वार माना जाता है। यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ का क्रम से दर्शन करने का भी एक दर्शन है। धर्मग्रंथों में यमुनाजी को भक्ति का उद्गगम माना गया है, जबकि गंगाजी को ज्ञान की अधिष्ठात्री। भक्ति से ही व्यक्ति ज्ञान की ओर प्रवृत्त होता है, इसलिए धर्मग्रंथ पहले यमुना जी [यमुनोत्री] के दर्शनों की सलाह देते हैं, इसके बाद गंगा [गंगोत्री] के। जब ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है, तब वैराग्य का भाव उत्पन्न होता है। मान्यता है कि वैराग्य भगवान केदारनाथ के दर्शनों से मिलता है। शास्त्रों में कहा गया है कि जब जीवन में कुछ पाने की इच्छा शेष नहीं रह जाती, तब भगवान बद्रीविशाल मोक्ष प्रदान करते हैं। यह एक जीवन यात्रा है, जिसमें ज्ञान से लेकर मोक्ष तक के पड़ाव हैं। यमुनोत्री धाम के पुरोहित खिलानंद उनियाल कहते हैं, यमुना को सूर्य की पुत्री और यम व शनिदेव की बहन कहा जाता है। यहां यमुनाजी के दर्शन, सूर्यकुंड व तप्तकुंड में स्नान, दिव्य शिला की पूजा का विशेष महत्व है। गंगोत्री धाम के कपाट अक्षय तृतीया को खुलते हैं। यहां के पुरोहित पं. संजीव सेमवाल बताते हैं, इस दिन श्रद्धालु मंदिर के गर्भगृह में पाषाण-मूर्ति एवं अखंड-ज्योति के दर्शन करते हैं। यह क्रम अक्षय तृतीया से गंगा सप्तमी [गंगा अवतरण दिवस] तक चलता है। केदारनाथ धाम में मुख्य मंदिर के पुजारी राजशेखर कहते हैं, केदारनाथ देश के 12 ज्योतिर्लिगों में से एक है, जिसके दर्शन से मन को सुकून मिलता है। चौथा बद्रीनाथ धाम मुक्ति का धाम माना जाता है। यहां के पुजारी केशव प्रसाद नंबूदरी कहते हैं, ग्रंथों में कहा गया है कि मुक्ति से पूर्व भक्ति, ज्ञान व वैराग्य की पात्रता होनी चाहिए। इसलिए भक्ति, ज्ञान व वैराग्य के लिए यमुनोत्री, गंगोत्री व केदारनाथ के दर्शन के बाद बद्रीनारायण के दर्शन करने से मुक्ति प्राप्त होती है। मान्यता है कि यात्रा के दौरान धामों के कपाट खुलने का पहला दिन विशेष महत्व का होता है। अब भले ही चारधाम यात्रा पहले जितनी कठिन नहीं रही, लेकिन इससे उपजी विश्वास की ज्योति जीवन भर तीर्थयात्री का मार्गदर्शन करती रहती है।
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