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काला अतीत है आजादी के बाद पहला कुंभ

तीन फरवरी 1954 को तड़के ही मौनी अमावस्या पर स्नान के लिए संगम पर जुटी लाखों स्नानार्थियों की भीड़ बदहवास होकर भागने लगी। नतीजा, घंटे भर के भीतर लाशों का ढेर लग गया। पुण्य कमाने आए हजारों लोग अपनों से दुबारा कभी नहीं मिल पाए।

By Edited By: Published: Thu, 14 Feb 2013 03:11 PM (IST)Updated: Thu, 14 Feb 2013 03:11 PM (IST)
काला अतीत है आजादी के बाद पहला कुंभ

इलाहाबाद [संदीप दुबे]। तीन फरवरी 1954 को तड़के ही मौनी अमावस्या पर स्नान के लिए संगम पर जुटी लाखों स्नानार्थियों की भीड़ बदहवास होकर भागने लगी। नतीजा, घंटे भर के भीतर लाशों का ढेर लग गया। पुण्य कमाने आए हजारों लोग अपनों से दुबारा कभी नहीं मिल पाए। उस समय डॉ. संपूर्णानंद सरकार मारे गए हजारों की संख्या को सैकड़ों में बताने की मशक्कत करती रही। हकीकत बयान करने पर मीडिया कैंप में घुसकर पुलिस ने पत्रकारों पर लाठियां भी बरसाई। हादसे के बाद देश-विदेश में मारे गए श्रद्धालुओं की संख्या का अनुमान लगाया जाता रहा। राजनीतिक दलों और मीडिया ने प्रदेश सरकार की जमकर आलोचना की। इस तरह आजादी के बाद का यह पहला कुंभ आज अतीत का स्याह पन्ना बन गया।

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कुंभनगर में लगी क्षेत्रीय-अभिलेखागार की प्रदर्शनी में मौजूद दस्तावेजों के अनुसार प्रदेश के उस समय के मुख्य सचिव केपी भार्गव ने तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाई। कमेटी में चेयरमैन जस्टिस कमलाकांत वर्मा, डॉ. पन्नालाल, मुख्य अभियंता सिंचाई विभाग एसी मित्रा शामिल थे। रामबहादुर सक्सेना को गैर सदस्यीय सचिव नियुक्त किया गया था। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि मेले की तैयारी में लगे विभागों का आपसी सामंजस्य न होना, स्नान घाट की लंबाई कम होना, अखाड़ों और श्रद्धालुओं के रास्ते पर अतिक्त्रमण, कमजोर पुलिस व्यवस्था, संगम रेलवे स्टेशन का गलत स्थान, रेलवे और सड़की की गलत क्रासिंग, परेड क्षेत्र में कैंप व दुकानों का होना और लोगों को रास्ता बताने वाले ज्यादातर बोर्ड का गलत स्थान पर लगा होना आदि हादसे का कारण बना था। हादसे के समय की मीडिया कवरेज के दस्तावेज इलाहाबाद पब्लिक लाइब्रेरी में भी मौजूद हैं।

जस्टिस वर्मा समिति के सुझाव-

कमेटी ने सुझाव दिया कि मेले की तैयारी के सभी विभागों में सामंजस्य होना चाहिए। अक्टूबर के पहले हफ्ते तक मेले की पूरी प्लानिंग कर मेला क्षेत्र का निरीक्षण हो जाए। वॉच टॉवर पर एसपी स्तर के अधिकारी को नियुक्त किया जाए। कंट्रोल रूम पर अनावश्यक लोगों का जमघट न हो। मेले में ऐसे अधिकारी कर्मचारी नियुक्त किए जाएं जो संगम क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति से वाकिफ हों। स्नान घाट की लंबाई ज्यादा से ज्यादा रखने का प्रयास होना चाहिए।

अतीत के आईने से-

1954 के कुंभ में मौनी अमावस्या पर मची थी भगदड़

मेला प्रबंधन में कमजोर पाया गया था मेला प्रशासन

घर से बुलाया और घाट से लौटाया-

72 साल के कृष्ण चंद्र तिवारी प्रतापगढ़ से अपने दादा (पिता जी) के साथ 1954 कुंभ नहान के लिए भाप वाली पैसेंजर गाड़ी से अमावस्या से एक दिन पहले फाफामऊ स्टेशन तक पहुंचे थे। स्टेशन से तमाम जत्थे पैदल ही संगम जा रहे थे। वह और दादा भी एक जत्थे के साथ हो लिए। देर शाम से चलना शुरू किया और आधी रात तक बख्शीबांध तक का सफर तय किया। कृष्ण चंद्र बताते हैं कि यहीं पर जत्था सुस्ताने के लिए रुका। दादा ने भी साथ लाई जूट की बोरिया और पुआल बिछाई। दाना-पानी के बाद जैसे लेटे वहीं सो गए। आंखे बदहवास भागे चले आ रहे लोगों की आवाज से खुली। सामने संगम से हुजूम का हुजूम भागा चला आ रहा था। संगम पर भगदड़ मच गई है और बहुत जानें चली गई हैं। वहीं से पैदल वापस हो लिए बिना संगम नहाए। दादा को यह बात पूरी जिंदगी खलती रही। जब संगम की बात चलती तो कहते गंगा माई ने घर से बुलाया और घाट से लौटा दिया।

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