गीता मंदिर में रम जाए सबका मन
ऋषि-मुनियों, तपस्वियों और साधु-संतों की पुण्य-स्थली के रूप में पहचानी जाने वाली हरियाणा प्रदेश की पवित्र धरा पर चारों दिशाओं में धार्मिक स्थलों के रूप में अनेक तीर्थ व मंदिर नजर आते हैं।
ऋषि-मुनियों, तपस्वियों और साधु-संतों की पुण्य-स्थली के रूप में पहचानी जाने वाली हरियाणा प्रदेश की पवित्र धरा पर चारों दिशाओं में धार्मिक स्थलों के रूप में अनेक तीर्थ व मंदिर नजर आते हैं।
प्रदेश का कोना-कोना किसी न किसी देवी व देवता की मान्यता और आस्था से जुड़ा हुआ है। हरियाणा में विभिन्न स्थानों पर बने धार्मिक स्थल यहां के लोगों की धार्मिक आस्था को प्रकट करते हैं। समय-समय पर यहां अनेक ऋषि-मुनियों ने तप किया और योग के बारे में जानकारी दी तथा उन्होंने योग विद्या को सब विद्याओं से श्रेष्ठ भी माना। योगियों के अनुसार आत्मा का परमात्मा से मिलन ही योग है और सात्विक बुद्धि के बिना परमात्मा का दर्शन असंभव है। इसीलिए योगी संत अपने भक्तों को योग विद्या के बारे में अवगत करवाते हैं। योग के प्रति ऋषि-मुनियों एवं साधु-संतों का शुरू से ही विशिष्ट लगाव रहा है। कई ऋषि महात्मा तो कड़कती ठंड में कई-कई घंटों तक पानी में बैठे रहते थे जो दृढ़ निश्चिय व योग अभ्यास से ही संभव हो पाता है। आज हरियाणा के अलावा देश भर में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में योग की बयार बह रही है। इसी कड़ी में योगीराज गीतानंद भिक्षु ने लोगों को योग ज्ञान देने में महती भूमिका निभाई जिन्होंने प्रदेश सहित देश की जनता को योग ज्ञान देकर कृतार्थ किया।
पानीपत में रेलवे रोड के निकट गीता कॉलोनी में गीतानंद भिक्षु के प्रयासों से गीता संस्था ने गीता मंदिर का निर्माण भी करवाया। इस मंदिर की स्थापना ई. 1964 में की गई थी। दो प्रवेश द्वारों वाले इस भव्य गीता मंदिर में आने वाला हर श्रद्धालु यहां आकर असीम शांति महसूस करता है और उसका मन मंदिर में ही रमने लगता है। गीता मंदिर में राधा-कृष्ण, मां भगवती, गणेश, शिव, हनुमान और नवग्रहों की प्रतिमाओं के साथ-साथ राम दरबार भी शोभायमान है। यहां गीतानंद भिक्षु की मुंह बोलती प्रतिमा को भी स्थापित किया गया है। गीता मंदिर के सचिव वेद चावला का कहना है कि गीता संस्था के उद्देश्य धार्मिक कर्म, संतों की सेवा, निर्धन सेवा, नि:शुल्क चिकित्सालय, गरीब बच्चों के लिए पाठशाला में नि:शुल्क शिक्षा देना और गऊसेवा करना आदि हैं। मंदिर के पास ही धर्मशाला का निर्माण भी करवाया गया है जिसमें कम खर्च पर गरीब कन्याओं की शादी करने की व्यवस्था की जाती है। मंदिर में सुबह-शाम आरती की जाती है। मंदिर के अंदर अन्न क्षेत्र भी स्थापित किया गया है जिसमें साधु-संतों और निर्धन तथा असहाय लोगों को तीनों समय नि:शुल्क भोजन करवाया जाता है। मंदिर में आने वाला हर श्रद्धालु गऊओं, साधु-संतों, असहाय व गरीब लोगों की सेवा करके अपने आप को कृतार्थ समझता है। गीतानंद भिक्षु ने आजीवन मानव कल्याण के कार्य किए। उन्होंने हरियाणा की जनता पर अपने अनमोल वचनों से अमृत वर्षा की और देश के अनेक हिस्सों में त्रिवेणी की धारा बहाकर अनेक श्रद्धालुओं को कष्टों से मुक्ति दिलाई तथा लोगों की असाध्य बीमारियों का भी इलाज किया।
गीता मंदिर, गीता आश्रम, गोशाला, संस्कृत विद्यालय, वृद्धाश्रम, असहाय राशन वितरण केंद्र व नि:शुल्क नेत्र जांच शिविर आदि सभी बहुमुखी सेवाओं के प्रमुख केंद्र बने हुए हैं जहां पर गीतोक्त कर्मयोग एवं नि:स्वार्थ सेवा का साकार रूप दिखाई देता है। गीतानंद गो-माता को मौनी संत की उपाधि देते थे। गोधन की सेवा करने के साथ-साथ उन्होंने गो-हत्या बंद करो जैसे आंदोलनों में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया।
उनका मानना था कि गो सेवा करने से मानव सब पापों से मुक्ति पाकर मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। गीतानंद महाराज आत्म स्थिति के जिस उच्च शिखर पर आसीन थे वहां अमीर-गरीब, जाति-पाति, मत व संप्रदाय तथा स्त्री-पुरुष आदि का कोई महत्व नहीं था। संसार में गीता ज्ञान की ज्योति प्रचंड कर ई. 2004 में वे हमेशा के लिए मौन समाधि में आरूढ़ हो गए। गीतानंद भिक्षु ने संस्कृत गीता की शुद्ध हिंदी भाषा में दोहा व चौपाइयों के रूप में गीता मानस की रचना की जिसको पढ़कर हर व्यक्ति अपने-आप को कृतार्थ समझता है। गीता कॉलोनी में बने इस प्रसिद्ध गीता मंदिर में गीतानंद भिक्षु की कृपा का साकार रूप दिखता है और मंदिर में आने वाला हर श्रद्धालु गीतानंद भिक्षु की प्रतिमा के आगे शीश झुकाना नहीं भूलता। अब तो इस मंदिर में दूर-दूर से आकर नतमस्तक होने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।
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