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संत की कृपा से मिलती है दिव्य दृष्टि

दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से नेत्रहीन एवं विकलांग वर्ग की सहायता के लिए आयोजित सात दिवसीय श्रीराम कथा के चौथे दिन की शुरुआत महिंदर गोयल ने दीप प्र”वलित कर की। इस दौरान साध्वी शचि भारती ने कहा कि सांसारिक दृष्टि का महत्व शारीरिक क्त्रियाकलापों को संचालित करती है, लेकिन दिव्य दृष्टि आध्यात्मिक उन्नति में सहायक है, जो संतों की कृपा से प्राप्त होती है।

By Edited By: Published: Sat, 12 May 2012 01:35 PM (IST)Updated: Sat, 12 May 2012 01:35 PM (IST)
संत की कृपा से मिलती है दिव्य दृष्टि

लुधियाना। दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से नेत्रहीन एवं विकलांग वर्ग की सहायता के लिए आयोजित सात दिवसीय श्रीराम कथा के चौथे दिन की शुरुआत महिंदर गोयल ने दीप प्र”वलित कर की। इस दौरान साध्वी शचि भारती ने कहा कि सांसारिक दृष्टि का महत्व शारीरिक क्त्रियाकलापों को संचालित करती है, लेकिन दिव्य दृष्टि आध्यात्मिक उन्नति में सहायक है, जो संतों की कृपा से प्राप्त होती है। उन्होंने श्रीराम कथा में बताया कि गुरुकुल से शिक्षा ग्रहण कर जब चारों भाई आयोध्या वापस आते हैं तो अयोध्या में खुशी का माहौल रहता है, तभी विश्वामित्र जी राजा दशरथ से यज्ञ की रक्षा के लिए श्रीराम जी और लक्ष्मण जी की मांग करते हैं। प्रभु श्रीराम वन में अपने कार्य की पृष्ठभूमि तैयार करते हुए मार्ग में ताड़का का वध कर यज्ञ की रक्षा करते हैं, उसके बाद विश्वामित्र जी श्रीराम और लक्ष्मण जी को साथ लेकर जनकपुरी में सीता जी के स्वयंबर में पहुंचते हैं। पुष्प वाटिका में माता सीता श्रीराम जी को देखती है तो अपनी दोनों आंखों को बंद कर लेती है। इसका भाव है कि अगर ईश्वर को देखना चाहता है तो बाहरी नेत्रों की जरूरत नहीं है। ईश्वर को देखने के लिए दिव्य दृष्टि की जरूरत है। यह दृष्टि इंसान को पूर्ण संत की कृपा से प्राप्त होती है। इस अवसर पर अरुणेश मिश्रा, प्रो. रजिंदर भंडारी, संजीव सूद बांका, कमल चेटली, प्रवीन कुमार तथा केके मरवाहा आदि उपस्थित हुए।

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