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सप्तम देवी- कालरात्रि [स्त्रोत मंत्र]

सप्तम देवी- कालरात्रि मां दुर्गा जी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है।

By Edited By: Published: Sun, 21 Oct 2012 08:07 AM (IST)Updated: Sun, 21 Oct 2012 08:07 AM (IST)
सप्तम देवी- कालरात्रि [स्त्रोत मंत्र]

सप्तम देवी- कालरात्रि

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मां दुर्गा जी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्माण्ड के सदृश्य गोल हैं। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें निरूसृत होती रहती हैं। इनकी नासिका के श्वांस प्रश्वांस से अग्नि की भंयकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ है। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में खड्ग तथा नीचे वाले हाथ में कांटा है। मां का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका नाम शुभंकरी भी है। अतरू इनसे किसी प्रकार भक्तों भयभीत होने अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है। दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है। इनकी उपासना से उपासक के समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है। ध्यान करालवदनां घोरांमुक्तकेशींचतुर्भुताम्।

कालरात्रिंकरालिंकादिव्यांविद्युत्मालाविभूषिताम्घ्

दिव्य लौहवज्रखड्ग वामाघोर्ध्वकराम्बुजाम्।

अभयंवरदांचौवदक्षिणोर्ध्वाघरूपाणिकाम्घ्

महामेघप्रभांश्यामांतथा चौपगर्दभारूढां।

घोरदंष्टाकारालास्यांपीनोन्नतपयोधराम्घ्

सुख प्रसन्न वदनास्मेरानसरोरूहाम्।

एवं संचियन्तयेत्कालरात्रिंसर्वकामसमृद्धिधदाम्घ् स्तोत्र हीं कालरात्रि श्रींकराली चक्लींकल्याणी कलावती।

कालमाताकलिदर्पध्नीकमदींशकृपन्विताघ्

कामबीजजपान्दाकमबीजस्वरूपिणी।

कुमतिघन्कुलीनार्तिनशिनीकुल कामिनीघ्

क्लींहीं श्रींमंत्रवर्णेनकालकण्टकघातिनी।

कृपामयीकृपाधाराकृपापाराकृपागमाघ् कवच घ् क्लींमें हदयंपातुपादौश्रींकालरात्रि।

ललाटेसततंपातुदुष्टग्रहनिवारिणीघ्

रसनांपातुकौमारी भैरवी चक्षुणोर्मम

कहौपृष्ठेमहेशानीकर्णोशंकरभामिनी।

वद्दजतानितुस्थानाभियानिचकवचेनहि। देवी का यह सातवां स्वरूप देखने में भयानक है, लेकिन सदैव शुभ फल देने वाला होता है। इन्हें शुभंकरीश् भी कहा जाता है। कालरात्रिश् केवल शत्रु एवं दुष्टों का संहार करती हैं। यह काले रंग-रूप वाली, केशों को फैलाकर रखने वाली और चार भुजाओं वाली दुर्गा हैं। यह वर्ण और वेश में अर्द्धनारीश्वर शिव की तांडव मुद्रा में नजर आती हैं। इनकी आंखों से अग्नि की वर्षा होती है। एक हाथ से शत्रुओं की गर्दन पकड़कर दूसरे हाथ में खड्ग-तलवार से उनका नाश करने वाली कालरात्रि विकट रूप में विराजमान हैं। इनकी सवारी गधा है, जो समस्त जीव-जंतुओं में सबसे अधिक परिश्रमी माना गया है।

उपासना मंत्र एकवेधी जपाकर्णपूरा नग्नाखरास्थिता।

लम्बोष्ठी कणिर्काकणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।

वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।

वरधनमूर्धधना कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।

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