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नौकरशाही ने जकड़ा गंगा को

ग्रंथ-पुराण बताते हैं कि हाहाकार करते निकली गंगा की वेगवती धारा को भगवान शिव ने अपनी जटाओं में बांध लिया था। शिव का यह गंगबंध लोक कल्याण के निमित्त था।

By Edited By: Published: Fri, 04 May 2012 11:08 AM (IST)Updated: Fri, 04 May 2012 11:08 AM (IST)
नौकरशाही ने जकड़ा गंगा को

वाराणसी। ग्रंथ-पुराण बताते हैं कि हाहाकार करते निकली गंगा की वेगवती धारा को भगवान शिव ने अपनी जटाओं में बांध लिया था। शिव का यह गंगबंध लोक कल्याण के निमित्त था। इसके विपरीत आज गंगा की अविरलता को नौकरशाहों ने स्वयं के स्वार्थ के चलते इस कदर जकड़ रखा है कि जाह्नवी अपने प्रवाह क्षेत्र में ही दम तोड़ने को मजबूर हैं। दरअसल यह नौकरशाहों की तिकड़म का ही नतीजा है कि संतों की तपस्या पर विचार करने की बात दूर,गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा देने वाले प्रधानमंत्री और विशेषज्ञ तक मूक दर्शक की भूमिका में आ गए हैं। विडंबना यह कि पर्यावरण मंत्रालय भी आज गंगा की बजाय बिजली परियोजनाओं के पक्ष में खड़ा नजर आता है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में 17 अप्रैल को राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की बैठक की विफलता और संतों की तपस्या के असर के सत्ता के गलियारे तक न पहुंच पाने का कारण भी यही है। ऐसे में तपस्या को और असरदार बनाने की जरूरत है। गंगा अभियान की अगली रणनीति का खुलासा करने से पहले बुधवार की आधी रात तक श्री विद्यामठ में चली मैराथन बैठक का सार तत्व यही था। बैठक में जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने खुलासा किया कि एक तरफ नौकरशाहों की गोल ने एम्स के डॉक्टरों को प्रभाव में लेकर स्वामी सानंद को एनजीआरबीए की बैठक में जाने से रोका तो दूसरी तरफ प्रधानमंत्री को यह समझाया कि आप जैसे महत्वपूर्ण व्यक्ति का 45 मिनट इंतजार में जाया कराया गया। कुल मिलाकर बैठक की विफलता का पूरा ठीकरा गंगा सेवा अभियानम के सिर फोड़ दिया गया। स्वामी अविमुक्तेश्वारानंद ने स्पष्ट किया कि गंगा सजीव हैं और इसी लिए इन्हे देवनदी का दर्जा दिया गया है। थोड़ी सी सेवा का बड़ा फल प्रदान करती हैं। तपस्या कभी निष्फल नहीं जाती है। निर्णय में विलंब की वजह यह भी हो सकती है कि मां गंगा हम सब के धैर्य, एकाग्रता, संकल्पबद्धता की परीक्षा ले रही हों। इस लिए हमें अपने संकल्प पर अडिग रहना चाहिए। स्वामी सानंद ने कहा कि 108 दिन की तपस्या ने खोया कम पाया ज्यादा। इस तपस्या ने कई बीज पैदा कर दिए हैं। जो धीरे-धीरे अंकुरित हो रहे हैं और इसके बेहतर परिणाम सामने आएंगे। यकीन है कि यह तपस्या न केवल गंगा की अविरलता लौटाएगी वरन नौकरशाहों के सिंडिकेट को भी तोड़ कर रहेगी।

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