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सबके लिए समान हैं भगवान का कृपाभाव

दुराचारी कभी भी स्वाभाविक रूप से परमात्मा की ओर नहीं देखता। लेकिन किसी विपत्ति में फंस या अन्य कारणवश अपने को बेसहारा मान यदि वह भगवान को पुकार ले तो भगवान उसकी पुकार पर भी उतना ही ध्यान देते हैं। क्योंकि सबके लिए समान है भगवान का कृपाभाव।

By Edited By: Published: Mon, 10 Dec 2012 11:04 AM (IST)Updated: Mon, 10 Dec 2012 11:04 AM (IST)
सबके लिए समान हैं भगवान का कृपाभाव

गया। दुराचारी कभी भी स्वाभाविक रूप से परमात्मा की ओर नहीं देखता। लेकिन किसी विपत्ति में फंस या अन्य कारणवश अपने को बेसहारा मान यदि वह भगवान को पुकार ले तो भगवान उसकी पुकार पर भी उतना ही ध्यान देते हैं। क्योंकि सबके लिए समान है भगवान का कृपाभाव।

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श्री शिरडी साई संध्या मंदिर स्थित द्वारकामाई सभागार से साप्ताहिक प्रवचन करते हुए श्री साई चरणानुरागी भाई डा. कुमार दिलीप सिंह ने कहा कि इसे समझना चाहिए। वास्तव में दुराचारी तो दया का पात्र है। चूंकि प्रभु प्रदत्त मनुष्य योनि में सदैव सुधार की संभावना है। इसलिए पूर्व जन्मों के अर्जित पुण्यों के प्रकट होते ही वह कभी भी भगवान की शरण जा सकता है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि अपने भीतर कोई अच्छाई न देख तथा इस कारण दीन भाव से भरा ऐसा पापी बड़ी दृढ़ता से भगवत्भजन में लग जाता है। दैन्यप्रियत्वम् भगवान को ऐसी दीनता अत्यंत प्रिय है। यद्यपि यज्ञ, दान, तप आदि क्रियाएं भी पवित्र हैं, परंतु जो अपने को सर्वथा अयोग्य समझकर आर्तभाव से भगवान के सन्मुख रो पड़ता है उसे भगवत्कृपाजन्य पवित्रता शीघ्र प्राप्त हो जाती है। इस प्रकार भगवान पर आश्रित हो जाने के कारण वह भी मनुष्य योनि का सदुपयोग कर भगवान का प्यारा भक्त हो जाता है।

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