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कानून का रक्षक बांट रहा गीता का ज्ञान

गीता के सार को आत्मसात करने के बाद हासिल संतोष और शांति को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प ले चुका कानून का एक रक्षक 30 वर्षो से लोगों के बीच गीता का ज्ञान बांट रहा है।

By Edited By: Published: Tue, 08 May 2012 11:22 AM (IST)Updated: Tue, 08 May 2012 11:22 AM (IST)
कानून का रक्षक बांट रहा गीता का ज्ञान

वाराणसी। गीता के सार को आत्मसात करने के बाद हासिल संतोष और शांति को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प ले चुका कानून का एक रक्षक 30 वर्षो से लोगों के बीच गीता का ज्ञान बांट रहा है। बात हो रही है 55 वर्षीय अधिवक्ता प्रेमचंद मेहरा की। स्थानीय कचहरी में प्रैक्टिस करने वाले प्रेमचंद मेहरा का गीता के प्रति लगाव इतना गहरा है कि यदि उन्हें लगा कि कोई शख्स ऐसी जगह से जुड़ा है जहां से समाज का कुछ भला हो सकता है, वह तत्काल पहुंच जाते हैं अपनी ज्ञान की पोटली के साथ। सादर नमस्कार के साथ अपने झोले से जैसे ही वह गीता निकालकर उपहारस्वरूप भेंट करते हैं, सामने वाला नतमस्तक हो जाता है। उपहार स्वरूप गीता देने के पीछे मंशा बस इतनी कि सामने वाले ने गीता के एक भी उपदेश को पढ़ लिया और अपने जीवन में उसे उतार लिया तो समाज का कल्याण हो जाएगा। बाबू जगजीवन राम, पं. कमलापति त्रिपाठी, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, सांसद डॉ. मुरली मनोहर जोशी समेत देश के तमाम ख्यातिलब्ध राजनेता, अधिकारी सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के न्यायाधीश से लेकर समाज के विभिन्न वर्ग से जुड़े करीब दस हजार लोगों को श्री मेहरा श्रीमद्भागवत गीता उपहारस्वरूप भेंट कर चुके हैं। पिछले 30 वर्षो में शायद ही बनारस का कोई कमिश्नर-डीएम, आईजी- डीआईजी या अन्य आला अफसर होगा जिसे प्रेमचंद मेहरा ने गीता का ज्ञान न बांटा हो। भले ही महीने की कमाई में थोड़ा फर्क आ जाए, दो रोटी कम खानी पड़े लेकिन वर्षो से हर माह गीता खरीदने व उपहार में देने का क्त्रम नहीं टूटा। बकौल प्रेमचंद, पंद्रह वर्ष की अवस्था में आते-आते गीता का एक-एक शब्द मेरे मन-मंदिर में ऐसा रच-बस गया कि मैं इससे निकल ही नहीं पाया। दुनिया के हर इंसान को किसी न किसी कार्य से शांति मिलती है, मुझे गीता बांटने से परम आनंद मिलता है। भौतिकवादी युग में मजाक बन गई पिता की प्रेरणा से महज छह वर्ष की आयु में गीता को कंठस्थ करने वाले प्रेमचंद मेहरा कहते हैं कि भौतिकवादी युग में गीता एक मजाक बनकर रह गई है। आज एक आम इंसान यहीं कहता है कि रिटायर्ड होने के बाद गीता को पढ़ूंगा। क्या गीता को पढ़ने की उम्र जिदंगी का आखिरी पड़ाव है या फिर जीवन की शुरूआत ताकि उसके उपदेशों को जीवन में ढालकर परम आंनद की प्राप्ति हो सके। यह सवाल मुझे हमेशा खटकता है। जीवन के सभी प्रश्न व उनके समाधान गीता में हैं फिर भी इंसान इसके मूल को भूल रहा है। स्वामी विवेकानंद ने गीता को अपने जीवन व्यवहार में उतारा था। दरअसल गीता जीवन के रहस्यों को सुलझाती है। भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकली गीता में संसार की सभी समस्याओं का समाधान निहित है। आज के जीवन संघर्ष में तो गीता की उपयोगिता और भी बढ़ जाती है। गीता के सिद्धांतों को देखा जाए, तो यह अध्यात्म भी है और व्यावहारिक होने के कारण विज्ञान भी। गीता का अनुकूल आचरण ही हमें आज के यांत्रिक और भौतिक युग में जीवन की चुनौतियों से पार लगाकर शांति प्रदान करता है।

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