गंगा में बढ़ते प्रदूषण से प्रभावित हो रहा जनजीवन
निर्मलता और पवित्रता के लिए जानी जाने वाली गंगा आज रसातल की ओर है। गंगा के पानी का रसायन शास्त्र बिगड़ चुका है और किनारे प्रभावित हो रहे हैं।
हापुड़। निर्मलता और पवित्रता के लिए जानी जाने वाली गंगा आज रसातल की ओर है। गंगा के पानी का रसायन शास्त्र बिगड़ चुका है और किनारे प्रभावित हो रहे हैं। बढ़ते प्रदूषण के कारण न सिर्फ गंगा में जलीय जीव व श्रद्धालु प्रभावित हो रहे हैं बल्कि इससे क्षेत्र की उपज पर भी प्रभाव के असर दिखाई देने शुरू हो गए हैं।
नाले में तब्दील हो रही गंगा --
बर्फ पिघलने और बरसात के दिनों में गंगा के जलस्तर में होने वाली बढ़ोत्तरी से स्थिति भले ही सुधरी हुई दिखाई देती हो। लेकिन हालात वास्तव में खराब है। पिछले वर्ष सीवरेज निस्तारण के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड (एनसीआरपीबी) ने राष्ट्रीय डवलेपमेंट एथोरिटी एएमबीए के माध्यम से सेक्टोरल मास्टर प्लान तैयार कराया था। जिससे नालों के माध्यम से गंगा और दूसरी नदियों में मिलने वाले अपशिष्ट जल का शोधन किया जा सके। लेकिन इस मास्टर प्लान का क्षेत्र में कोई प्रभाव नहीं है। एनसीआर क्षेत्र में केवल 12 प्रतिशत जल का ही शोधन करने का प्रबंध हो सका है। इसके अलावा पूरे अपशिष्ट पदार्थ को गंगा में बहाया जा रहा है। गंगा क्षेत्र में .923 बिलियन क्यूबिक कचरा गंगा में बहाया जा रहा है।
जल हो रहा गरम, आक्सीजन कम --
गंगा में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण से पानी का वास्तविक स्तर भी बदल गया है। पानी का तापमान बढ़ रहा और इसमें आक्सीजन की मात्रा कम हो रही है। पर्यावरणविद् प्रो. अब्बास अली ने बताया कि विज्ञानियों द्वारा हाल ही में किए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आयी है। गंगा का तापमान पिछले पंद्रह वषरें में दो डिग्री सेल्शियस से भी अधिक बढ़ गया है। जबकि इतने ही दिनों में आक्सीजन की मात्रा तीन मिलीग्राम प्रति लीटर तक कम हो चुकी है। जिसका प्रभाव जलीय जीवों पर भी पड़ रहा है। गंगा में डालफिल व मछलियों की संख्या में कमी आ रही है। इसके अलावा भविष्य में घातक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
गंगा का तापमान --
वर्ष तापमान
1985 9.5 - 14 डिग्री
1991 9.8 - 14.7 डिग्री
2011 10 - 16.8 डिग्री
गंगा के पानी में आक्सीजन --
वर्ष डिजाल्व आक्सीजन
1985 7.9 -12.3 मिलीग्राम/लीटर
1991 6.9 -10.7 मिलीग्राम/लीटर
2011 6.1 - 9.3 मिलीग्राम/लीटर
घट रही उर्वरा शक्ति --
गंगा का आसपास का क्षेत्र को उर्वरा शक्ति के रूप में पूरे भारत में जाना जाता है। क्षेत्र का किसान उर्वरा शक्ति के कारण ही समृद्ध है। लेकिन अब गंगा में व्याप्त प्रदूषण से इसका रासायनिक संतुलन बिगड़ रहा है। जिससे क्षेत्र की उर्वरा शक्ति प्रभावित होनी शुरू हो गई है। मृदा परीक्षण विभाग द्वारा कराए गए मृदा परीक्षणों में क्षेत्र की चालीस प्रतिशत जमीन की उर्वराशक्ति प्रभावित हुई है। कृषि विभाग की माने तो गंगा के आसपास के क्षेत्रों में पिछले पांच वषरें में उत्पादन क्षमता पांच से दस प्रतिशत तक घट गई है।
जागरण सुझाव --
गंगा का प्रदूषण न एक नदी मात्र का प्रदूषण नहीं है। गंगा के साथ न सिर्फ लोगों की आस्थाएं जुड़ी हैं। बल्कि गंगा हमारी संस्कृति और सभ्यता की पहचान है। ऐसे में गंगा प्रदूषण को लेकर आम लोगों व सरकारी तंत्र को जागरूक होना होगा। गंगा में मिलने वाले नालों को रोका जाए तथा इस पर बड़े स्तर गंगा की स्वच्छता अभियान छेड़ा जाए।
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