कोहरे की चादर और नैतिकता का पाठ
रात के दस बज रहे थे। कुंभ मेले को कोहरा अपनी आगोश में लेने लगा था। आ जा रहे लोग ओढ़े ऊनी कपड़ों में सिकुड़ते जा रहे थे। जो लोग दिन में गुनगुनी धूप होने के कारण कामचलाऊ कपड़ों में कुंभ मेला घूमने आए थे,
कुंभ नगर [संजय पांडेय]। रात के दस बज रहे थे। कुंभ मेले को कोहरा अपनी आगोश में लेने लगा था। आ जा रहे लोग ओढ़े ऊनी कपड़ों में सिकुड़ते जा रहे थे। जो लोग दिन में गुनगुनी धूप होने के कारण कामचलाऊ कपड़ों में कुंभ मेला घूमने आए थे, ठंड से सिकुड़ने लगे थे। सेक्टर तेरह की पटरी पर मैं भी चला जा रहा था। पुलिस कर्मियों ने अलाव की शरण ले रखी थी। एक कल्पवासी शिविर की ओर पहुंचा तो रामनाम संकीर्तन हो रहा था। मध्य प्रदेश के गुना से आयी यह संकीर्तन मंडली सर्दी से पूरी तरह बेपरवाह अपनी धुन में मगन थी।
वहां से सौ गज आगे बढ़ा तो कुछ शहरी परिवार आपस में चर्चा करते हुए पैदल आते मिले। थोड़ा ध्यान देने पर मालूम चला कि वे किसी फिल्म के संबंध में बात कर रहे हैं। सबसे बुजुर्ग ने कहा देखा सावित्री, मैं कहता था कि हमें बच्चों को महापुरुषों के जीवन पर आधारित बातें बतानी चाहिए। इसी बीच लगभग दस वर्ष के बालक ने, जिसका नाम मुकुंद था, दादा जी को टोका। बच्चे की उत्सुकता ने दादा जी को भी बोलने का मौका दे दिया। वे सरपट शुरू हो गए। बातों पर थोड़ा गौर करने पर पता चला कि यह परिवार सेक्टर चौदह में नैतिक फिल्मोत्सव देखकर लौट रहा था। जहां देश के महापुरुषों के जीवन पर आधारित फिल्मों का प्रदर्शन किया जा रहा है। छुट्टी का दिन होने के कारण ऐसे ही कुछ परिवार यहां फिल्म देखने पहुंचे थे। कुछ और परिवार फिल्म प्रदर्शन केन्द्र से बाहर निकलते दिखे। थियेटर की गर्मी के बाद बाहर की सर्द हवाओं से बच्चे ठिठुरने लगे। इसी दौरान एक बुजुर्ग की आवाज सुनायी दी। देखा पीयूष कहा था न कि सर्दी बढ़ जाएगी। चलो कोई बात नहीं मेरा साल ओढ़ लो। बच्चे ने दादा का शुक्त्रिया अदाकर साल ओढ़कर राहत महसूस की।
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