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साधना का मार्ग कठिन व लंबा: मोरारी बापू

मोरारी बापू ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने बहुत सी दिशाओं में यात्रा की और प्रत्येक दिशा में सत्य को ही पाया। गोस्वामी जी के जीवन में सत्य विभिन्न मार्गो से आया।

By Edited By: Published: Sun, 30 Sep 2012 12:38 PM (IST)Updated: Sun, 30 Sep 2012 12:38 PM (IST)
साधना का मार्ग कठिन व लंबा: मोरारी बापू

धर्मशाला, मुख्य संवाददाता। मोरारी बापू ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने बहुत सी दिशाओं में यात्रा की और प्रत्येक दिशा में सत्य को ही पाया। गोस्वामी जी के जीवन में सत्य विभिन्न मार्गो से आया।

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पुलिस ग्राउंड धर्मशाला में शनिवार को श्रीरामकथा के दौरान उपस्थित साधकों पर अमृतवर्षा करते हुए मोरारी बापू ने प्रार्थना भाव में कहा कि हम मनुष्यों के जीवन में भी काश कोई ऐसा मार्ग आ जाए और हमें सत्य की प्राप्ति हो जाए। साधना का मार्ग कठिन और लंबा होता है। बिना विचलित हुए साधक इस मार्ग पर निरंतर चलता रहे तो निश्चित ही उसे परम सत्य का ज्ञान होता है। साथ ही मनुष्य को जीवन के सत्य की भी अनदेखी नहीं करनी चाहिए।

बापू ने कहा कि मानव को सत्याग्रही बनने से पूर्व सत्याग्रही बनना चाहिए। सत्याग्रही बने बिना किया जाने वाला सत्याग्रह दो कौड़ी का भी नहीं है। भाव यह है कि मनुष्य को पहले स्वयं सत्य का साक्षात्कार करना चाहिए।

बापू ने कहा कि जिस प्रकार एक अध्यात्मिक व्यक्ति की साधना समयक होती है, उसी प्रकार मनुष्य को भी चाहिए कि वो अपने जीवन में तथा क्रियाकलापों में एक समयता बनाए रखे। समयता का अर्थ है मध्य मार्ग। जिस प्रकार वीणा के तार यदि कम कसे हों या ज्यादा कस दिए जाएं तो सुर नहीं निकलते। सुर निकालने के लिए अधिक और कम के मध्य की स्थिति श्रेष्ठ होती है, उसी प्रकार मनुष्य को भी जीवन में एक मध्य मार्ग अपनाकर चलना चाहिए।

शीतल संत मोरारी बापू ने कहा कि मनुष्य को चाहिए कि वो परिवार में सभी सदस्यों का हाथ पकड़े, पर उनसे हाथ भर की दूरी भी बनाए रखे। इस प्रकार सांसारिक जीवन में एक प्रकार की प्रमाणिक दूरी बनाए रखे। भाव यह है कि इतना नजदीक न हो कि दूर जाते हुए डर लगे व इतना दूर न रहो कि पास आते हुए भय सताए। यही प्रमाणिकता है। मानव शरीर में से कई पदार्थ बाहर निकलते हैं तथा सबका मूल जल है। क्या मानव शरीर से अमृत निकलता है। इस पर बापू ने कहा कि मानव शीर से अमृत आंखों और होठों से निकलता है। इसे नयनामृत व वाणी अमृत कहा जाता है। आप किसी की सेवा में पूरा शरीर अर्पित करो पर दृष्टि कुंठित हो तो क्या वो सेवा संतुष्टि देगी। उसी प्रकार किसी को सारी सुविधाएं दी जाएं पर दो मीठे बोल न बोले जाएं तो वो सुविधाएं कितनी सार्थक हैं।

बापू ने युवाओं से अपनी झोली फैलाकर मांग की कि तुम सहृदय से नौ दिन कथा में आओ और बदले में तुम्हें नया जीवन मिलेगा। यह नया सदाचारी जीवन पाकर युवा एक संतुष्ट जीवनयापन करें। कल्पना के सत्य पर बापू ने कहा कि किसी के बारे में शुभ कल्पना करो तो एक माह में सत्य हो जाती है। अपने बारे में की गई कल्पना को सत्य होने में कुछ ज्यादा समय लगता है। इसमें स्वार्थ आ जाता है, इसलिए इसमें साधक की क्षमतानुसार समय लगता है। सदजनों एवं संतों के कथनों को परमात्मा स्वयं सत्य करता है।

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