दस वर्ष में बना कटरा चर्च
सुगंधित व आकर्षक फूलों के बीच स्थित कटरा चर्च अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है। यह एकमात्र ऐसा स्थल है जहां आराधना के साथ लोगों के व्यक्तित्व का विकास भी कराया जाता है।
इलाहाबाद। सुगंधित व आकर्षक फूलों के बीच स्थित कटरा चर्च अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है। यह एकमात्र ऐसा स्थल है जहां आराधना के साथ लोगों के व्यक्तित्व का विकास भी कराया जाता है। सन् 1910 में यहां प्रार्थना शुरू हुई। दस वर्ष तक इसमें प्रार्थना करने की अनुमति नहीं थी। अपने समय का यह काफी भव्य चर्च माना जाता था क्योंकि तब कटरा में न तो भीड़-भाड़ थी और न ही मकान व दुकानें। कटरा चर्च की नींव अमेरिकन संस्था प्लसबेटिरियल ने सन् 1890 में रखी। इसे दस वर्ष में मात्र आठ हजार रुपये में बनाया गया।
चर्च के बनने के दस वर्ष बाद तक संस्था का प्रमुख लक्ष्य लोगों के व्यक्तित्व का विकास करना था इसलिए चर्च के साथ एग्रीकल्चर, ईसीसी, मेरी वार्ना मेकर आदि शैक्षिक संस्थाओं को भी शुरू किया गया। देश की आजादी के समय तो अंग्रेज ही इसमें पादरी बनते थे, परंतु आजादी के बाद सन् 1950 से भारतीय ईसाइयों को पादरी बनाया जाने लगा।
धार्मिक एकता की मिसाल थे पादरी तिवारी-
चर्च में वैसे तो दर्जनभर पादरी रहे। परंतु डीडब्ल्यू तिवारी 38 साल तक यहां पादरी रहे हैं। इनका कार्यकाल 1933 से 1971 तक था। इनकी गिनती सबसे लम्बे समय तक पादरी रहने वालों में होती है। यह एकमात्र ऐसे पादरी थे जिन्हें हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई धर्म की गहराई से समझ थी।
कैरल सिंगिंग की धूम-
कटरा चर्च में क्रिसमस की खुशियां अभी शुरू हो गई हैं। चर्च में शाम को कैरल सिंगिंग का आयोजन किया जा रहा है। इसमें भारी संख्या में मसीही समुदाय के साथ दूसरे धर्म के लोग भी जुटते हैं।
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