बीस करोड़ भक्त हैं बाबा के
अपने हाथों से खेती करके तरह-तरह की फसलें लेने वाले बाबा जय गुरुदेव बेहद परिश्रमी तो थे ही, वह दान भी देने वाले के पास जाकर लेते थे और अपने सत्संग के दौरान लोगों के पास जाकर उन्हें आशीर्वाद देते थे।
मथुरा। अपने हाथों से खेती करके तरह-तरह की फसलें लेने वाले बाबा जय गुरुदेव बेहद परिश्रमी तो थे ही, वह दान भी देने वाले के पास जाकर लेते थे और अपने सत्संग के दौरान लोगों के पास जाकर उन्हें आशीर्वाद देते थे। भंडारे में कभी अगर कभी कोई चोर-उचक्का पकड़ा जाता तो उसे दोनों टाइम प्रवचन सुनवाए जाते, प्रसाद ग्रहण कराया जाता, इससे कई का तो हृदय परिवर्तन तक हो गया। यही वजह रही कि देश-विदेश में बाबा के अनुमानत: बीस करोड़ अनुयायी बन गए। जय गुरुदेव ने कभी किसी चैनल पर अपने सत्संग आदि का प्रसार नहीं कराया। सादगी और संस्कार में भी उनका कोई सानी नहीं था। मधुबन गांव के बाहर हाईवे स्थित अपने आश्रम को उन्होंने अपने हाथों से खड़ा किया। एक समय था, जब न इतने अनुयायी थे और न ऐसी रंगत थी। तब भी सुबह चार बजे उठकर खेती-क्यारी करने निकल जाते। वह जिस कुटिया में आजीवन रहे, उसमें हमेशा गोबर का लेपन होता रहा। न उसमें बिजली का बल्ब रहा और न ही कोई आधुनिक तामझाम। 40 साल से बाबा से जु़ड़े दरभंगा के अजीत कुमार कहते हैं कि सत्संग के समय जब लाखों लोग भंडारे में जुटते थे तो उठाईगीर, चोर-उचक्के भी बहुत आ जाते थे। इनके लिए बाबा अस्थायी जेल बनवाते और उनका सुरक्षा फोर्स भी रहता। जो पकड़ा जाता, उसके साथ कतई मारपीट नहीं की जाती बल्कि उसकी सजा यही होती कि वह दोनों वक्त सत्संग सुनें और प्रसाद ग्रहण करे। इससे कई चोरों का तो बाद में ह्रदय परिवर्तन हो गया और बाद के भंडारों में जेल का सुरक्षा अधिकारी उन्हें ही बनाया गया। इसी तरह बताते हैं कि बाबा को नेपाल का एक डाकू जब मिला तो इतना प्रभावित हुआ कि उसका ह्रदय परिवर्तन हो गया। वह उसके बाद तो बाबा की सुरक्षा सेवा में बना रहा। हैदराबाद के गुप्ता जी हों या पूना के संसार माहिते, बस्तर की आदिवासी जमाली हो या दिल्ली के सियाराम, सबको भरोसा है कि बाबा हमेशा उनके साथ रहेंगे और पहले की तरह ही विपत्ति में काम आएंगे।
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