देसी संत, विदेशी सज्जा
मां गंगा का किनारा और तंबुओं की नगरी। तीथरें के राजा प्रयाग के आंगन में बसने वाली यह नगरी धर्म और संस्कृति के साथ साथ विलासिता और एश्वर्य के मामले में भी दुनिया में खासी निराली होने जा रही है।
इलाहाबाद। मां गंगा का किनारा और तंबुओं की नगरी। तीथरें के राजा प्रयाग के आंगन में बसने वाली यह नगरी धर्म और संस्कृति के साथ साथ विलासिता और एश्वर्य के मामले में भी दुनिया में खासी निराली होने जा रही है। इस आध्यात्मिक नगरी में पहुंचने वाले संत रेती में धूनी नहीं रमाएंगे वरन आलीशान महलों में रहेंगे। इसमें गलीचा ईरान का तो सजावट के फूल स्विट्जरलैंड से मंगा कर लगाये जाएंगे। कुंभ मेला 2013 में भूमि पूजन के साथ ही आलीशान महल बनवाने की शुरुआत हो गई है। अखाड़े सिर्फ एक माह के लिए ही बनने वाले इन महलों पर लाखों रुपये खर्च करने जा रहे हैं।
कुंभ नगरी में अखाड़ों का साम्राज्य 75 बीघे जमीन में फैला रहेगा। पेशवाई परंपरा तक विदेशों में बसे अखाड़ों के पदाधिकारी भी कुंभ क्षेत्र में आ जाएंगे। उनके साथ होंगे अखाड़ों के वैभव को बढ़ाने के साजो-सामान भी पहुंच जाएंगे। श्री पंच निर्मोही, दिगंबर व निर्वाणी के संयुक्त प्रधानमंत्री धर्मदास यह बताना नहीं भूलते कि उनके अखाड़े की शाखाएं पाकिस्तान में भी हैं। वहां से भी संत आते हैं और अपने साथ साजो-सामान के सारे सामान लाते हैं। इसमें विभिन्न प्रकार के आभूषण से लेकर संतों के काम आने वाले विशेष प्रकार के छत्र भी रहते हैं। अखाड़ों की सजावट में कोई कमी रह न जाए, इसके लिए बाजार से भी किराये पर सामान जुटाया जाता है। इसके लिए ऊंची से ही ऊंची कीमत अदा की जाती है।
जूना अखाड़े के संत पशुपति गिरि बेहद उत्साहित इस बात से हैं कि हर बार की तरह इस बार भी जूना अखाड़े की शोभा बढ़ाने के लिए देश के कोने-कोने और विदेशों से संत आ रहे हैं। बताया कि हालैंड में बसे शाखा के कई ऐसे पदाधिकारी हैं, जो कुंभ में अपने साथ बेहद कीमती वस्तु लाते हैं। निरंजनी अखाड़े के महंत रवीन्द्र पुरी के मुताबिक उनके अखाड़े के गुजरात के महामंडलेश्वर बालका नंद गिरि जी महाराज के विदेशों में जितने शिष्य हैं, उतने किसी के पास नहीं हैं। ये कुंभ में बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। वह भी अखाड़ों को भव्यता प्रदान करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते। उदाहरण स्वरूप जापान में रहने वाली निरंजनी अखाड़े की मंडलेश्वर ताइकोवा भी कुंभ मेले में अपने पूरे लाव-लश्कर के साथ आती हैं। उनकी उपस्थिति मात्र से ही अखाड़े का वैभव दमक उठता है।
[आशुतोष तिवारी]
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