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हादसों से भरी पड़ी है कुंभ की कहानी

महाकुंभ में मौनी अमावस्या के दिन रेलवे स्टेशन पर हुआ हादसा कोई पहला नहीं है। ऐसे हादसे भीड़भाड़ वाले इस महापर्व में हमेशा होते रहे हैं, इसके बावजूद इन हादसों से प्रशासन कोई सबक अब तक नहीं ले पाया है।

By Edited By: Published: Tue, 12 Feb 2013 01:15 PM (IST)Updated: Tue, 12 Feb 2013 01:15 PM (IST)
हादसों से भरी पड़ी है कुंभ की कहानी

कुंभनगर। महाकुंभ में मौनी अमावस्या के दिन रेलवे स्टेशन पर हुआ हादसा कोई पहला नहीं है। ऐसे हादसे भीड़भाड़ वाले इस महापर्व में हमेशा होते रहे हैं, इसके बावजूद इन हादसों से प्रशासन कोई सबक अब तक नहीं ले पाया है।

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सन् 2003 के नासिक सिंहस्थ कुंभ में अंतिम शाही स्नान के दौरान हुए हादसे में 39 श्रद्धालु मारे गए थे। यह हादसा कुछ संतों द्वारा चांदी के सिक्के लुटाने के कारण हुआ था, जिसे लूटने के लिए श्रद्धालु एक-दूसरे पर टूट पड़े और भगदड़ में कई महिलाओं, बच्चों व बुजुर्गो को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। कुंभ में हादसों का यह सिलसिला काफी पुराना है, जिनका उल्लेख डॉ. बिंदूजी महाराज बिंदू की पुस्तक कुंभ महापर्व और अखाड़े में विस्तार से मिलता है। इनमें से कुछ हादसे प्रशासन की लापरवाही से हुई हैं तो कुछ अखाड़ों के आपसी संघर्ष के परिणामस्वरूप । 1998 के हरिद्वार कुंभ के दूसरे शाही स्नान के दौरान संन्यासी अखाड़ों की आपसी भिड़ंत में पुलिस को गोलीबारी करनी पड़ी । इस गोलीबारी में दर्जनों नागा संन्यासी मारे गए थे। पुलिस एवं आम श्रद्धालुओं को भी जख्मी होना पड़ा था।

सन् 1986 के हरिद्वार महाकुंभ में हुआ हादसा वीवीआईपी श्रद्धालुओं के कुंभ स्नान प्रेम के कारण हुआ । इस कुंभ के मुख्य पर्व स्नान 14 अप्रैल, 1986 को उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह सहित कई राज्यों के मुख्यमंत्री एवं दो दर्जन से ज्यादा सांसद स्नान करने आ धमके । उन्हें हर की पैड़ी पर स्नान कराने हेतु रास्ता सवा तीन घंटे तक बंद रखा गया । इस कारण भीड़ का दबाव बढ़ने से आगे खड़े कुछ लोग गिर गए और भगदड़ मच गई । इस भगदड़ में करीब 200 लोग मारे गए थे। इस दुर्घटना की जांच के लिए बनी श्री वासुदेव मुखर्जी रिपोर्ट में कहा गया था कि मुख्य स्नान पर्व पर अतिविशिष्ट लोगों को नहीं आना चाहिए। हरिद्वार का कुंभ 1950 एवं 1927 में भी भगदड़ के कारण कलंकित हो चुका है। इन दोनों कुंभों में भी भगदड़ में सैकड़ों लोग मारे गए थे।

इसी पुस्तक में डॉ.बिंदू ने कुंभ के दौरान हुए कुछ प्राचीन संघर्षो का भी हवाला दिया है। उनके अनुसार 1879 में हरिद्वार में एवं 1838 में ˜यंम्बकेश्वर कुंभ के दौरान अखाड़ों के आपसी संघर्ष में काफी लोग मारे गए थे। हरिद्वार में 1760 एवं 1690 में ऐसा ही संघर्ष हुआ था। सन् 1666 के हरिद्वार कुंभ में औरंगजेब के सैनिकों ने आक्त्रमण कर दिया था, जिनका मुकाबला संन्यासियों एवं वैष्णवों ने मिलकर किया था। सन् 1398 के हरिद्वार अर्धकुंभ के अवसर पर तो विदेशी आक्रांता तैमूर लंग ने यात्रियों को लूटा एवं सैकड़ों यात्रियों को मौत के घाट उतार दिया था। सन् 1310 के हरिद्वार कुंभ में महानिर्वाणी अखाड़े के 22 हजार नागाओं ने कनखल में रामानंदी वैष्णवों पर हमला कर दिया था । दोनों संप्रदायों का युद्ध करीब एक सप्ताह चला था। इस संघर्ष में भी काफी लोग मारे गए थे।

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