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बैकुंठ चतुर्दशी : कमल नयन प्रभु की आराधना करें

एक बार देवर्षि नारद ने श्रीविष्णु से सरल भक्ति कर मुक्ति पा सकने का मार्ग पूछा। तब श्रीविष्णु बोले, हे नारद! कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन कर श्रद्धा-भक्ति से मेरी पूजा करते हैं, उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। लेकिन, पूजा रात्रिकाल में की जानी चाहिए।

By Edited By: Published: Mon, 26 Nov 2012 01:19 PM (IST)Updated: Mon, 26 Nov 2012 01:19 PM (IST)
बैकुंठ चतुर्दशी : कमल नयन प्रभु की आराधना करें

बैकुंठ चतुर्दशी-

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देहरादून। एक बार देवर्षि नारद ने श्रीविष्णु से सरल भक्ति कर मुक्ति पा सकने का मार्ग पूछा। तब श्रीविष्णु बोले, हे नारद! कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन कर श्रद्धा-भक्ति से मेरी पूजा करते हैं, उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। लेकिन, पूजा रात्रिकाल में की जानी चाहिए।

एक बार श्रीविष्णु देवाधिदेव का पूजन करने के लिए काशी पधारे। वहां मणिकार्णिका घाट पर स्नान कर उन्होंने एक हजार स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया। लेकिन, जब वे पूजन करने लगे तो महादेव ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने को एक कमल का पुष्प कम कर दिया। यह देख श्रीहरि ने सोचा कि मेरी आंखें भी तो कमल जैसी ही हैं और उन्हें चढ़ाने को प्रस्तुत हुए। तब महादेव प्रकट हुए और बोले, हे हरि! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब बैकुंठ चतुर्दशी कहलाएगी। इस दिन व्रतपूर्वक पहले आपका पूजन करने वाला बैकुंठ को प्राप्त होगा।

कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी श्रीहरि और महादेव के ऐक्य का प्रतीक है। निर्णय सिंधु के अनुसार जो एक हजार कमल पुष्पों से श्रीविष्णु के बाद शिव की पूजा-अर्चना करते हैं, वह भव-बंधनों से मुक्त हो बैकुंठ धाम पाते हैं। इस दिन व्रत कर तारों की छांव में सरोवर, नदी इत्यादि के तट पर 14 दीपक जलाने की परंपरा है। स्मृतिकौस्तुभ और पुरुषार्थ चिंतामणि के अनुसार इसी दिन भगवान शिव ने करोड़ों सूर्यो की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र श्रीविष्णु को प्रदान किया था।

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