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त्रिपुर बाला शक्ति पीठ की अलग है पहचान

मां श्री त्रिपुर बाला शक्ति पीठ की क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में अलग पहचान है। नवरात्र के शुरुआत से ही यहां देश के कोने-कोने से श्रद्धालुओं की भीड़ जुटनी शुरू हो जाती है।

By Edited By: Published: Fri, 12 Apr 2013 03:33 PM (IST)Updated: Fri, 12 Apr 2013 03:33 PM (IST)
त्रिपुर बाला शक्ति पीठ की अलग है पहचान

देवबंद। मां श्री त्रिपुर बाला शक्ति पीठ की क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में अलग पहचान है। नवरात्र के शुरुआत से ही यहां देश के कोने-कोने से श्रद्धालुओं की भीड़ जुटनी शुरू हो जाती है।

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मां श्री त्रिपुर बाला सुंदरी शक्ति पीठ की स्थापना आदि अनादी काल से पूर्व हुई थी। जहां आज यह शक्ति पीठ विराजमान है, पुराणकाल में यहां घना जंगल था। इस कारण यह देवी वन कहलाता था। उन दिनों पतित पावनी गंगा भी इसी क्षेत्र से होकर बहती थी। देवी कुंड का भी एक अपना अलग ही महत्व है, क्योंकि महाभारत काल में पांड़व भी अपने अज्ञात वास की कुछ अवधि में यहां रुके थे। वीर अर्जुन ने भी इसी दौरान यहीं शक्ति साधना की थी। मां श्री बाला सुंदरी महाशक्ति जगदंबा का एक रूप है। ब्रह्म, विष्णु ओर रूद्र ये तीनों पुर जिसमें समाहित है, वह त्रिपुर मां बाला सुंदरी है। इतना ही नहीं चैत्र मास की चौदस पर यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।

मेले से एक दिन पूर्व आता है आंधी तुफान-

मां श्री त्रिपुर बाला सुंदरी शक्ति पीठ की एक रहस्यपूर्ण बात यह है कि पीठ पर पूजा के मुख्य दिन चैत्र चौदस पर लगने वाले मेले की रात से पूर्व यहां पर आंधी व तूफान आता है तथा भारी वर्षा भी होती है। जिसके संदर्भ में मंदिर समिति के अध्यक्ष पंडित सतेंद्र शर्मा का कहना है कि ऐसा इसलिए होता है कि इस दौरान मां की बहनों का आना जाना होता है। जो सदैव शक्ति पीठ में ही विराजमान रहती हैं।

मां ने भंडसासुर का किया था वध- देवी कुंड का इतिहास में एक अलग ही महत्व है। क्योंकि इसी स्थान पर श्री त्रिपुर मां बाला सुंदरी ने महा दानव भंडसासुर का वध किया था, जो एक 105 ब्रह्मडों का अधिपति था।

देव भूमि का मिले दर्जा- मंदिर समिति के अध्यक्ष पंडित सतेंद्र शर्मा का कहना है कि आज तक भी किसी भी सरकार ने मंदिर के सौंदर्यीकरण के लिए कोई सहायता नहीं की। मंदिर की देखरेख का सारा खर्च मंदिर समिति स्वयं वहन कर रही है। वहीं पंडित गौरव विवेक का कहना है कि प्रदेश सरकार को इसका महत्व समझते हुए देवबंद को देव भूमि का दर्ज दे देना चाहिए।

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