थिरकते कदम, झंकृत होते मन के तार
पर्वतीय महासभा सांस्कृतिक मंच के कलाकारों ने होली आई रे महोत्सव के दूसरे दिन भी विस अध्यक्ष गोविंद सिंह गुंजवाल के आवास समेत विभिन्न स्थानों पर फाग का उल्लास बिखेरा। पारंपरिक वस्त्रों में सजी होल्यारों की टोली और ढोल-मजीरे की थाप पर थिरकते कदम वातावरण को श्रृंगारित बना रहे थे।
होली आई रे कन्हाई रंग बरसे.
देहरादून। पर्वतीय महासभा सांस्कृतिक मंच के कलाकारों ने होली आई रे महोत्सव के दूसरे दिन भी विस अध्यक्ष गोविंद सिंह गुंजवाल के आवास समेत विभिन्न स्थानों पर फाग का उल्लास बिखेरा। पारंपरिक वस्त्रों में सजी होल्यारों की टोली और ढोल-मजीरे की थाप पर थिरकते कदम वातावरण को श्रृंगारित बना रहे थे।
बिखरी भोजपुरी गीतों की छटा-
हिंदू-मुस्लिम एकता मंच की ओर से ब्रंापुरी में आयोजित होली मिलन समारोह में भोजपुरी बिरहा गायक विपिन बिहारी पाठक (मऊ), गायिका सरोज सरगम (देवरिया) एवं साथियों ने भोजपुरी गायन की छटा बिखेरी। जबकि, सुल्तानपुर के इकबाल शाबरी एवं साथियों ने कव्वाली गायन से वाहवाही लूटी।
चटकीले रंग और चटपटी चाट
पुरोहित जन कल्याण भ्रातृ समिति के होली मिलन समारोह से रविवार को हिंदी भवन गुंजायमान रहा। समिति के सचिव प्रेम पुरोहित राही ने बताया कि इस मौके पर पारंपरिक होली गीतों की छटा बिखरी, वहीं परिचय व अन्य कार्यक्रम भी हुए।
उमंगों एवं तरंगों की मस्ती
कपड़ा कमेटी की ओर से एक होटल में आयोजित होली मिलन कार्यक्त्रम में उमंगों एवं तरंगों का मनमोहक दृश्य साकार हुआ।
नैन नचाइ, कहा मुसुकाइ, लला फिर.
ढोल-दमाऊ और मशकबीन के साथ हुड़के की थाप पर बिखरता फाल्गुनी उल्लास। इसलिए कदम ही नहीं थिरकते, बल्कि हृदय के तार भी झंकृत होते हैं। होली गीतों की मधुर लहरियां कानों में पड़ते ही हम उस दौर में लौटने लगते हैं, जब परंपराएं जीवन का अभिन्न हिस्सा हुआ करती थीं।
सीधे चले चलते हैं पौराणिक टपकेश्वर महादेव मंदिर, जहां हमारी पहचान रंगमंच संस्था कुमाऊंनी खड़ी होली की छटा बिखेर रही है। शुरुआत ब्रज के होरी गीत ब्रज में होली रे रसिया से हुई। फिर होल्यारों की टोली ने शिव खेलत फाग गौरा के संग में, जोगी आयो शहर में व्यापारी जैसे गीतों से वातावरण में फाल्गुनी उल्लास घोल दिया। फिर सभी ने एक-दूसरे पर अबीर-गुलाल लगाकर आचार्य बिपिन जोशी से गुड़ का शगुन लिया।
हंसी की फुहार और रंगों की बहार के साथ द्रोणनगरी में कुमाऊं की बैठी होली की छटा बिखर रही है। पारंपरिक होली गीतों की रंगारंग प्रस्तुतियां ऐसा समा बांध देती हैं कि वातावरण फाल्गुनी फुहारों में सराबोर हो उठता है। ऐसे ही रंग रविवार को राजधानी में बिखरे। इस मौके पर आमा बड़बाज्यूक (वृद्धजनों) का सम्मान भी किया गया।
कूर्माचल सांस्कृतिक एवं कल्याण परिषद कांवली शाखा की ओर से जीएमएस रोड स्थित एक फार्म हाउस में आयोजित होली मिलन समारोह का शुभारंभ विस अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल के हाथों दीप प्र”वलन के साथ हुआ। फिर होली गीत केसर रंग में अंगिया भिगोई मोरी के साथ बैठी होली आरंभ हुई। होल्यारों ने होली गीत लाल गुलाबी रंग डारो रे, होली आई रे रसिया पर नृत्य की मनोहारी प्रस्तुति दी।
होली खेलत नंदलाल ब्रज में, टक टका टक कमला बडूली लागी रे जैसी प्रस्तुतियों ने तो महफिल को झुमा दिया। महिलाओं ने गीत हम छू कुमैया रेजिमेंट प्रस्तुत कर माहौल में वीर रस का संचार किया। इस मौके पर परिषद के अध्यक्ष प्रकाश चंद्र लोशाली ने बताया कि बरसाने की होली के बाद कुमाऊंनी होली अपनी सांस्कृतिक विशिष्टता के लिए प्रसिद्ध है। उन्होंने कहा कि होली की यह रवायत महज महफिल ही नहीं, संस्कार भी है।
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