..जब ख्वाजा को मिला भारत जाने का गुप्त संकेत
ख्वाजा गरीब नवाज जब बिलादे-इस्लामिया से ज्ञान तक, अंतश्चेतना के मोती एकत्र करके बैतुल्लाह की जियारत के पश्चात मदीना पहुंचे तो वहां पहुंचकर उन्हें भारत जाने का गुप्त संकेत मिला।
ख्वाजा गरीब नवाज जब बिलादे-इस्लामिया से ज्ञान तक, अंतश्चेतना के मोती एकत्र करके बैतुल्लाह की जियारत के पश्चात मदीना पहुंचे तो वहां पहुंचकर उन्हें भारत जाने का गुप्त संकेत मिला। चाहे वह संकेत स्वप्न में मिला हो, दिल में उपजा हो या आत्मज्ञान के रूप में हुआ हो। हजरत ख्वाजा अजमेरी ने मदीने से भारत की ओर यात्रा आरंभ की। ख्वाजा साहब का जीवन एक शिक्षा और आदर्श के रूप में है। इनके शिष्यों ने ख्वाज़ा के चमत्कार के चाहे कितने दायरे बना रखे हों, लेकिन इनकी जिंदगी चमत्कार से नहीं, बल्कि उनके आचार में प्रतिबिंबित होती थी। लाहौर और दिल्ली होते हुए ख्वाजा अजमेर में प्रविष्ट हुए। वह लगभग चालीस वर्षो तक अजमेर को और यहां के माध्यम से पूरे भारत पर कृपा करते रहे। हजरत ख्वाजा निर्धनों पर विशेष कृपालु थे। गरीब नवाज का संबोधन उनके व्यक्तित्व के साथ जुड़ गया। उन्हें यह खिताब किसी बादशाह ने नहीं दिया था। गरीब नवाजी स्वयं ईश्वर ने उनके भाग्य में लिखी थी। ख्वाजा गरीब नवाज ने दीन, धर्म और दुनिया के भेद को समाप्त कर दिया। उनकी नजर में धर्म और संसार में भिन्नता नहीं है। ईश्वर द्वारा बताए गए नियमों के अनुसार दुनिया को गुजारना ही दीन है। उन्होंने ईश्वर की आराधना और लोगों की सेवा के बीच कोई विभेद नहीं किया। उन्होंने बताया कि इंसान पर दो फर्ज हैं। एक, इबादत (आराधना) और दूसरा इताअत (आज्ञापालन)। इबादत से तात्पर्य है कि पूरे आदर और सम्मान के साथ ईश्वर के सम्मुख स्वयं को समर्पित कर दिया जाए। इताअत से तात्पर्य यह है कि ईश्वर ने प्राणी मात्र के प्रति जो कर्त्तव्य निश्चित किए हैं, उन्हें वह पूरी निष्ठा से पूरा करे। उसकी रातें और दिन ईश्वर के बंदों की भलाई के लिए समर्पित रहें।
हजरत ख्वाजा गरीब नवाज ने अपने सादा जीवन और साधु प्रवृत्ति के द्वारा लोगों को सादगी का पाठ पढ़ाया। वह अक्सर पैबंद लगे कपड़े पहनते थे, नियमित रूप से रोजे रखते थे, खाना बहुत थोड़ा-सा खाते थे। उनका पैग़ाम था कि कपड़े तन ढकने के लिए हैं और खाना जि़ंदगी के लिए। खाना और कपड़ा जीवन का उद्देश्य नहीं है, बल्कि एक आवश्यकता है। इंसान को जीवन बड़े उद्देश्य के लिए दिया गया है। इस उद्देश्य में पाशविक भावनाओं की संतुष्टि और उनमें संलिप्तता नहीं है।
हजरत ख्वाजा अजमेरी को सुल्तानुल-हिंद के नाम से भी याद किया जाता है। भारत की धरती ने सैकड़ों बादशाहों को देखा, हजारों उलेमा ने इस धरती को सुशोभित किया और अनेक सूफियों ने इस देश को अपने मधुर नग्मों से परिपूर्ण किया। लेकिन इस धरती को जो तेज, गौरव और महानता हजरत ख्वाजा से मिली और निरंतर मिल रही है, उसका अन्य उदाहरण दुर्लभ है। हजरत ख्वाजा अजमेरी नि:संदेह भारतीय सभ्यता-संस्कृति, समाज तथा इतिहास के सर्वाधिक प्रकाशमान सितारा हैं। भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति के निर्माण में ख्वाजा का योगदान अप्रतिम है।
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