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अलौकिक संयोग.. रात सोना भूल गई

यह संगम तट पर उमड़ा वह जन सैलाब है, जो सिर पर श्रद्धा की गठरी लादे आस्था की नाव के सहारे भवसागर पार उतरने आया है। रात के 12 बजे से ही घाटों पर डुबकी लगाने वालों का जमावड़ा लगना शुरू हो गया है। बच्चे-बूढ़े, जवान, महिलाएं सभी एक रंग में रंगे हैं। भक्ति के रंग में। कोई मां को कंधे पर बिठाए है तो कोई बूढ़े बाबा को बड़े जतन से लेकर पहुंचा है।

By Edited By: Published: Mon, 28 Jan 2013 02:50 PM (IST)Updated: Mon, 28 Jan 2013 02:50 PM (IST)
अलौकिक संयोग.. रात सोना भूल गई

कुंभनगर, [संजीव मिश्र]। यह संगम तट पर उमड़ा वह जन सैलाब है, जो सिर पर श्रद्धा की गठरी लादे आस्था की नाव के सहारे भवसागर पार उतरने आया है। रात के 12 बजे से ही घाटों पर डुबकी लगाने वालों का जमावड़ा लगना शुरू हो गया है। बच्चे-बूढ़े, जवान, महिलाएं सभी एक रंग में रंगे हैं। भक्ति के रंग में। कोई मां को कंधे पर बिठाए है तो कोई बूढ़े बाबा को बड़े जतन से लेकर पहुंचा है। वेशभूषा, बोली अलग है, लेकिन यहां संगम पर सभी एकाकार हो गए हैं। हर-हर गंगे के जयघोष से वातावरण में भक्ति की बयार बह रही है, जिसकी ऊर्जा से जर्रा-जर्रा ओत-प्रोत है।

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सड़क-चौराहों, गांव-कस्बों और देश-विदेश से श्रद्धालुओं का जत्था संगम तट पर पहुंचा है। जल और जनराशि का मिलन हो रहा है। बच्चों-युवाओं का उत्साह उछाल मार रहा है। अंतर करना मुश्किल। कौन अमीर है, कौन गरीब। कोई आचमन कर रहा है तो कोई आरती उतार रहा है। कोई रेती लगाकर भस्मीभूत हो रहा है। मुजफ्फरनगर के खतौली की पूजा चढ्डा धन्य हैं, यहां तो 33 करोड़ देवता भी नहाने आते हैं। सौभाग्यशाली हूं कि मुझे भी मां का स्पर्श मिला। सरकारी कर्मचारी भी इसे गंगा मैया की कृपा मान रहे हैं। ललितपुर के बीडी वर्मा कहते हैं, लोग जाने कहां-कहां से कितना खर्च करके आए हैं। हम यहां रहकर भी न नहाएं तो पछतावा होगा। हमें तो ड्यूटी के साथ बोनस भी मिल गया।

झूंसी, अरैल आदि तटीय मोहल्ले भी निहाल हैं। इस अलौकिक संयोग को दूर से निहार रहे हैं। मीडियाकर्मियों की आतुरता देखते बन रही है। पानी के अंदर तक पहुंच गए हैं।

विदेशियों के लिए यह आश्चर्य है। अचरज से निहार रहा है जर्मनी का एक दंपति। कैमरा लिए मैरी और माइकल पूछ रहे हैं, क्या कोई वीआइपी भी नहाने आया है। अकबर के ऐतिहासिक किले से सुरक्षा की निगरानी हो रही है। वाच टॉवरों से भी तीसरी आंख झांक रही है। खुद मेला मजिस्ट्रेट और कप्तान माइक संभाले हुए हैं, चोर-उचक्कों से सावधान रहें। जो स्नान कर चुके हैं, घाट छोड़ दें। कुछ पकड़े भी गए हैं। नगदी, मोबाइल बरामद हुए हैं। सीटी बजाता पुलिसकर्मी स्वभाव के विपरीत आज नरम है। कोई रास्ता बता रहा है तो कोई हाथ पकड़कर पार लगा रहा है। जल पुलिस, गोताखोर, सफाईकर्मी सभी मुस्तैद हैं।

अक्षयवट, लेटे हनुमान जी, राम जानकी और कांची कामकोटि मंदिर में भी श्रद्धालुओं का समागम हो रहा है। बहुरूपिए, पंडे, केन-पिपिया और फूल-अगरबत्ती वाले भी गदगद हैं। हाथ फैलाए भिखारी नजर आ रहे हैं। भूले-भटके शिविरों से बदहवास आवाजें गूंज रही हैं, सरितवा के पापा हम भटक गइल हई, एहि कैंपवा में आवा। कुछ लोग नाते-रिश्तेदारों से मिलकर फूले नहीं समा रहे हैं। भेंट-मुलाकात के बाद हाल-चाल का अंतहीन सिलसिला चल निकला है। रात सोना भूल गई है।

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