कृष्ण जन्मभूमि मथुरा
सावन व भादों मास में ब्रज की छटा अद्भुत व अनोखी होती है। हर ओर अत्यंत हर्षोल्लास रहता है।
सावन व भादों मास में ब्रज की छटा अद्भुत व अनोखी होती है। हर ओर अत्यंत हर्षोल्लास रहता है। यहां के विभिन्न मंदिरों में झूलों, हिडोंलो, रास लीलाओं, मल्हार गायन व सत्संग-प्रवचन आदि की धूम रहती है। कृष्ण जन्माष्टमी व राधाष्टमी के त्योहार यहां के स्वरूप को और व्यापक बना देते हैं। यहां इस वर्ष सावन-भादों मेला 4 जुलाई से 30 सितंबर तक चलेगा। इस वर्ष यहां कई गुना अधिक भक्त-श्रद्धालु व पर्यटक आ रहे हैं।
कृष्ण जन्मभूमि मथुरा
मथुरा का प्राचीन इतिहास है। मान्यता यह है कि त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के अनुज शत्रुघ्न ने लवणासुर नामक राक्षस का वध कर इसकी स्थापना की थी। द्वापर युग में यहां कृष्ण के जन्म लेने के कारण इस नगर की महिमा और अधिक बढ़ गई है। यहां के मल्लपुरा क्षेत्र के कटरा केशव देव स्थित राजा कंस के कारागार में लगभग पांच हजार दो सौ वर्ष पूर्व भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में रात्रि के ठीक 12 बजे कृष्ण ने देवकी के गर्भ से जन्म लिया था। यह स्थान उनके जन्म लेने कारण अत्यंत पवित्र माना जाता है। यहां प्रथम मंदिर का निर्माण कृष्ण के प्रपौत्र ब्रजनाम ने ईसा पूर्व 80 में कराया था। कालक्रम में इस मंदिर के ध्वस्त होने के बाद गुप्तकाल के सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने सन् 400 ई. में दूसरे वृहद् मंदिर का निर्माण करवाया। परंतु इस मंदिर को महमूद गजनवी ने सन् 1070 ई. में ध्वस्त कर दिया। तत्पश्चात महाराज विजयपाल देव के शासन काल (सन् 1150) में जण्ण नामक व्यक्ति ने तीसरे मंदिर का निर्माण करवाया। यह मंदिर भी 16वीं सदी में सिकंदर लोधी द्वारा ध्वस्त कर दिया गया। सम्राट जहांगीर के शासनकाल में ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने चौथी बार एक अन्य भव्य मंदिर का निर्माण करवाया, जो कि 250 फुट ऊंचा था। इस मंदिर के स्वर्ण शिखर की चमक 56 किमी दूर स्थित आगरा तक देखी जा सकती थी। इस मंदिर को भी मुगल शासक औरंगजेब ने सन् 1669 में नष्ट कर दिया। जुगल किशोर बिड़ला ने 21 फरवरी 1951 को कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की। उसके बाद यहां भव्य मंदिर का निर्माण हुआ। भागवत भवन यहां का प्रमुख आकर्षण है। यहां पांच मंदिर हैं जिनमें राधा-कृष्ण का मंदिर मुख्य है। मथुरा का अन्य आकर्षण असिकुंडा बाजार स्थित ठाकुर द्वारिकाधीश महाराज का मंदिर है। यहां वल्लभ कुल की पूजा-पद्धति से ठाकुरजी की अष्टयाम सेवा-पूजा होती है। देश के सबसे बड़े व अत्यंत मूल्यवान हिंडोले द्वारिकाधीश मंदिर के ही है जोकि सोने व चांदी के है। यहां श्रावण माह में सजने वाली लाल गुलाबी, काली व लहरिया आदि घटाएं विश्व प्रसिद्ध हैं।
मथुरा में यमुना के प्राचीन घाटों की संख्या 25 है। उन्हीं सब के बीचों-बीच स्थित है- विश्राम घाट। यहां प्रात: व सांय यमुनाजी की आरती उतारी जाती है। यहां पर यमुना महारानी व उनके भाई यमराज का मंदिर भी मौजूद है। विश्राम के घाट के सामने ही यमुना पार महर्षि दुर्वासा का आश्रम है।
इसके अलावा मथुरा में भूतेश्वर महादेव, धु्रव टीला, कंस किला, अम्बरीथ टीला, कंस वध स्थल, पिप्लेश्वर महादेव, बटुक भैरव, कंस का अखाड़ा, पोतरा कुंड, गोकर्ण महादेव, बल्लभद्र कुंड, महाविद्या देवी मंदिर आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल है।
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