भरणी नक्षत्र श्राद्ध का श्राद्धतुल्य फल
अधिमास के कारण तिथियों में घटत-बढ़त होने से इस बार पितृपक्ष भले ही 17 दिन का हो गया हो, लेकिन श्राद्ध 16 ही होंगे। वजह है तीन अक्टूबर को तिथि श्राद्ध का न होना। लिहाजा, इस दिन तिथि की जगह भरणी नक्षत्र श्राद्ध होगा। साथ ही गणेश चतुर्थी होने के कारण लोग श्रद्धा भाव से पितरों को याद कर तर्पण व दान-पुण्य कर सकते हैं। इसका श्राद्धतुल्य फल ही प्राप्त होगा।
देहरादून। अधिमास के कारण तिथियों में घटत-बढ़त होने से इस बार पितृपक्ष भले ही 17 दिन का हो गया हो, लेकिन श्राद्ध 16 ही होंगे। वजह है तीन अक्टूबर को तिथि श्राद्ध का न होना। लिहाजा, इस दिन तिथि की जगह भरणी नक्षत्र श्राद्ध होगा। साथ ही गणेश चतुर्थी होने के कारण लोग श्रद्धा भाव से पितरों को याद कर तर्पण व दान-पुण्य कर सकते हैं। इसका श्राद्धतुल्य फल ही प्राप्त होगा।
यूं तो पितृपक्ष आश्विन कृष्ण पक्ष में ही आता है, लेकिन इस बार अधिमास के संयोग से यह शुद्ध भादौं में ही प्रारंभ हो गया। यही नहीं, पूर्णिमा व प्रतिपदा के श्राद्ध भी भादौं में ही संपन्न हुए, जो कि आमतौर पर आश्विन में पड़ते हैं। आचार्य डॉ.सुशांत राज के अनुसार यह संयोग 43 वर्ष बाद बना है। वर्ष 1969 में 25 सितंबर से 11 अक्टूबर तक 17 दिनों का पितृपक्ष रहा था। उन्होंने बताया कि तीन अक्टूबर को भले ही तिथि श्राद्ध न हो, लेकिन भरणी नक्षत्र श्राद्ध होने से पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का यह श्रेष्ठ दिन है।
आचार्य डॉ.संतोष खंडूड़ी ने बताया कि दो अक्टूबर को पूर्वाह्न 11.47 बजे से तृतीया का श्राद्ध पड़ रहा है, लेकिन इसकी अवधि तीन अक्टूबर दोपहर 1:59 बजे तक है। इसलिए तृतीया का श्राद्ध तीन अक्टूबर को किया जा सकता है। खास बात यह है कि इस दिन दोपहर बाद 2.01 बजे तक राजयोग भी है, जो दो अक्टूबर को सुबह 7.16 बजे से आरंभ हो जाएगा। इसलिए इस अवधि में किया गया गणेश पूजन अनंत पुण्यों का प्रदाता होगा।
सौभाग्य के 17 दिन-
जब सूर्यदेव कन्या राशि में रहते हैं तो 16 दिन के लिए पितृलोक के द्वार खुल जाते हैं। माना जाता है कि इन दिनों पितृगण परिजनों द्वारा किए गए श्राद्ध तर्पण व ब्राह्मण भोज को प्राप्त करते हुए 16 दिन धरती पर रहते हैं। सौभाग्य से इस बार एक दिन और पितृगण हमारे बीच हैं।
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