दरस परस पर आघात
देवाधिदेव महादेव के पूजन का न कोई विशेष प्रोटोकाल और न ही कोई भेव। बाबा महज एक बिल्वपत्र और एक लोटा जल से भी प्रसन्न हो जाते हैं। जो भी भक्तिभाव से भर देहरी पर आया तर गया, वरदानों से झोली भर गया।
वाराणसी। देवाधिदेव महादेव के पूजन का न कोई विशेष प्रोटोकाल और न ही कोई भेव। बाबा महज एक बिल्वपत्र और एक लोटा जल से भी प्रसन्न हो जाते हैं। जो भी भक्तिभाव से भर देहरी पर आया तर गया, वरदानों से झोली भर गया। अब भगवान और भक्त के बीच चांदी की दीवार भावनाओं को तार-तार कर रही है। बात हो रही है द्वादश ज्योतिर्लिगों में विशिष्ट स्थान प्राप्त काशी विश्वेश्वर (काशी विश्वनाथ) मंदिर की।
मान्यताओं की मानें तो गर्भगृह में विराजमान बाबा के दरस-परस यानी दर्शन के साथ स्पर्श का भी शास्त्रीय विधान है। माना जाता है कि इसके बिना अनुष्ठान अधूरा है। काशी खंड, शिव पुराण और धर्म शास्त्र इसकी गवाही करते हैं तो परंपराएं भी इसे पुष्ट करती हैं। अब विग्रह के इर्द-गिर्द खड़ा लकड़ी पर चांदी का पत्तर मढ़ा कठघरा इस भाव को आघात पहुंचा रहा है। इसे लगभग चार माह पहले एक भक्त द्वारा प्रदत्त 45 लाख रुपये से लगाया गया था। तकरीबन चार फीट की ऊंचाई जिसके इस पार से बाबा भले दिखाई दें लेकिन स्पर्श तो दूर पुष्प- पल्लव या जल भी हाथों से छू पाना असंभव है। खास यह कि इस आस में ही देश के विभिन्न हिस्सों व विदेशों तक से यहां श्रद्धालु आते हैं।
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