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विज्ञान के साधक अब बन गए प्रचारक

नाम जुमुक्त केतु दास। उम्र यही कोई 35 वर्ष। 1999 में आईआईटी कानपुर से कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया। हसरत थी नाम और धन कमाने की। ख्वाब में बसा था अमेरिका या यूरोप का कोई देश। लेकिन हुआ कुछ और.।

By Edited By: Published: Wed, 23 Jan 2013 12:51 PM (IST)Updated: Wed, 23 Jan 2013 12:51 PM (IST)
विज्ञान के साधक अब बन गए प्रचारक

कुंभनगर। नाम जुमुक्त केतु दास। उम्र यही कोई 35 वर्ष। 1999 में आईआईटी कानपुर से कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया। हसरत थी नाम और धन कमाने की। ख्वाब में बसा था अमेरिका या यूरोप का कोई देश। लेकिन हुआ कुछ और.। जिंदगी में आए साइंस एंड स्प्रिचुएलिटी के एक विशेषज्ञ का ऐसा जादू चला कि अध्यात्म के प्रचारक बन गए।

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कोलकाता के भक्ति वेदांत संस्थान के आंगन में लहलहा रही साइंस ग्रेजुएट युवाओं की फसल का कुछ अंश इन दिनों कुंभनगर में है। डा.टीडी सिंह जिन्हें अब श्रीमद् भक्तिस्वरूप दामोदर स्वामी के नाम से जाना जाता है, खुद भी प्रतिष्ठित वैज्ञानिक हैं। संस्थान के निदेशक वरुण अग्रवाल की शैक्षणिक पृष्ठभूमि में जटिल विज्ञान विषय है। कुंभनगर के सेक्टर छह में संस्थान का सचल पुस्तकालय है। यहां विज्ञान-अध्यात्म और जीवन की एक सूत्र में व्याख्या करने वाली पुस्तकों का संग्रह लेकर मौजूद जुमुक्त तो बानगी भर है। उनके जैसे साइंस दा अध्यात्म प्रचारकों की फौज संतों के नगर में विधाता के अलौलिक- परालौकिक सार-सारांश को लेकर विचरण कर रही है।

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लंबे ट्रेलर में बनवाए गए साहित्य केंद्र में एक-एक पुस्तकालय, वाचनालय, मंदिर, दस लोगों के लिए शयन कक्ष, रसोई और शौचालय है। इस तरह के दो वाहन कुंभनगर में चल रहे हैं। एक और वाहन जल्द ही पहुंचने वाला है। पुस्तक विक्त्रेता की भूमिका निभा रहे उड़ीसा के कृष्ण मिश्र दास की शिक्षा महज 11वीं तक है। 14 वर्ष की उम्र में अंत:करण ने आध्यात्मिक दीक्षा के लिए प्रेरित किया तो पहुंच गए भक्ति वेदांत संस्थान।

कैरियर कहते किसे हैं?

आईटी स्नातक होने के बावजूद जुमुक्त केतु दास ने कोई नौकरी क्यों नहीं की, इस सवाल का जवाब उन्हीं की जुबानी,. कैरियर क्या होता है? रुपया कमाना, परिवार बसाना और शान ओ शौकत के साथ जीवन जीना. क्या इसी को कैरियर कहते हैं? ये तो निरर्थकता है।

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