रूपकुंड को विश्व धरोहर घोषित करने की मांग
उत्तराखंड के चमोली जिले में साढे़ सत्रह हजार फुट से भी अधिक की ऊंचाई पर स्थित प्रकृति के चमत्कार के रूप में विख्यात स्वच्छ और निर्मल जल वाले रूपकुंड को अब विश्व धरोहर घोषित करने की मांग उठने लगी है ताकि कुदरत की इस अनूठी जलराशि से पूरी दुनिया को रूबरू कराया जा सके।
देहरादून। उत्तराखंड के चमोली जिले में साढे़ सत्रह हजार फुट से भी अधिक की ऊंचाई पर स्थित प्रकृति के चमत्कार के रूप में विख्यात स्वच्छ और निर्मल जल वाले रूपकुंड को अब विश्व धरोहर घोषित करने की मांग उठने लगी है ताकि कुदरत की इस अनूठी जलराशि से पूरी दुनिया को रूबरू कराया जा सके।
दरअसल रूपकुंड निर्मल जल का एक ऐसा कुंड है जिसपर मौसम और वातावरण का कोई असर नहीं होता और यह बारहों मासी एक जैसा मीठा, साफ और शीतल बना रहता है। क्षेत्र के विधायक अनुसूया प्रसाद मैखूरी ने विशेष बातचीत में कहा कि रूपकुंड अपने आप में अद्भुत विशेषता संजोए है और इसे विश्व धरोहर घोषित किए जाने से पूरे इलाके में नए तरीके से शोध होगा जिससे किसी प्राचीन सभ्यता का पता लग सकता है।
रूपकुंड का चमत्कारिक तथ्य यह है कि जब जाड़े के दिनों में पूरे क्षेत्र में तापमान शून्य से दस से 15 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चला जाता है और लगभग तमाम जलराशियां बर्फ बन जाती हैं तब भी इस कुंड में निर्मल पानी रहता है जिसमें इस क्षेत्र की पूरी परछाई साफ साफ देखी जा सकती है। इस रूपकुंड पर क्षेत्र के तापमान का कोई असर नहीं पड़ता।
मान्यताओं के अनुसार भगवान शंकर से विवाह करने के बाद मां पार्वती जब अपने ससुराल कैलाश जा रही थीं तो रास्ते में उन्हें प्यास लगी। पार्वती की प्यास बुझाने के लिए भोले भंडारी ने एक स्थान पर अपना त्रिशूल धंसाकर पानी निकाला। देखते देखते उस स्थान पर एक कुंड बन गया। पानी पीने के बाद जब मां पार्वती ने उस कुंड में अपनी छवि देखी तो अपने रूप पर स्वयं ही मोहित हो गईं, जिससे इस कुंड नाम रूपकुंड पड़ा तथा उसके बाद से ही उस कुंड में बारहों महीने जल भरा रहता है।
विधायक मैखुरी ने कहा कि अगले वर्ष उत्तराखंड के महाकुंभ के नाम से विख्यात नंदा राजजात यात्रा के दौरान लाखों यात्री इस रूपकुंड से गुजरते हुए करीब 280 किलोमीटर की दुर्गम पहाड़ी चढाई वाली यात्रा करेंगे।
प्रत्येक 12 वर्षों में होने वाली नंदा राजजात यात्रा समिति के सचिव भुवन नौटियाल ने बताया कि रूपकुंड ने अपने चमत्कार से हमेशा लोगों को विस्मय में डाला है। इसे अब विश्व धरोहर घोषित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इससे कम महत्वपूर्ण जगहों को विश्व धरोहर घोषित किया जा चुका है लेकिन रूपकुुंड को अभी तक विश्व धरोहर घोषित नहीं किया गया है।
नौटियाल ने बताया कि इस सिलसिले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को पत्र भी लिखा गया है। पत्र में रूपकुंड को विश्वधरोहर घोषित करने की मांग के साथ साथ करीब 280 किलोमीटर लंबी नंदा राजजात यात्रा मार्ग को यात्रियों के लिए सुगम बनाने, बिजली, पानी, अस्थाई आवास, चिकित्सा, पर्यटन तथा अन्य बुनियादी संरचना उपलब्ध कराने के लिए एक हजार करोड रूपए की सहायता दिए जाने की भी मांग की गई है।
उन्होंने कहा कि रूपकुंड में हजारों वर्ष पुराने नरकंकाल जहां तहां बिखरे पडे़ हैं, जिनमें छिपे रहस्य का पता लगाने के लिए अभी तक कोई शोध नहीं किया गया है। रूपकुंड के विश्व धरोहर घोषित हो जाने के बाद इन नरकंकालों पर भी शोध होगा तो इससे किसी विस्मयकारी तत्कालीन प्राचीन पर्वतीय सभ्यता का पता चल सकेगा।
नौटियाल ने कहा कि रूपकुंड के अतिरिक्त पूरे क्षेत्र में कई ऐसे स्थान हैं जहां पर अभी भारतीय पुरातत्व विभाग का ध्यान नहीं गया है। इन स्थानों पर भी शोध कार्य होना चाहिए।
चमोली जिले के थराली तहसील के तहत देवाल गांव के निवासी केशव सिंह चौहान ने बताया कि रूपकुंड के पास विशाल क्षेत्र में फैले नरकंकालों की समुचित देखभाल नहीं होने तथा शोध कार्य हेतु इसको सरकार द्वारा प्रतिबंधित क्षेत्र नहीं घोषित किए जाने से निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा अब धीरे धीरे नरकंकालों की चोरी की जा रही है। उन्होंने कहा कि सरकार को इस ओर तुरंत ध्यान देना चाहिए ताकि ऐतिहासिक रूप से इस अतिमहत्वपूर्ण क्षेत्र को संरक्षित किया जा सके।
उन्होंने बताया कि अगले वर्ष होने वाली नंदा राजजात यात्रा के दौरान करीब पांच लाख यात्रियों के आने की संभावना है, लेकिन सरकार ने अभी तक किसी प्रकार की तैयारी शुरू नहीं की है। रूपकुंड क्षेत्र में सुरक्षा और संरक्षा के लिए सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की जानी चाहिए।
चौहान ने बताया कि पूरे क्षेत्र के विकास और यात्रा से सम्बधित तैयारियों के लिए एक विशेष स्थाई प्राधिकरण बनाया जाना चाहिए जो अभी से अपना कार्य शुरू कर दे अन्यथा उस समय किसी बडी दुर्घटना की आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता।
रूपकुंड के पास कुछ स्थानों पर मार्ग की चौड़ाई मात्र तीन फुट ही रह जाती है और उसके बगल में हजारों फीट गहरी खाई है। इन स्थानों को चौड़ा कर कम से कम रेलिंग लगाया जाना चाहिए ताकि यहां से गुजरने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
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