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छह घंटों में ही टूटी अखाड़ों की एकता

सोमवार को एक हुए सभी अखाड़ों की एकता छह घंटे भी नहीं चल पायी। भंग हुए दोनों अखाड़ा परिषद शाम को फिर अस्तित्व में आ गए। तीनों अनी वैष्णव अखाड़ों ने शैव अखाड़ों से अपने को पूरी तरह से अलग कर लिया।

By Edited By: Published: Tue, 29 Jan 2013 03:44 PM (IST)Updated: Tue, 29 Jan 2013 03:44 PM (IST)
छह घंटों में ही टूटी अखाड़ों की एकता

कुंभ नगर। सोमवार को एक हुए सभी अखाड़ों की एकता छह घंटे भी नहीं चल पायी। भंग हुए दोनों अखाड़ा परिषद शाम को फिर अस्तित्व में आ गए। तीनों अनी वैष्णव अखाड़ों ने शैव अखाड़ों से अपने को पूरी तरह से अलग कर लिया। शाम को बाघम्बरी मठ में बुलाई गई 13 अखाड़ों की बैठक में भी वैष्णव अखाड़े के महंत नहीं पहुंचे। इन अखाड़ों का कहना है कि महंत ज्ञानदास ही अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष हैं।

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सोमवार को पूर्वाह्न पुलिस महानिरीक्षक आलोक शर्मा ने सभी तेरहों अखाड़ों के प्रमुख महंतों को भोजन के लिए आमंत्रित किया था। एकत्रित हुए सभी अखाड़ों के महंतों की बैठक में जूना अखाड़ा के सचिव महंत हरि गिरि ने सभी को एक मंच पर आने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि अखाड़ों के बीच गुटबाजी से समाज में अच्छा संदेश नहीं जा रहा है। कुंभ मेले में इसकी वजह से ठीक वातावरण नहीं बन पा रहा है। आपसी मतभेद की वजह से कुछ ऐसी बातें की जा रही है जो साधु समाज के लिए अशोभनीय हैं।

उन्होंने कहा कि वे अखाड़ा परिषद के एक गुट के महामंत्री हैं। दूसरे गुट के महामंत्री महंत शंकरानंद सरस्वती भी यहां हैं। ऐसे में यह प्रस्ताव है कि दोनों अखाड़ा परिषद का अस्तित्व खत्म कर देना चाहिए। उनके दोनों अखाड़ा परिषद के भंग करने के प्रश्न पर कुछ देर वहां सुगबुगाहट हुई लेकिन हरि गिरि के आग्रह पर सभी ने उनके इस प्रस्ताव पर सहमति जता दी। महंत शंकरानंद सरस्वती ने भी कहा कि वे भी अपने अखाड़े को भंग करने पर सहमत हैं। तय हुआ कि अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष न तो महंत बलवंत सिंह और न ही महंत ज्ञानदास हैं। महंत हरि गिरि ने एक दूसरा प्रस्ताव रखा कि महंत नरेन्द्र गिरि और महंत राजेन्द्र दास के बीच जो विवाद हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण था। इससे भी खराब वातावरण बना है। उन्होंने दोनों महंतों से आग्रह किया कि वे अपने शब्दों को वापस लेते हुए रागद्वेष दूर करें।

इस प्रस्ताव पर भी सबने सहमति व्यक्त की। ज्ञातव्य है कि पिछले दिनों मेला प्रशासन की बैठक में महंत ज्ञानदास के मसले पर निरंजनी अखाड़े के महंत नरेन्द्र गिरि एवं निर्मोही अनी अखाड़े के महंत राजेन्द्र दास में काफी विवाद हो गया था। बैठक में अखाड़ों की एकता छिन्न-भिन्न हो गई थी। महंत हरि गिरि की पहल पर दोनों महंतों ने अपने विवादित शब्द वापस लेने की बात कह कर आपस में एक दूसरे से गले मिलकर बात खत्म करने की बात कही। बाद में इन दोनों प्रस्ताव को लिखापढ़ी का स्वरूप दिया गया। जिसमें अखाड़ों के महंतों के बीच विवाद समाप्त होने और दोनों अखाड़ा परिषद को भंग करने का उल्लेख किया गया।

इस सहमति पत्र पर कमिश्नर देवेश चतुर्वेदी, पुलिस महानिरीक्षक आलोक शर्मा के साथ जूना अखाड़े के महंत हरि गिरि, प्रेम गिरि, महंत विद्यानंद सरस्वती, महानिर्वाणी के महंत रवीन्द्र पुरी, महंत वासुदेव गिरि, निरंजनी के रामानंद गिरि, महंत नरेन्द्र गिरि, अग्नि के महंत गोपालानंद, महंत कैलाशानंद, महंत गोविदानंद, महंत अच्युतानंद, आवाहन के महंत कैलाश पुरी, महंत सत्य गिरि, उदासीन बड़ा पंचायती के महंत दुर्गादास, महंत अगड़ दास, नया उदासीन महंत भगतराम, जगतार मुनि, निर्मल के देवेन्द्र सिंह शास्त्री, अटल के उदय गिरि, आनंद के शंकरानंद सरस्वती, धनराज गिरि, निर्वाण अनी के महंत धर्मदास, जगन्ननाथ दास, दिगंबर के महंत रामकृष्ण दास, राम किशोर दास, निर्मोही रामाकांत दास, महंत राजेन्द्र दास ने हस्ताक्षर किया।

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