गंगा मुक्ति के लिए शंखनाद
मैं गंगा हूं, जब मैं हिमालय की चोटी से निकली तो निर्मल व स्वच्छ थी। मेरे जल की औषधीय ताकतों ने करोड़ों को नई जिंदगी दी। जिन नगरों से मैं गुजरती, पतित पावनी, मां, मोक्षदायिनी, न जाने कितने पूजनीय शब्दों से मुझे पुकारा गया।
वाराणसी। मैं गंगा हूं, जब मैं हिमालय की चोटी से निकली तो निर्मल व स्वच्छ थी। मेरे जल की औषधीय ताकतों ने करोड़ों को नई जिंदगी दी। जिन नगरों से मैं गुजरती, पतित पावनी, मां, मोक्षदायिनी, न जाने कितने पूजनीय शब्दों से मुझे पुकारा गया। वक्त बदला और मैं बांध दी गई। वहां से किसी तरह मेरी थोड़ी सी धारा छोड़ी गई। हरिद्वार से छूटने के बाद मैं आगे बढ़ती रही लेकिन लोग मुझे गंदा करते गए। आओ आज एक डुबकी तुम भी मां की गोद में लगाओ, तब शायद तुम्हे अहसास होगा मेरी व्यथा का। अविरल-निर्मल गंगा अभियान के क्रम में मंगलवार को शंकराचार्य घाट पर गंगा स्नान की अपील के साथ फेसबुक पर गंगा की इस वेदना को बयां किया है एक भक्त ने। सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक ने गंगा निर्मलीकरण अभियान में तेजी ला दी है। शहर की गली से लेकर अमेरिका में रहने वाले भारतीय से लगायत तमाम देशों में मौजूद गंगा को मां का मान देने वाले गंगा को बचाने के लिए अपने विचारों के साथ जुड़ रहे हैं। फेसबुक पर मौजूद अविछिन्न गंगा सेवा अभियान से जुड़े तकरीबन पांच हजार लोगों ने अपना समर्थन मंगलवार को गंगा में डुबकी लगाने के लिए दे दिया है। नेटवर्किंग के माध्यम से अन्य लोगों से भी अपील की जा रही है। कुछ पोस्ट गंगा के नाम- पुरुखों का मान बचाने को, अब आओ गंगा नहाने को। अविरल निर्मल धारा को, आओ गंगा नहाने को। अब जो गंगा स्नान करेगा, इतिहास उसे याद रखेगा। मुझे दुख है कि हमारा भारतीय समाज मां गंगा की अविरलता और निर्मलता के प्रति उदासीन है। अस्सी बरस के स्वामी सानंद ने गंगा के लिए अन्न-जल त्याग दिया। तपस्या में लीन स्वामी के समर्थन में अब तक लोगों की कम भागीदारी चिंता का विषय है। गंगा सिर्फ नदी नहीं हमारी संस्कृति है। आइए गंगा में एक डुबकी लगाकर हम कसम खाएं उसकी निर्मलता के लिए सब न्यौछावर कर देंगे -आदित्य कृष्ण अग्रवाल भारत देश की प्राण हैं मां गंगा, औषधियों की खान हैं
मां गंगा। हर-हर गंगे.। गंगा राजनीति की विषयवस्तु नहीं। आस्था का पावन तट सामाजिक दुर्भावनाओं से मलीन हो जाता है। कुछ लोग गंगा को अंग्रेजों की नकल करते हुए गैंगेज कहते हैं। हम गंगा को गंगा जी कहते हैं जिसे अंग्रेजों ने उच्चारण कर गैंगेज कहना शुरू कर दिया। जब तक मां के नाम का सही उच्चारण नहीं होगा, मां के प्रति वह आदर भाव पैदा नहीं होगा और गंगा की निर्मलता के लिए हमारा कोई भी अभियान मुकाम पर नहीं पहुंच सकेगा
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