मां चंडी देवी मंदिर
मां चंडी देवी मंदिर हरिद्वार। धार्मिक मान्यता है कि जहां मंसादेवी होंगी, वहां चंडी देवी का होना अनिवार्य है। पौराणिक कथाओं के अनुसार तंत्र-मंत्र की सिद्धिरात्री चंडीदेवी ने इसी स्थान पर शुंभ-निशुंभ नामक असुरों का वध किया था।
मां चंडी देवी मंदिर
हरिद्वार। धार्मिक मान्यता है कि जहां मंसादेवी होंगी, वहां चंडी देवी का होना अनिवार्य है। पौराणिक कथाओं के अनुसार तंत्र-मंत्र की सिद्धिरात्री चंडीदेवी ने इसी स्थान पर शुंभ-निशुंभ नामक असुरों का वध किया था। शिवालिक पर्वत श्रृंखला पर स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर के पास शुंभ और निशुंभ नाम के दो पर्वत आज भी हैं। मंदिर में मां काली की प्रतिमा विराजमान है। इसके पास ही हनुमान जी की माता अंजनी देवी का मंदिर भी स्थित है। मां चंडी देवी की रात में विशेष पूजा होती है। भक्तगण अपनी खास पूजा के लिए मंदिर समिति से संपर्क इस खास अनुष्ठान को अपने तथा अपने परिवार के लिए भी करा सकते हैं। नवरात्रों में इस विशेष पूजा का खास महत्व है। इसके मद्देनजर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। विशेष पूजा करने वालों की संख्या ज्यादा होती है। मान-मनौती के लिए मंदिर की बड़ी आस्था है।
मंदिर में मां की चुनरी को बांध मनौती मांगने की परंपरा है। इसकी बड़ी मान्यता है। चुनरी बांध कर मन की इच्छा पूर्ति की देवी से प्रार्थना करने पर वो अवश्य पूरी होती है। मनौती पूरी होने पर देवी दर्शन तत्पश्चात चुनरी खोलने की भी परंपरा है। नवरात्रों में इसका विशेष महत्व है।
ऐसे पहुंचे-
रेलवे स्टेशन से करीब छह किलोमीटर दूरी पर हरिद्वार-नजीबाबाद रोड पर शिवालिक पर्वत माला के एक शिखर पर स्थापित इस मंदिर के लिए पैदल और रोप-वे [उडऩ खटोले] से जाने की व्यवस्था है। स्टेशन से मंदिर के रास्ते के लिए ऑटो, टेम्पो, टैक्सी, साइकिल रिक्शा और तांगा उपलब्ध हैं।
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