करोड़ों का चढ़ावा, पानी में मन्नतें
महाकुंभ जैसे विश्व विख्यात आयोजन पर बेहतर जल संरक्षण के लिए उत्तरप्रदेश जल निगम की करोड़ों रुपये के बजटीय प्रावधान वाली योजना पानी-पानी हो रही है। तकरीबन सवा साल पहले निगम की तैयारी खासकर कल्पवास करने आए एक-डेढ़ लाख श्रद्धालुओं की आंखें के कोर नहीं पोंछ पाई। जलभराव की आसमानी परेशानियों का यह आलम कमोबेश मेला के हर प्रमुख क्षेत्र में बना हुआ है। प्रतिदिन लाखों मिलियन लीटर की बर्बादी व्यवस्था को मुंह चिढ़ा रही, सो अलग।
कुंभनगर, [मणिकांत मयंक]। महाकुंभ जैसे विश्व विख्यात आयोजन पर बेहतर जल संरक्षण के लिए उत्तरप्रदेश जल निगम की करोड़ों रुपये के बजटीय प्रावधान वाली योजना पानी-पानी हो रही है। तकरीबन सवा साल पहले निगम की तैयारी खासकर कल्पवास करने आए एक-डेढ़ लाख श्रद्धालुओं की आंखें के कोर नहीं पोंछ पाई। जलभराव की आसमानी परेशानियों का यह आलम कमोबेश मेला के हर प्रमुख क्षेत्र में बना हुआ है। प्रतिदिन लाखों मिलियन लीटर की बर्बादी व्यवस्था को मुंह चिढ़ा रही, सो अलग।
आश्चर्यजनक हकीकत की पराकाष्ठा देखिये कि उत्तरप्रदेश जल निगम ने नवंबर, 2011 में ही महाकुंभ के दौरान जल संरक्षण की शुरुआत कर दी थी। दो चरणों में शुरू हुई मुहिम के लिए कुल 53 करोड़, 91 लाख का बजटीय प्रावधान रखा गया। प्रथम चरण में मेला परिसर के बीस किलोमीटर के दायरे में पाइप लाइन बिछाई गई। दूसरे चरण में हर श्रद्धालु को चौबीस घंटे पेयजल व अन्य सुविधाओं के लिए सात सौ किलोमीटर में पाइप लाइन व 46 ट्यूबवेल चलाए गये। पाइप लाइन बिछाने, छिड़काव एवं जल निकासी, सीवर लाइन आदि सुविधाओं के लिए अलग-अलग कार्यो के ठेकेदारों को दायित्व सौंपा गया। बताया गया है कि उपलब्ध बजट के तहत देश-विदेश के मोक्षार्थियों के लिए 90 मिलियन लीटर प्रतिदिन पेयजल की लक्षित व्यवस्था की गई थी।
इन तमाम व्यवस्थाओं की सच्चाई यह कि न तो जल संरक्षण की समुचित व्यवस्था हो पाई और न ही निकासी की। दो दिनों की लगातार बारिश ने व्यवस्था के दावे की हवा निकाल दी। अहर्निश तपस्या से ब्रंालोक की चाहत पाले संगम तट पर कल्पवास करने वाले करीब एक-डेढ़ लाख श्रद्धालुओं की मुसीबतें अद्यतन जारी हैं। भूमिशयन का कल्पवासीय विधान बरसाती पानी में तैर रहा है। गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम स्थल पर तप करने आए कल्पवासियों के तंबू की जमीन गीली है तो तंबू के आसपास जलभराव की स्थिति बनी हुई है। मध्यप्रदेश से सपत्नीक कल्पवास करने आये रामचंद्र के सिर तो मानो मुसीबतों का पहाड़ ही टूट पड़ा। वे बताते हैं कि न केवल कनात से पानी उलीचना पड़ा अपितु सर्द रात में खुद को बचाना भी भारी पड़ गया। आज भी आगे-पीछे जल भरा हुआ है। यह केवल रामचंद्र की समस्या नहीं है। उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश व राजस्थान के तमाम कल्पवासियों के साथ कमोबेश यही परेशानियां बनी हुई है। सेक्टरों में ही नहीं, मेला क्षेत्र के कई अन्य हिस्से भी पानी की निकासी स्वयं महकमा के लिए सिरदर्द बनी हुई है। व्यवस्था की खामी का ही तकाजा है कि करोड़ों खर्च कर बेहतर जलापूर्ति खुली पानी की टूटियों में बह रही है। बहरहाल, जल निगम के करोड़ों के चढ़ावे के बावजूद श्रद्धालुओं की मन्नतें पानी में बहती रहीं।
पीकऑवर में ज्यादा खपत
अधिशासी अभियंता जीसी दुबे कहते हैं कि 10 फरवरी के दिन पीकआवर में करीब 85 मिलियन लीटर प्रतिदिन के हिसाब से पानी की खपत हुई। वैसे सामान्य दिनों में औसत 30 मिलियन लीटर प्रतिदिन आपूर्ति की गई है। उनका दावा है कि 92 मिलियन लीटर प्रतिदिन की व्यवस्था की गई थी। बारिश सामान्य नहीं थी: दुबे
उत्तरप्रदेश जल निगम के अधिशासी अभियंता जीसी दुबे कहते हैं कि बारिश सामान्य नहीं थी। व्यवस्था सामान्य के लिए बनाई गई थी। वे दावा करते हैं कि ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जहां पानी का निस्तारण नहीं हो रहा है। जहां तक जल की बर्बादी की बात है तो आदतें मेले में नहीं बदल सकतीं।
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