बाबा की काशी फगुआई, गौरा रानी गौने आई
अद्भुत, अद्वितीय। किन शब्दों में व्यक्त करें क्षण की अनुभूति को। चांदी की पालकी में विराजमान जटाधारी भोलेनाथ के मस्तक पर सुशोभित चन्द्रमा। भभूतधारी के कानों में कुण्डल, गले में सर्प व रुद्राक्ष की माला, त्रिशूल-डमरू धारी बाबा दाहिने हाथ से भक्तों को अभयदान-आशीष देते, कल्याण व मंगल कामना संग आशीर्वाद प्रदान करते तो माता पार्वती सोलहों श्रृंगार किए पाश्र्र्व में विराजती। देवाधिदेव महादेव की यह युगल जोड़ी देखकर भक्त जहां धन्य हो रहे थे तो हर शख्स इस अद्भुत दृश्य को चक्षुओं में समेट लेने को आतुर दिखा।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। अद्भुत, अद्वितीय। किन शब्दों में व्यक्त करें क्षण की अनुभूति को। चांदी की पालकी में विराजमान जटाधारी भोलेनाथ के मस्तक पर सुशोभित चन्द्रमा। भभूतधारी के कानों में कुण्डल, गले में सर्प व रुद्राक्ष की माला, त्रिशूल-डमरू धारी बाबा दाहिने हाथ से भक्तों को अभयदान-आशीष देते, कल्याण व मंगल कामना संग आशीर्वाद प्रदान करते तो माता पार्वती सोलहों श्रृंगार किए पाश्र्र्व में विराजती। देवाधिदेव महादेव की यह युगल जोड़ी देखकर भक्त जहां धन्य हो रहे थे तो हर शख्स इस अद्भुत दृश्य को चक्षुओं में समेट लेने को आतुर दिखा। अवसर था, रंगभरी यानी आमलकी एकादशी के पावन पर्व पर माता गौरा के गौने पर निकली शोभयात्रा का।
पावन पर्व पर भगवान शंकर और देवी पार्वती ने भक्तों संग अबीर, गुलाल व इत्र आदि के साथ क्रीड़ोत्सव किया फिर देखते ही देखते पूरे शहर में होली की धूम मच गई। दिन चढ़ने के साथ काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में भक्तों की भीड़ बढ़ने लगी थी। दोपहर दो बजे से ही महंत आवास में शिव-पार्वती की चल प्रतिमाओं का दर्शन-पूजन शुरू हो गया। भक्तों को प्रतीक्षा थी शिव परिवार की मंदिर तक निकलने वाली पालकी यात्रा की। घड़ी में जैसे ही शाम के 5.15 बजे, गौरा के गौने का उत्सव परवान पर पहुंचने लगा।
शंख, डमरू, विजयघंट व नाना प्रकार के वाद्य यंत्र की गूंज व हर-हर महादेव के उद्घोष के मध्य महंत परिवार के सदस्यगण पालकी लेकर काशी विश्वनाथ मंदिर गर्भगृह की ओर बढ़ने लगे। भक्तों की भीड़ व हर-हर महादेव के उद्घोष के बीच ऐसा लगा जैसे सभी इस नयनाभिराम दृश्य को अपनी आंखों में कैद कर लेना चाहते हों। सायं 5.30 बजे पालकी यात्रा गर्भगृह पहुंची, जहां झांकी दर्शन के लिए रात तक भक्तों की कतार लगी रही। इससे पूर्व महंत कुलपति तिवारी के नेतृत्व में भगवान की रजत पालकी को सजा संवार कर अंतिम रूप दिया गया। पालकी को माला फूल की मदद से आकर्षक ढंग से सजाया गया था। रंगभरी एकादशी के कारण रविवार को परम्परानुसार काशी विश्वनाथ मंदिर में बाबा भोलेनाथ की सप्तर्षि आरती अपराह्न तीन बजे शुरू हुई और श्रृंगार भोग आरती शाम 5 बजे।
ऐसी पौराणिक मान्यता है कि वसंत पंचमी को भगवान शंकर व देवी गौरा के विवाह का रिश्ता तय हुआ था। महा शिवरात्रि को विवाह हुआ और रंगभरी एकादशी को मां गौरा का गौना। इस दिन को देव होली के रूप में मनाने की परंपरा काफी समय से चली आ रही है। विशेष रूप से इस दिन भगवान अद्भुत छटा के साथ भक्तों को दर्शन देते हैं। मान्यता भी सर्वविदित है कि शिव शक्ति का यह मनोहारी दृश्य पापों का नाशकर जीवन में सुख समृद्धि व आनंद प्रदान करता है। उत्सव में जो भक्त सम्मिलित होकर अबीर गुलाल व इत्र भोले बाबा को समर्पण करता है, वह वर्ष पर्यत धन-धान्य व सुख-शांति से पूर्ण रहता है।
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