जाह्नवी के सवाल पर फिर ढहीं मजहबी दीवारें
काशी को गंगा-जमुनी तहजीब का मरकज यूं ही नहीं कहा जाता। जब-जब इस शहर के ताने-बाने पर संकट आया है मजहबी दीवारें ढही हैं।
वाराणसी। काशी को गंगा-जमुनी तहजीब का मरकज यूं ही नहीं कहा जाता। जब-जब इस शहर के ताने-बाने पर संकट आया है मजहबी दीवारें ढही हैं। गंगा की पाकीजगी को लेकर जब हिंदू समाज के संत आगे आए तो मुस्लिम समाज के धर्मगुरु भी पूरी ताकत के साथ कंधा से कंधा मिला कर उनके साथ आ खड़े हुए। शंकराचार्य घाट पर जारी गंगा तपस्या के क्रम में गुरुवार को कुछ ऐसा ही नजारा नुमाया हुआ। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद तप पीठ पर विराजमान थे तो गंगा की अविरलता के सवाल पर सिर पर टोपी लगाए मुस्लिम समाज के सूफी और उलेमा भी उनके दाएं-बाएं। भरोसा दिलाया कि गंगा की पाकीजगी के मुद्दे पर हम सभी एक हैं। अल्हाज सूफी इजहारुल्ला शाह नूर नूरानी नूरी के नेतृत्व में काफी संख्या में पहुंचे मुस्लिम बंधु तपस्या स्थल पर तकरीबन दो घंटे बैठे और अभियान में हमसफर होने का संकल्प लिया। इस मौके पर हजरत नूरी ने कहा कि गंगा को किसी मजहब से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। गंगा सभी के लिए है। हम अपने जिस्म व घर की सफाई के लिए विशेष ध्यान देते हैं। ठीक उसी प्रकार हमें गंगा की सफाई के लिए तहय्या करना होगा। गंगा हम सब की हैं और इसकी अविरलता-निर्मलता के लिए सभी को एक ताकत बनानी होगी ताकि शासन को ठोस व कारगर योजना बनाने के लिए मजबूर होना पड़े। हाफिज कारी गुलजार अहमद ने कहा कि गंगा जब तक पूरी तरह निर्मल नहीं हो जाती मुस्लिम समाज संतों की तपस्या को पूरी ताकत देता रहेगा। कुर्बानी की जरूरत पड़ने पर पीछे नहीं हटेगा। बताया कि हम यानि ह से हिंदू म से मुसलमान, इस सोच के साथ यदि हम मुहिम में लग गए हैं तो इंशा अल्लाह कामयाबी जरूर कदम चूमेगी।
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