गंगा पर शंकराचार्य ने कांग्रेस को झकझोरा
ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारकाशारदा पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने राष्ट्रीय नदी गंगा की निर्मलता, अविरलता और उसे प्रदूषण मुक्त रखने के प्रयासों की उपेक्षा पर गहरा क्षोभ व्यक्त किया है।
वाराणसी। ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारकाशारदा पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने राष्ट्रीय नदी गंगा की निर्मलता, अविरलता और उसे प्रदूषण मुक्त रखने के प्रयासों की उपेक्षा पर गहरा क्षोभ व्यक्त किया है। ग्वालियर में अपने त्रिदिवसीय प्रवास के दौरान वहां से जारी बयान में उन्होंने कहा कि गंगा राष्ट्रीय प्रश्न है। तथाकथित पंथ निरपेक्षतावादी गंगा के प्रश्न को सांप्रदायिक कहकर उक्त पहलुओं की उपेक्षा करेंगे तो इससे बड़ी राष्ट्रीय क्षति का सामना करना पड़ेगा। याद दिलाया कि राम मंदिर के प्रश्न की उपेक्षा ने पंथनिरपेक्षता वादियों की जड़ें हिला दी थीं। उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बन गए थे और अन्य प्रदेशों में भी परिवर्तन की आंधी चल पड़ी थी। आस्था की दृष्टि से गंगा पूरे भारत को जोड़ती है। उत्तराखंड से बंगाल तक की लगभग 35 करोड़ जनसंख्या भौतिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से गंगा से जुड़ी हुई है। देश की एकता की कड़ी गंगा है। इसकी अविरलता को रोकने के लिए बांध बांधे जा रहे हैं। गंगा को बैराज में डालकर जल की गुणवत्ता समाप्त की जा रही है। गंगा में अपने जल के प्रदूषण को समाप्त करने की स्वाभाविक क्षमता है। अविरलता को रोक कर इस क्षमता को भी समाप्त किया जा रहा है। यह गंगा के साथ अन्याय है और इसे कदापि स्वीकार नहीं किया जा सकता। शंकराचार्य ने कहा कि यदि जनता गंगा के प्रति जागरुक हो जाए तो राजनीतिज्ञों के सारे मापदंड उलट जाएंगे। बताया कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में राहुल गांधी ने स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी की गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की प्रतिज्ञा का उल्लेख करते हुए उस कार्य को आगे बढ़ाने की बात कही होती तो उन्हें विफलता का सामना न करना पड़ता। कुंभ पर्व का उल्लेख करते हुए कहा है कि यह एक माह चलेगा। इसमें देश-विदेश के करोड़ो हिंदू संगम में स्नान करेंगे। उन्हें प्रदूषित जल में स्नान करने के लिए बाध्य न होना पड़े इसका ध्यान सरकार को रखना होगा। भारत एक पंथ निरपेक्ष देश है। पंथ निरपेक्षता सभी धर्मो के प्रति समता के व्यवहार की बात कहती है। किसी भी धर्म की उपेक्षा पंथ निपेक्षता की अवधारणा का अवमूल्यन है। लिहाजा प्रधानमंत्री यदि गंगा की अविरलता को बनाए रखने की घोषणा तथा सुयोजना को कार्यान्वित करने की बात करते हैं तो हम चाहेंगे कि वे दीर्घकाल तक प्रधानमंत्री पद पर बने रहें।
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