फल्गु तीर्थ में तर्पण से मिले फल
कैथल जिले के गांव फरल में स्थित फल्गु तीर्थ का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों में देवताओं की तपस्या की विशेष स्थली के रूप में मिलता है।
पित्तरों की तृप्ति और श्रेष्ठ फल के लिए मनुष्य अपने पित्तरों के पिंड श्राद्ध कर्म को संपन्न करता है। पित्तरों के पिंडदान और तर्पण के लिए विभिन्न क्षेत्रों के लोग विभिन्न तीर्थ स्थानों पर जाते हैं। जिस तरह भारत में विभिन्न धार्मिक कार्यो के लिए अनेक तीर्थ स्थान प्रसिद्ध हैं उसी तरह हरियाणा प्रदेश में फल्गु तीर्थ पित्तरों के पिंड श्राद्ध कर्म व तर्पण के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। फल्गु तीर्थ कैथल जिले के गांव फरल में स्थित है जो कैथल से 25 कि.मी., कुरुक्षेत्र से 25 कि.मी. और पिहोवा से 20 कि.मी. ढांड-पुंडरी मार्ग पर दोनों के मध्य स्थित है।
इस तीर्थ का उल्लेख महाभारत, वामन पुराण, मत्स्य पुराण तथा नारद पुराण में स्पष्ट रूप से मिलता है। महाभारत एवं पौराणिक काल में इस तीर्थ का महत्त्व अपने चरमोत्कर्ष पर था। महाभारत एवं वामन पुराण में इस तीर्थ का उल्लेख देवताओं की विशेष तपोस्थली के रूप में मिलता है। इन धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस तीर्थ में सोमवार की अमावस्या के दिन स्नान एवं तर्पण करने से मनुष्य अग्निष्टोम तथा अतिरात्र यज्ञों के करने से कहीं अधिक श्रेष्ठतर फल को प्राप्त करता है। मात्र मन से जो भी व्यक्ति फलकीवन (फल्गु तीर्थ) का स्मरण करता है उसके पित्तर तृप्त हो जाते हैं। अग्नि पुराण में भी फल्गु नामक एक तीर्थ का वर्णन है जिसके जल एवं भूमि मानव को लक्ष्मी तथा कामधेनु का फल देने वाले हैं। लोक किंवदंतियों के अनुसार श्री फल्गु ऋषि फलकीवन में तपस्या किया करते थे। उनके तपस्या काल में प्रसिद्ध गया जी तीर्थ पर गयासुर का राज्य था। गयासुर की यह प्रतिज्ञा थी कि जो उसे शास्त्रार्थ में पराजित कर देगा उसके साथ वह अपनी तीनों पुत्रियों का विवाह करेगा। उस समय फल्गु तीर्थ यानी फलकीवन में फल्गु ऋषि तपस्या कर रहे थे।
गयासुर से त्रस्त लोगों और देवताओं के अनुरोध से जब उन्हें गयासुर की प्रतिज्ञा का पता चला तो गृहस्थ आश्रम को सर्वश्रेष्ठ समझकर वहां गए और शास्त्रार्थ में गयासुर को पराजित करके उसकी तीनों कन्याओं के साथ विवाह कर लिया एवं गृहस्थ बने। वामन पुराण के अनुसार अमावस्या (सोमक्षय) होने पर सोमवार के दिन जो मनुष्य श्राद्ध करता है उसे बहुत अधिक पुण्य प्राप्त होता है। गया जी में किया गया श्राद्ध जिस प्रकार से नित्य ही पित्तरगण को प्रसन्न करता है उसी प्रकार फलकीवन में रहकर किया गया श्राद्ध प्रसन्नता देता है। कहा जाता है कि सोमावती ऋषि फल्गु को अधिक प्रिय थी इसी कारण इस अमावस्या को सोमवती अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।
लाखों श्रद्धालु इस योग के प्राप्त होने पर यहां पित्तरों के निमित्त श्राद्ध करते हैं। फल्गु तीर्थ के महात्म्य एवं सर्वश्रेष्ठ होने की पुष्टि इस पौराणिक तथ्य से हो जाती है कि संपूर्ण पृथ्वी के समस्त तीर्थ समूह देवताओं के साथ इस फल्गु तीर्थ में स्नान के लिए आते हैं। वायु पुराण में फल्गु तीर्थ को पतित-पावनी गंगा से भी श्रेष्ठ मानते हुए कहा गया है-
गंगा पादोदकं विष्णो: फल्गुहृादि गदाधर:। स्वयं हि द्रवरूपेण तस्माद् गंगाधिकं विदु:।।
अर्थात् गंगा भगवान विष्णु की पादोदक स्वरूप है किंतु फल्गु तो स्वयं आदि गदाधर स्वरूप है। इस प्रकार उनका महात्म्य गंगा से अधिक माना गया है।
इस तीर्थ के महात्म्य विस्तार में आगे लिखा है कि जो व्यक्ति एक लाख अश्वमेध यज्ञ करता है वह भी इतना फल प्राप्त नहीं करता जितना मनुष्य फल्गु तीर्थ में स्नान कर लेने से प्राप्त कर लेता है। फल्गु तीर्थ में स्नान करने के बाद मनुष्य को तर्पण एवं पिंड श्राद्ध कर्म अपने गृह्यसूक्त के अनुसार ही करना चाहिए।
इस क्षेत्र में मान्यता है कि फल्गु तीर्थ में स्नान कर आदि गदावर देव दर्शन करने पर मनुष्य अपने उद्धार के साथ-साथ अपने पूर्व की दस पीढि़यों का उद्धार करता है। इस पावन तीर्थ पर फल्गु ऋषि के मंदिर के सौंदर्यीकरण का कार्य अभी हाल ही में मंदिर के उपासक जयगोपाल शर्मा के प्रयास से संपूर्ण हुआ है। इस प्रसिद्ध तीर्थ पर अनेक सुंदर मंदिर हैं। यहां सरोवर के घाट के पास अष्टकोण आधार पर निर्मित 17वीं शताब्दी की मुगल शैली में बना शिव मंदिर है जो लगभग 30 फुट ऊंचा है। घाट के पास ही एक प्राचीन वट वृक्ष है जिसे लोग श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं। यहीं पर राधा-कृष्ण का मंदिर भी है जो नागर शैली में बना हुआ है। यहां पित्तर पक्ष की सोमवती अमावस्या को विशाल मेले का आयोजन होता है। बार यह मेला एक से 16 अक्टूबर तक लगेगा।
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