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मुक्तेश्वरपुरी मठ

रेवाड़ी जिले के गांव कोसली में स्थित मुक्तेश्वरपुरी मठ सदियों से श्रद्धा का साक्षी है। गांव कोसली के निवासी बाबा मुक्तेश्वरपुरी को अपना इष्ट देवता मानते हैं।

By Edited By: Published: Tue, 13 Mar 2012 03:02 PM (IST)Updated: Tue, 13 Mar 2012 03:02 PM (IST)
मुक्तेश्वरपुरी  मठ

हरि के प्रदेश हरियाणा की धरा पर असंख्य धार्मिक स्थल विद्यमान हैं। रेवाड़ी-हिसार रेलमार्ग के निकट रेवाड़ी के गांव कोसली में स्थित बाबा मुक्तेश्वरपुरी का मठ भी इनमें से एक है। पुरी संप्रदाय के इस मठ की स्थापना बाबा कृष्णपुरी ने हींस नामक वृक्ष के नीचे धूनी लगाकर उस समय की जब यह क्षेत्र विशाल वनखंड था। हींस का यह वृक्ष पीढ़ी दर पीढ़ी इस क्षेत्र के श्रद्धालुओं की वंशबेल को देखने का मूक साक्षी बना हुआ है। मठ के प्रांगण में खड़ा यह वृक्ष श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है और मुक्तेश्वरपुरी मठ सदियों से श्रद्धालुओं की अगाध श्रद्धा का साक्षी बना हुआ है।

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बाबा मुक्तेश्वरपुरी मठ की स्थापना बाबा कृष्णपुरी ने की थी। शुरू से लेकर अब तक यहां इस मठ के संस्थापक बाबा कृष्णपुरी से लेकर वर्तमान मठाधीश बाबा शिवपुरी [श्रीश्री 1008 विनोदानंदपुरी महाराज महामंडलेश्वर] तक 19 मठाधीश विराजमान रह चुके हैं। गांव कोसली के बड़े-बुजुर्गो का कहना है कि गांव कोसली के संस्थापक पितामह कोसलदेव को वर्ष 1265 में बाबा मुक्तेश्वरपुरी ने खेड़ा आबाद करने का आशीर्वाद दिया था और फिर पितामह कोसलदेव के नाम से गांव का नाम कोसली रखा गया। बेशक मठ के संस्थापक बाबा कृष्णपुरी महाराज थे लेकिन फिर भी यह मठ बाबा मुक्तेश्वरपुरी महाराज के कारण अधिक जाना जाता है क्योंकि गांव कोसली के खेड़े को बसाने में उनका विशेष सहयोग रहा है। वर्तमान में बाबा कृष्णपुरी महाराज को भी श्रद्धालु श्रद्धापूर्वक याद करते हैं और उनकी धोक लगाते हैं।

ग्रामीण आज भी पितामह कोसलदेव के साथ-साथ बाबा मुक्तेश्वरपुरी का श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं। मठ के तत्कालीन एवं चौथे मठाधीश बाबा मुक्तेश्वरपुरी महाराज को श्रद्धालु गुसांई बाबा के नाम से भी जानते हैं। उनका यह नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। गांव कोसली के निवासी बाबा मुक्तेश्वरपुरी को अपना इष्टदेव व कुलदेव मानते हैं, इसलिए वे मठ में स्थापित उनकी मूर्ति के समक्ष हर रोज धोक लगाते हैं। श्रद्धालुओं का कहना है कि बाबा मुक्तेश्वरपुरी के स्मरण मात्र से उनकी व्याकुलता समाप्त हो जाती है और सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। हर वर्ष चैत्र और आश्विन मास की अष्टमी को गांव कोसली में स्थित बाबा मुक्तेश्वरपुरी के मठ में मेला लगता है। इस मेले में आसपास के क्षेत्रों से ही नहीं अपितु कोसलिया गोत्र के लोग विश्वभर में भले ही कहीं भी बसे हों लेकिन यहां आकर शक्कर का प्रसाद चढ़ाकर नतमस्तक अवश्य होते हैं। नवविवाहित जोड़े भी यहां धोक लगाने आते हैं। भारतीय सेनाओं में भर्ती हो चुके गांव कोसली के निवासी छुट्टी होते ही सबसे पहले बाबा मुक्तेश्वरपुरी के मठ में जाकर नतमस्तक होते हैं।

वर्तमान में बाबा के समाधि स्थल को अनुपम एवं मनोहारी भव्यता प्रदान करने के लिए प्रसिद्ध वास्तुकार लगे हुए हैं। यह कार्य मंदिर कमेटी की देखरेख में जारी है।

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