महाकुंभ: जटाओं वाला गोरा और साड़ी वाली मेम
एलिन ने आज साड़ी पहन ली है। चौड़े पार की गहरे हरे रंग वाली। खूब इतरा रही है। वह और उसको देखने वाले, दोनों कौतूहल को मजे में जी रहे हैं। गांव की महिलाएं अकबकाई हुई हैं कि आखिर एक मेम साड़ी कैसे पहन सकती है? इसको पहनकर फर्राटे से चल कैसे सकती है?
कुंभनगर। एलिन ने आज साड़ी पहन ली है। चौड़े पार की गहरे हरे रंग वाली। खूब इतरा रही है। वह और उसको देखने वाले, दोनों कौतूहल को मजे में जी रहे हैं। गांव की महिलाएं अकबकाई हुई हैं कि आखिर एक मेम साड़ी कैसे पहन सकती है? इसको पहनकर फर्राटे से चल कैसे सकती है?
एलिन, इंग्लैंड की है। वह पिछले कई दिन से साड़ी पहनने, पहनकर चल लेने की रिहर्सल कर थी। आज कामयाब हुई है। खैर, उसको देखकर शिवानी जोर से आवाज लगाती है- माताजी, वाटर प्लीज। एलिन अपने साइड बैग से बिसलरी की बोतल शिवांगी को देती है। इस्कान के बुक स्टाल पर पुस्तक व मालाएं बेचने वाली शिवांगी और उसके तीन सहयोगी बारी-बारी से एलिन की पूरी बोतल खाली कर जाते हैं। हां, सभी पानी पीने के पहले एलिन से इशारों में इजाजत लेते हैं। एलिन येस-येस, ओके-ओके करते बस हंसती रहती है। उसे सबको पानी पिलाने में बेहद खुशी हो रही है।
यहीं पर माइकेल, एडम, इलिया ., परदेसियों की एक पूरी टोली रुद्राक्ष की मालाओं के मनके बड़ी गंभीरता से गिन रही है। इनको मालूम है कि इसकी संख्या 108 होनी ही चाहिए। अंग्रेज और रुद्राक्ष ., खैर कमोबेश ऐसा ही सीन संगम पर स्नान के दौरान दिखता है, जब स्मिथ, मैरी को स्नान कराकर ही मानते हैं। यहां स्मिथ एक पंडा की माफिक मैरी को महाकुंभ स्नान के फायदे समझाते हैं। स्मिथ के पास लंबी जटाएं हैं। मैं ऐसे ढेर सारे दृश्यों को बखूबी जी रहा हूं, जो महाकुंभ के बारे में मेरी परंपरागत धारणा को विस्तारित करता है। दरअसल, यह बस नदियों का संगम या त्रिवेणी या फिर इससे जुड़ी अंध धार्मिक आस्था भर नहीं है। वस्तुत: यहां सबकुछ समाहित हो जाता है, जिसकी कलगी बस आदमीयत है। और सबका एकाकार व बिल्कुल समानता सा भाव खुलेआम होता है।
चलिए, कुछ और सीन देखिए। ये जीवन के रंग ही हैं। आदमी की लीला है। मंगलवार की सुबह का वक्त है। जानकी, करिश्मा को शंकर बना चुकी है। अब वह जूली को पार्वती का रूप दे रही है। कैंप की मालकिन रूपा इस लीला का मतलब समझाती है-बच्चे नए-नए रूप धरकर श्रद्धालुओं के बीच घूमते हैं। हमें कुछ पैसे और अन्न मिल जाते हैं। मैंने देख रहा हूं कि पेट चलाने की यह लीला यहां बड़ी कामयाब है। आदमी इस अंदाज में इन बच्चों को कुछ देता है, मानो भगवान को दे रहा हो। सेक्टर पांच में घूमते हुए एक नागा को अपने वास्तविक स्वरूप में मोटरसाइकिल उड़ाते देखा। लोग इस मुद्रा में भी उनको प्रणाम करने से नहीं चूकते हैं। रसिया बाबा, सतुआ बाबा ., पंडालों में प्रवचन चल रहा है। क्त्रांतिकारी संत विजय बाबा अपने को क्त्रांतिकारी टाइप दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। उन्होंने झूला पर अपना सिंहासन बनवाया हुआ है। लोहे से ढेर सारे तीर हैं। बाबा इसी पर बैठते हैं। अगल-बगल में तलवार, फरसा, त्रिशूल तथा ऐसे कई परंपरागत अस्त्र- शस्त्र हैं। झूले के नीचे जलती आग है। उनका एक चेला झूले को हिलाते रहता है, बाबा का बखान करता रहता है। यहां भी अपना ग्रामीण भारत नतमस्तक है। छोटे-छोटे कनातों में कुछ नंग-धड़ंग साधु बैठे हैं। अब इनकी तस्वीरें उतारना विदेशियों से ज्यादा भारतीयों का शगल बन गया है। कुछ लोग इनके साथ अपनी फोटो खिंचवाते हैं। बहस इस बात पर भी चली हुई है कि ये असली नागा नहीं हैं? असली वाले खुद को इस तरह नहीं परोसते हैं? महाकुंभ में सभी अपना-अपना काम कर रहे हैं। सबकी अपनी-अपनी लीला है। कुछ लोग संगम पर पैसा फेंक रहे हैं, तो नदी में उतरे कुछ लोग उसे उनके ही सामने गहरे पानी से चुन रहे हैं। रस्सी में बड़ा सा चुम्बक बांधकर इसे पानी में डाला जाता है। उधर से पैसा निकलता है। कुछ पैसे के लिए डुबकियां भी लगा रहे हैं।
महाकुंभ में सबकुछ बिक रहा है। ताकत बढ़ाने वाली शिलाजित से लेकर हर कष्ट को हरने वाली अंगूठी तक। सबकुछ ठीक हो जाने की गारंटी बिक रही है। मन की शुद्धता, नैतिकता, जीवन दर्शन, योग, तंत्र-मंत्र ., सबकुछ। औरतों का जोर सिंदूर, टिकुली, चूड़ी पर है। चिलम वाले काउंटर पर भाई लोग हैं। दिन-रात, कतार नहीं थमती है। अव्वल तो दिन-रात का फर्क ही नहीं है। आने वालों के पास एक ही अरमान-संगम पर डुबकी और घर के लिए बोतल या डिब्बे में पानी। उनके रहने-खाने का ठीक नहीं है। जहां पैर थके, सो लिए। रात में सड़कों के दोनों तरफ यह तय करना मुश्किल कि यहां बड़ी सी गठरी रखी है या आदमी सोया है? शीत से बचाव के लिए पालीथिन शीट खूब बिक रही है।
नंगे पैर, ठंड से बचने को चादर जैसी कोई चीज, मिलों कांपते पैरों से सिर पर रखी हिलती-डुलती गठरी, चूल्हा सुलग नहीं रहा है, धुआं से आंखें लाल है, अजीब तरह के पकवानों से किसी तरह पेट भरते लोग, गुमशुदगी का एनाउंसमेंट, रोना-कलपना ., वाकई पुण्य पथ बड़ा कठिन है। अखाड़ों में लंगर, प्रवचन का दौर। राम-कृष्ण की झांकियां। महाकुंभ परिसर में भारत समाया हुआ है। नेपाल भी आया हुआ है। विदेशी, यहां कहने को विदेशी हैं। पुण्य बटोरने में भरपूर शामिल हैं। नहाने से लेकर हर मसले में हिस्सेदारी। एक-एक अखाड़े में कहानी के कई-कई प्लाट हैं। अस्थायी मंदिर तक बन गए हैं।
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