गंग जमुन में कावेरी का प्रवाह
तीर्थराज प्रयाग में त्रिविध पाप नाशिनी गंग-जमुन की धार में कावेरी का प्रवाह भी नजर आने लगा है। दक्षिण भारत के संत-महंतों की संख्या कम जरूर है लेकिन उनकी उपस्थिति विशिष्ट रूप में नजर आने लगी है।
कुंभ नगर। तीर्थराज प्रयाग में त्रिविध पाप नाशिनी गंग-जमुन की धार में कावेरी का प्रवाह भी नजर आने लगा है। दक्षिण भारत के संत-महंतों की संख्या कम जरूर है लेकिन उनकी उपस्थिति विशिष्ट रूप में नजर आने लगी है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु के रागी-वैरागी तो साधु संन्यासी। ऐसे में शंकराचार्य पीठों के संस्थापक-महाकुंभ के उन्नायक की तपोस्थली केरल कैसे पीछे छूट जाती। यहां के लोगों की तो वैसे भी इस महाआयोजन में नख-शिख श्रद्धा है।
वहां से माता अमृतानंदमयी तो तमिलनाडु के स्वामी जंगी वासुदेव ने अनगिन शिष्यों के साथ कुंभ क्षेत्र में डेरा डाला है। कर्नाटक से कांचीकामकोटि पीठाधीश्वर शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती के संगम तट पर दो फरवरी को आगमन की आहट से शिष्यों के डेरे श्रद्धावनत हैं। बेंगलूर से श्रीश्री रविशंकर भी 13 फरवरी को सैकड़ों संतों-महंतों के साथ पहुंच रहे हैं। पूर्व के कुंभोत्सवों में दक्षिण की कम भागीदारी लोगों में जिज्ञासा जगाती थी, सवाल उठाती थी पर अब फव्वारा फूट पड़ा है। आर्ट आफ लिविंग के नार्थ ईस्ट क्षेत्र प्रमुख स्वामी दिव्यानंद इसे स्वीकारते और कारणों का विवेचन भी करते हैं-पहले के समय में साधनों की कमी से कुछ ही संत प्रतिनिधित्व करने आते थे लेकिन अब समय के साथ सब कुछ बदल गया है।
संतों की विधानसभा और लोकसभा : महाकुंभ ग्रह नक्षत्रों का संयोग हो अथवा समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश छलकने का विश्वास, इनमें वास आस्था-विश्वास का ही है। आद्य शंकराचार्य ने इसे संतों को धर्म अध्यात्म के साथ ही सामाजिक सरोकारों से जोड़ने का समागम बनाया। इसके लिए प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में हर 12वें वर्ष कुंभ और हर छठें साल अर्धकुंभ। चक्रानुक्रम में पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण में हर तीसरे वर्ष अलग-अलग तीर्थो की बारी, इसकी गणना हरिद्वार से प्रारंभ होती है। छठें वर्ष लगने वाले अर्धकुंभ यानी विधानसभा में दिशावार संतों का जमावड़ा तो बारहवें वर्ष कुंभ लोकसभा में चहुंदिशाओं का मिलन।
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