मंत्रमय शरीर, वेदों में नक्शा
वेद परिवार के आस्तिक दर्शन का हिस्सा न्याय शास्त्र। इस शास्त्र का मुख्य उद्देश्य अंतर करना या फर्क बताना और वर्णन करना। इस न्याय शास्त्र का मानव शरीर से कोई संबंध होगा, यह मानना थोड़ा मुश्किल है पर थोड़ा विचार करने पर पता चल जाएगा कि यह थेलामस है। मस्तिष्क के अंदर विराजमान थेलामस का मुख्य कार्य वही है जो न्याय शास्त्र बता रहा है।
इलाहाबाद। वेद परिवार के आस्तिक दर्शन का हिस्सा न्याय शास्त्र। इस शास्त्र का मुख्य उद्देश्य अंतर करना या फर्क बताना और वर्णन करना। इस न्याय शास्त्र का मानव शरीर से कोई संबंध होगा, यह मानना थोड़ा मुश्किल है पर थोड़ा विचार करने पर पता चल जाएगा कि यह थेलामस है। मस्तिष्क के अंदर विराजमान थेलामस का मुख्य कार्य वही है जो न्याय शास्त्र बता रहा है। इसे अगर शास्त्र को शरीर से जोड़ने की जबरिया की कवायद मान रहे हों तो थोड़ा रुकने तथा कुछ और साम्यता देखने की जरूरत है। थेलामस में चार आवरण (लोप) होते हैं। न्याय के भी चार अध्याय हैं। हर आवरण के चार भाग मिलाकर पूरे थेलामस कुल 16 भाग हैं। न्याय में भी कुल 16 सूक्त हैं।
वेद व वेदांगों की हर ऋचाओं का शरीर और उसकी कोशिका से संबंध खोजा व स्थापित किया जा चुका है। आधुनिक शरीर विज्ञान (फीजियोलॉजी) हजारों साल पूर्व रचित वेद-वेदांगों के साथ शरीर व उसकी कोशिका के बीच की सटीक साम्यता से हैरान है। यह खोज महर्षि वैदिक वाइब्रेशन टेक्नॉलॉजी के नाम से विकसित हो रही मंत्र चिकित्सा पद्धति का आधार है। शरीर के विभिन्न हिस्सों में होने वाले रोगों को दूर करने के लिए अमेरिका समेत विभिन्न देशों में चल रहे क्लीनिकल ट्रायल में उक्त हिस्से से जुड़े मंत्रों के प्रभाव को परखा जा रहा है। सर्वमंत्र मयो वपु: यानि मंत्रों से बना है शरीर। मंत्र महोदधि में मंत्रों की तारीफ में लिखे इस वाक्य को अब आधुनिक विज्ञान भी सही मानने लगा है। हालैंड में शरीर विज्ञान में एमडी व पीएचडी अमेरिकन युनिवर्सिटी ऑफ बेरूत के प्रो. टोनी नाडेर व अन्य के शोध ने वेद व उसके विभिन्न अंग उपांगों के कोशिका व शरीर से सीधा संबंध साबित किया है। महर्षि महेश योगी द्वारा विकसित विभिन्न संस्थानों का जिम्मा संभाल रहे व कुंभ मेले में शामिल होने आए ब्रहृमचारी गिरीश जी के अनुसार ऋग्वेद मेरूदंड है। इसे समग्र बौद्धिक गुणों के लिए जवाबदार बताया गया है। ऋग्वेद में दस मंडल हैं। कोशिका में भी 10 मुख्य भाग हैं। ऋग्वेद में 192 सूक्त हैं। मेरूदंड में इतने ही भाग हैं। आधुनिक लिहाज से ऋग्वेद पूरा शरीर विज्ञान और शरीर का आधार है। इसी प्रकार सामवेद को शरीर या कोशिका में चेतना के प्रवाह के लिए उत्तरदायी बताया गया है। यह आज की शब्दावली में संवेदना प्रणाली (सेंसरी सिस्टम) है। यजुर्वेद को बौद्धिकता के सृजन व अर्पण यानि विचार करने व दूसरों को सलाह देने के लिए व अथर्ववेद को शरीर के हर बिन्दु की चैतन्यता, सक्रियता (रिवरबरेटिंग क्वालिटी इन एवरी प्वाइंट) के लिए जवाबदार बताया गया है। यह आधुनिक टर्म में प्रोसेसिंग सिस्टम व मोटर सिस्टम से जुड़ी हैं।
यह साम्यता स्थूल से सूक्ष्म स्तर तक एक समान रूप से मिलती है। सामवेद में सात भाग हैं तो कुंडलिनी में सात रिसेप्टर्स होते हैं। यजुर्वेद की दो श्रेणी है। यह कोशिका की परत (मेम्ब्रेन) में लिपिड प्लास्मा की दो सतहें हैं। अथर्ववेद के 20 भाग हैं जो शरीर में विद्यमान 20 तरह के एमिनो एसिड हैं और शरीर की मोटर प्रणाली के लिए जवाबदार माना गया है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से जुड़े ईश्वरशरण डिग्री कालेज के संस्कृत विभाग के डॉ. गिरिजाशंकर शास्त्री के अनुसार पं. चार वेद, धनर्वेद, आयुर्वेद, गंधर्व वेद व स्थापत्य वेद समेत चार उपवेद, शिक्षा, कल्प, निरुक्त, ज्योतिष, व्याकरण व छंद समेत छह वेदांग, 9 संहिता, इतिहास, ब्रांाण, आरण्यक व उपनिषद मिलाकर चार वैदिक साहित्य, 18 पुराण व 108 स्मृतियां मिला कर कुल 40 हिस्सों से बना है वेद परिवार। इसमें शरीर का पूरा नक्शा है। ब्रहृमचारी गिरीश जी के अनुसार इसी नक्शे के आधार पर शरीर की रचना हुई है। वेदों में वर्णित मंत्र चिकित्सा के माध्यम से मनुष्य को रोग मुक्त करने के लिहाज से महत्वपूर्ण वेद व शरीर के इस संबंध को खोजने के लिए महर्षि ने प्रो. टोनी नाडर को सोने से तौला था। अब इसी साम्यता के आधार पर विभिन्न हिस्सों में होने वाले रोगों के निदान का प्रयास किया जा रहा है। ब्रंाचारी गिरीश जी के अनुसार महर्षि महेश योगी पाश्चात्य जगत को विज्ञान की कसौटी पर वेदों को कसने के बाद ही स्वीकार करने को कहते थे। इसलिए मंत्र चिकित्सा को आधुनिक प्रयोगशालाओं और आधुनिक चिकित्सों के हवाले किया गया है। अब तक के परिणाम उनके लिए काफी आश्चर्यजनक हैं और यह साबित कर रहे हैं कि शरीर मंत्रों से बना है।
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