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मन्नत मांगने पर यहां घड़ी चढ़ाते हैं लोग

लोग अलग, भाषाएं अलग, चेहरे अलग, परंपराएं अलग होना कोई नई बात नहीं है लेकिन बात जब भगवान की आती है तो पूजा विधि और प्रसाद जैसी चीजें जगह और पसंद के अनुसार नहीं बदलतीं। हर धर्म में भगवान की पूजा एक विधान है और हर कोई उसका ही पालन करता है। खासकर हिंदू धर्म में पूजा और उसमें चढ़ाए जाने वाले प्रसाद का बहुत अधिक महत्व है।

By Edited By: Published: Thu, 17 Jul 2014 01:12 PM (IST)Updated: Thu, 17 Jul 2014 01:12 PM (IST)
मन्नत मांगने पर यहां घड़ी चढ़ाते हैं लोग

लोग अलग, भाषाएं अलग, चेहरे अलग, परंपराएं अलग होना कोई नई बात नहीं है लेकिन बात जब भगवान की आती है तो पूजा विधि और प्रसाद जैसी चीजें जगह और पसंद के अनुसार नहीं बदलतीं। हर धर्म में भगवान की पूजा एक विधान है और हर कोई उसका ही पालन करता है। खासकर हिंदू धर्म में पूजा और उसमें चढ़ाए जाने वाले प्रसाद का बहुत अधिक महत्व है। भगवान को चढ़ाए प्रसाद को आशीर्वाद स्वरूप लोग खाते हैं और इच्छा पूर्ण होने की कामना करते हैं। अलग-अलग प्रकार की पूजा में प्रसाद भी अलग-अलग होते हैं लेकिन आज तक आपने भगवान को प्रसाद रूप में घड़ी नहीं चढ़ाई होगी। सुनकर थोड़ा अजीब लगता है कि भगवान को प्रसाद में घड़ी !!..लेकिन यह सच हमारे भारत में ही एक ऐसी जगह है जहां भगवान को प्रसाद में फल और मेवे नहीं बल्कि दीवार घड़ी चढ़ाई जाती है।

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उत्तर प्रदेश में जौनपुर के पास एक मंदिर है ब्रह्म बाबा का मंदिर। कहते हैं इस मंदिर में मांगी हर मुराद पूरी होती है लेकिन इसके अलावे यह मंदिर खासकर इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि यहां पूजा में प्रसाद नहीं घड़ी चढ़ाई जाती है वह भी पूरे विधि-विधान के साथ। आश्चर्यजनक है लेकिन इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। इस मंदिर में मन्नत मांगने और उसके पूरा होने पर घड़ी चढ़ाने की परंपरा मात्र 30 साल पुरानी है और इसका श्रेय एक ट्रक ड्राइवर को जाता है। स्थानीय लोगों की मान्यता है 30 साल पहले ब्रह्म बाबा के इस मंदिर में एक ट्रक ड्राइवर ने ड्राइविंग सीखने की मन्नत मांगी थी। मन्नत में उसने ड्राइविंग सीख लेने पर दीवार घड़ी चढ़ाने की बात कही थी। लोग कहते हैं मन्नत के कुछ ही दिनों में वह ड्राइविंग सीख गया और पहली बार उसी ने मंदिर की दीवार पर प्रसाद के रूप में घड़ी लगाई। तब से यह यहां की परंपरा बन गई। इसी परंपरा के कारण लोग इसे घड़ी बाबा का मंदिर भी कहते हैं।

लोगों में इसकी मान्यता इतनी ज्यादा है कि खुले परिसर में दीवार घडि़यां होने के बावजूद कोई उसे उतारने की हिम्मत नहीं जुटाता।


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